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साक्षात् सौंदर्य रूप भगवती से जगत् के कल्याण की कामना की गई है सौन्दर्यलहरी में - श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी

विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ अद्वैत प्रबोधन व्याख्यान

भगवत्पाद आचार्य शंकर प्रणीत सौन्दर्यलहरी के लोक वाचन पर महत्त्वपूर्ण व्याख्यान सम्पन्न

उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा राजकीय अतिथि परमपूज्य श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी महाराज, मठाधिपति, श्री योगानंदेश्वर सरस्वती मठ, मैसूर, कर्नाटक के अद्वैत प्रबोधन व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि श्री विभाष उपाध्याय, उपाध्यक्ष, मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद, (राज्यमंत्री), प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सी जे विजयकुमार मेनन एवं पूर्व अध्यक्ष जनअभियान परिषद श्री प्रदीप पांडेय थे। यह महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम 25 फरवरी को शलाका दीर्घा सभागार, विक्रम विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ।

अपने व्याख्यान में परमपूज्य श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी महाराज ने कहा कि आदि शंकराचार्य लोक कल्याण के लिए इस धरा पर अवतरित हुए थे। उन्होंने अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ सौंदर्यलहरी में भगवती और सम्पूर्ण जगत् के सौंदर्य के वर्णन के माध्यम से जगत् के कल्याण की दिशा में मंथन किया है। भगवती निर्गुण - निराकार हैं, उनकी सुंदरता का वर्णन नहीं किया जा सकता। इसलिए सौंदर्यलहरी में निरूपित सौंदर्य पर विमर्श आवश्यक है। यह सौंदर्य केवल अवयव से संबंधित सौंदर्य नहीं है। भगवती देवी साक्षात् सौंदर्य हैं। उनसे जगत् के कल्याण की कामना की गई है। सुंदर वस्तु को देखकर मन अभिभूत होता है, वह आर्द्र होता है। मन का वह आर्द्र तत्व सुंदर में निहित है। प्रत्येक व्यक्ति आह्लादित या आर्द्र हो, इस दृष्टि से शंकराचार्य जी ने सौंदर्यलहरी की रचना की। इस कृति में देवी के केशों के लिए अराला शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका तात्पर्य घुंघराले बाल है। देवी का हास प्रकृतिवत् हास है। काव्य की अपनी विशिष्ट शैली होती है। इस ग्रंथ में केश या हास का चित्रण ही नहीं हुआ है, उनसे हर्ष और रोमांच का अनुभव होता है, मन आह्लादित होता है। बालपन में हमारा हास सरल था, किंतु बड़े होने पर नहीं रहता। मंद हसित की चर्चा देवी के लिए की गई है। शास्त्रों में आप्तकाम और आत्मकाम - दो शब्दों का प्रयोग किया गया है। वे एकात्मभाव को सौन्दर्यलहरी में प्रकट कर रहे हैं। इसके मन्त्रों में बीजाक्षर का विधान किया गया है। भगवती का चित्त शिरीष की तरह अत्यंत मृदु और स्वच्छ है, किंतु हमारा चित्त पाषाण से भी कठोर है। देवी की करुणा जगत कल्याण के लिए है।


सौंदर्यलहरी समाज हित के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। माता आनंदरूपेण हैं। उनका दर्शन परम आह्लादमय है। उनका स्वरूप इस प्रकार का है कि ईर्ष्या, द्वेष आदि कलुष से हमारा मन दूर हो जाता है। जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए हम निर्मल मन उनका ध्यान करें। हमारे शरीर में आनंदभाव है, इस बात की ओर संकेत शंकराचार्य जी कर रहे हैं। वे सर्वात्मभाव की ओर संकेत करते हैं। सभी सुखी हों, वे इसकी कामना करते हैं। कोरोना संकट के दौर में सभी भयभीत थे। सौंदर्यलहरी के पारायण से सभी संतुष्ट होते हैं, उसके मंत्रों में रोग निवारण की शक्ति है। अनेक पीड़ितों ने सत्रहवें पद्य का पाठ करते हुए रोग से मुक्ति प्राप्त की। सौंदर्यलहरी के पाठ से सभी प्रकार के रोगों और बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। आदि शंकराचार्य महाशक्ति से प्रार्थना करते हैं कि मुझ पर करुणा न करें, सायुज्य प्रदान करें। वर्तमान समय में किसी का भी मन शांत नहीं है। सबके मन को शांति देने के लिए सौंदर्यलहरी की सार्थकता है। शंकराचार्य जी कृत सौंदर्यलहरी एवं अन्य ग्रंथों के माध्यम से लोक के एकीकरण और कल्याण की दिशा में निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। आदि शंकराचार्य जी का जन्म यद्यपि केरल में हुआ था, किंतु उनका अत्यंत महत्वपूर्ण कर्मक्षेत्र मध्यप्रदेश है। उनके चिंतन के विविध पक्षों पर शोध कार्य को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर स्वामी जी महाराज को शॉल, श्रीफल एवं पुष्पमाल अर्पित कर उनका सारस्वत अभिनंदन कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सी जे विजयकुमार मेनन, विक्रम विवि कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह, श्री संजय नाहर, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया।


