Skip to main content

सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा, समानता और स्वावलंबन को सर्वोपरि महत्व दिया - प्रो. शर्मा


क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा, समानता और स्वावलंबन को सर्वोपरि महत्व दिया। इस आशय का प्रतिपादन विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने किया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में 'क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे मुख्य अतिथि के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे। प्रो. शर्मा ने आगे कहा कि सावित्रीबाई फुले एक महान भारतीय समाज सुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, कवयित्री, दार्शनिक तथा क्रांतिकारी कार्यकर्ता थीं। उनकी मान्यताएँ भारतीय संविधान का आधार बनी हैं। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। प्रा. बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने कहा कि सावित्रीबाई फुले एक युग-स्त्री थी। प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थी। उनका मानना था कि शिक्षा ही स्त्री का गहना है। राष्ट्रीय शिक्षिक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि ज्ञान ज्योति सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा अभियान के साथ समाज सुधार का कार्य भी किया। विधवाओं के केशवपन का उन्होंने तीव्र विरोध किया था।

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय महासचिव डाॅ. प्रभु चौधरी ने अपने मंतव्य में कहा कि देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले को बालिकाओं को पढाने लिखाने का दंड भुगतना पड़ा था। पति महात्मा ज्योतिबा फुले के मार्गदर्शन एवं सहयोग से उन्होंने समाज सुधार कार्य को प्राथमिकता दी। डाॅ. दत्तात्रय माधवराव टिळेकर, ओतुर, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि सावित्रीबाई फुले का कार्य युगप्रवर्तक था। तत्कालीन समय में बालविधवा, देवदासी, सती प्रथा, जरठ विवाह, केशवपन, बालविवाह जैसी अमानवीय प्रथाएँ एवं कुरीतियां प्रचलित थीं। ऐसे समय सावित्रीबाई इन शृंखलाओं को तोड़ने हेतु रणरागिनी बन दुर्दम्य इच्छा शक्ति से इस धर्मयुद्ध में शामिल हुई थीं।

डाॅ. सुरेखा मंत्री, यवतमाल, महाराष्ट्र ने कहा कि सावित्रीबाई दयालु एवं जिम्मेवार शिक्षिका थीं। लड़कियों के लिए डाक्टर एवं दवाइयों का भी प्रबंध करती थीं। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष डाॅ. भरत शेणकर, राजूर, महाराष्ट्र ने कहा कि सावित्रीबाई ने स्त्री शिक्षिका के रूप में क्रांति की और शिक्षा की ज्योति जलाई। डाॅ. सुगंधा घरपनकर गडहिंग्लज, महाराष्ट्र ने कहा कि सावित्रीबाई ने मराठी समाज को जागृत किया। अस्पृश्यता, दहेज, विधवा समस्या पर भी उनकी नजर पडी थीं। समारोह की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मुख्य संयोजक, डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि समाजसुधारक के रूप में कार्य करते समय सावित्रीबाई को अनेक कष्ट झेलनी पड़े। उन पर कंकड, कीचड तथा गोबर भी फेंका गया, फिर भी वह अपना काम करती रहीं। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य प्रवक्ता डाॅ. मुक्ता कौशिक, रायपुर तथा प्रा. रोहिणी डावरे ने डाॅ. भरत शेणकर के जन्मदिवस पर आधारित स्लाईड शो को प्रस्तुत किया। डाॅ. रश्मि चौबे, गाज़ियाबाद ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने गोष्ठी का संचालन किया और सावित्रीबाई फुले पर स्वरचित कविता पाठ प्रस्तुत किया तथा सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम