Skip to main content

छात्रों की समस्याओं के समाधान के लिए कार्यपरिषद द्वारा महत्वपूर्ण पहल की गई – कुलपति प्रो पांडेय

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में संवाद से समाधान कार्यक्रम सम्पन्न

विश्वविद्यालय कार्यपरिषद द्वारा की गई छात्रों से संवाद की अनूठी पहल

उज्जैन । विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा संवाद से समाधान कार्यक्रम के माध्यम से विश्वविद्यालय से सम्बद्ध समस्त छात्रों की सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए विश्वविद्यालय कार्यपरिषद् द्वारा एक अद्वितीय पहल गई। 23 फरवरी 2022 को विक्रम कीर्ति मंदिर, उज्जैन में संपन्न संवाद से समाधान कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कार्यपरिषद सदस्य श्री सचिन दवे, श्री राजेश सिंह कुशवाह, श्री विनोद यादव, श्री संजय नाहर, डॉ. गोविन्द गन्धे, श्रीमती ममता बैंडवाल, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक थे। इस आयोजन में कार्यपरिषद के सदस्यों ने छात्रों से चर्चा की एवं उन समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए कार्यपरिषद के माध्यम से सार्थक प्रयास किए गए।


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद द्वारा छात्रों की समस्याओं के समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण शुरुआत की गई है। किसी भी विश्वविद्यालय के लिए विद्यार्थी महत्वपूर्ण स्तंभ होते हैं। उन्हीं के हित के लिए संपूर्ण व्यवस्था कार्य करती है। विक्रम परिक्षेत्र के विद्यार्थी इस दिशा में अपना सार्थक सहयोग प्रदान करें। विश्वविद्यालय बहुत बड़ा होता है उसमें सभी प्रकार की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिए विद्यार्थियों में जागरूकता आवश्यक है। वे निसंकोच अपनी समस्याओं को बताएं, उनका समाधान किया जाएगा।

कार्यपरिषद् सदस्य श्री सचिन दवे ने संबोधित करते हुए कहा कि विद्यार्थी हित के लिए कार्य परिषद निरंतर प्रयास करेगी। जिन समस्याओं का समाधान शासन स्तर से होगा, उसके लिए भी पूर्ण प्रयास किए जाएंगे। संवाद से समाधान कार्यक्रम विश्वविद्यालय परिक्षेत्र में आने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए सार्थक कदम है। यह चार चरणों में होगा। पहले चरण में लगभग 180 महाविद्यालयों में पत्र के माध्यम से समस्या के समाधान के लिए पहल की गई। द्वितीय चरण में सभी जिला केंद्र पर चिह्नित कॉलेजों में संवाद से समाधान कार्यक्रम हुआ। तृतीय चरण में संभाग स्तर पर विक्रम कीर्ति मंदिर में आयोजन किया गया। आने वाले समय में विशेष कार्यपरिषद की बैठक करके जो समस्याएं आई थीं, उसका निराकरण किया जाएगा।
श्री राजेश सिंह कुशवाह ने कहा कि विद्यार्थीगण अपनी समस्याओं के समाधान के लिए प्राचार्य से चर्चा करते थे, जिन्हें आगे विश्वविद्यालय तक पहुंचाने का प्रयास नहीं हो पाता था। ऐसे में कार्यपरिषद ने निर्णय लिया कि विद्यार्थियों से संवाद किया जाए। सभी समस्याओं का समाधान आंदोलन से ही हो यह उचित नहीं है। विद्यार्थी गण अपनी समस्याओं को लेकर लिए सजग रहें और उन्हें प्रशासन के समक्ष प्रस्तुत करें। सभी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास निरंतर किए जाएंगे।

कार्यपरिषद सदस्य श्री विनोद यादव ने कहा कि किसी भी संस्था के लिए विद्यार्थी हित महत्वपूर्ण होता हैं । उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए निरंतर प्रयास होने चाहिए ।

कार्यपरिषद सदस्य श्री संजय नाहर ने कहा कि विद्यार्थी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उचित माध्यम से समस्या बताकर प्रशासनिक व्यवस्था से सहयोग प्राप्त करें। विश्वविद्यालय द्वारा अपनी विभिन्न योजनाओं का प्रचार प्रसार निरंतर किया जाएगा।
प्राचार्य, लो. टि. महाविद्यालय और कार्यपरिषद् सदस्य डॉ. गोविन्द गन्धे ने कहा कि समस्या से समाधान कार्यक्रम की योजना विद्यार्थी कल्याण की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।
कार्यपरिषद सदस्य श्रीमती ममता बैंडवाल ने कहा कि छात्रों की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए कार्यपरिषद के सदस्यगण सदैव सजग रहेंगे।

प्रारंभ में संवाद से समाधान कार्यक्रम की रूपरेखा एवं स्वागत भाषण विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत विद्यार्थी कल्याण संकाय अध्यक्ष डॉ एस के मिश्रा, डॉक्टर रमण सोलंकी एवं डॉ अजय शर्मा आदि ने किया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह डॉक्टर रमण सोलंकी एवं डॉ अजय शर्मा ने अर्पित किए।
कार्यक्रम में विक्रम परिक्षेत्र के विभिन्न जिलों नीमच, मंदसौर, रतलाम, शाजापुर, उज्जैन, आगर एवं देवास के एक सौ से अधिक प्रतिभागी विद्यार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में सहायक कुलसचिव श्री वीरेंद्र उचवारे, ऑनलाइन नोडल प्रभारी श्री राकेश खोती सहित विभिन्न जिलों के महाविद्यालयों के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रीति पांडे ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर रमण सोलंकी ने किया। संवाद से समाधान कार्यक्रम के अन्तर्गत छात्रों की समस्याओं के समाधान के लिए कार्यपरिषद् के सदस्यों ने छात्रों से सीधे संवाद कर उनकी समस्याओं को जाना। विश्वविद्यालय का मूल आधार विद्यार्थी हैं एवं उनकी समस्याएं हैं। इसी को दृष्टिगत रखते हुए संवाद से समाधान के रूप में यह संभाग स्तरीय चर्चा रखी गई थी, जिसमें विद्यार्थियों ने मुख्य रूप से वेबसाइट अपडेशन, विषय एवं संकाय परिवर्तन, अध्यादेश संशोधन, प्रवेश, ऑनलाइन कार्यों के संपादन, प्लेसमेंट, परीक्षा परिणाम एकल खिड़की, पुनर्मूल्यांकन आदि से संबंधित समस्याएं प्रस्तुत कीं। इस अभिनव कार्यक्रम में विभिन्न समस्याओं के त्वरित समाधान का प्रयास किया गया। शेष समस्याओं को सम्बन्धित विभाग की ओर अग्रेषित कर उनके समाधान के निर्देश दिए गए।
विश्वविद्यालय स्तर पर संवाद कार्यक्रम के पहले जिला स्तर पर अग्रणी महाविद्यालयों के प्राचार्यों की अध्यक्षता में छात्र संवाद कार्यक्रम दिनांक 21 फरवरी 2022 को आयोजित किया गया था। प्रत्येक जिले के चयनित 15 विद्यार्थी एवं उज्जैन के 60 विद्यार्थी उज्जैन में दिनांक 23 फरवरी 2022 को संवाद कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए थे।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...