प्रारंभ में जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष श्री विभाष उपाध्याय, कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय, कुलपति प्रोफेसर सी जे विजयकुमार मेनन, जन अभियान परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष श्री प्रदीप पांडेय ने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम की पीठिका कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने प्रस्तुत की। मठ की विविध गतिविधियों एवं स्वामी जी का परिचय महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान, भोपाल के डॉ पुरुषोत्तम तिवारी ने दिया। महाराजश्री के व्याख्यान का संस्कृत से हिंदी में आशु अनुवाद डॉक्टर हिम्मत लाल शर्मा, जावरा ने किया।

पुष्पमाल अर्पित कर महाराजश्री का सम्मान कलेक्टर श्री आशीष सिंह, भारत माता मंदिर, उड़ाना की प्रमुख हेमलता दीदी सरकार, संत सत्कार समिति के श्री राजेंद्र गुरु शर्मा, श्री प्रकाश चित्तौड़ा, रूपांतरण संस्था के श्री राजीव पाहवा, अरविंद सोसाइटी के श्री आनंद मोहन पंड्या, मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद के संभाग समन्वयक शिवप्रसाद मालवीय, जिला समन्वयक श्री सचिन शिंपी, ब्लॉक समन्वयक श्री अरुण व्यास, श्री लोकेश मालवीय आदि ने किया। गायत्री परिवार से संबंध साधकों ने महाराज श्री को शॉल, श्रीफल एवं पुष्पमाल अर्पित कर सम्मानित किया। प्रारंभ में वैदिक मंगलाचरण एवं समापन में शांति मंत्र का पाठ पं महेंद्र पंड्या, पं गोपालकृष्ण शुक्ला, पं अनिल तिवारी, पं कमल जोशी एवं वैदिक पंडितों ने किया। द्वार पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ महाराज श्री की अगवानी पं सर्वेश्वर शर्मा के नेतृत्व में बड़ी संख्या में उपस्थित पंडितों एवं बटुकगणों ने की। गायत्री परिवार से सम्बद्ध श्रद्धालुओं ने मंगल कलश लेकर महाराजश्री की अगवानी की। आयोजन में अनेक प्रबुद्धजन, शिक्षाविद, गणमान्य नागरिक एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।

आयोजन का संचालन कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने किया।

श्री दक्षिणाम्नाय शृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर श्रीमद्जगतगुरु शंकराचार्य जी द्वारा अनुगृहीत श्री योगानंदेश्वर पीठाधिपति परम पूज्य श्री श्री शंकरभारती महास्वामी जी का सम्पूर्ण भारतवर्ष की यात्रा के अन्तर्गत 24 फरवरी को उज्जैन नगर में शुभ आगमन हुआ था। इस प्रवास के दौरान उनके द्वारा वर्तमान स्थिति पर सभी को भारतीय वैदिक दर्शन का दिव्य लाभ प्राप्त हुआ। वर्तमान में उपनिषदों में प्रतिपादित एकात्मतत्व को भगवत्पाद जगद्गुरु श्री आद्य शंकराचार्य महाभाग के विभिन्न प्रकरण ग्रंथों और स्तोत्रादि साहित्य के आधार पर सर्वत्र प्रचारार्थ पूज्य स्वामीश्री जी भारतभ्रमण कर रहे हैं। अयोध्या क्षेत्र में श्री आदिशंकराचार्य जी के भव्य मंदिर और अनेक दिव्य स्मृति में अद्वैत वेदान्त और अन्य शास्त्रों का अध्ययन और संशोधन संस्था की स्थापना का भी संकल्प किया गया है।

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