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भौगोलिक परिघटना के साथ मानवीय संवेदना को अभिव्यक्त करती है अर्धरात्रि का सूरज कहानी - प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा

 सुरेशचन्द्र शुक्ल की कहानी अर्धरात्रि का सूरज का पाठ, अंतरराष्ट्रीय समीक्षा संगोष्ठी और कवि सम्मेलन सम्पन्न

भारत नॉर्वेजियन सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम और नॉर्वे से प्रकाशित हिन्दी और नार्वेजीय भाषा की पत्रिका द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में  लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने अर्धरात्रि का सूरज का पाठ किया। इस कहानी पर समीक्षा संगोष्ठी संपन्न हुई। आयोजन के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं समालोचक शैलेन्द्र कुमार शर्मा। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि डॉ. वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता ने की। संयोजन  किया था सुवर्णा जाधव, मुंबई ने।

कहानी में भौगोलिक परिघटना और मानवीय संवेदना

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' की कहानी 'अर्धरात्रि का सूरज' पर  विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक ऐसी रचना है जो भौगोलिक परिघटना के साथ मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती है। इस कहानी में उत्तरी नॉर्वे में चमकने वाले अर्धरात्रि के सूरज के सौन्दर्य का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है। यह नायिका की विशिष्ट मनःस्थिति को जीवंत करता है। रचना में लेखक ने देश-विदेश के अनुभव जगत् को समन्वित करते हुए एक संस्कृति विशेष को जीवंत किया है।  उन्होंने कहा कि इस कहानी को मैं प्रतीकात्मक कहानी मानता हूँ। इसका शीर्षक बहुत कुछ कह देता है। एक प्रेम त्रिकोण की चर्चा यह कहानी करती है। नए प्रकार के आशा और उमंग का संचार करती हुई यह कहानी समापन की ओर ले जाती है। हमें देखना चाहिए कि खुशियाँ क्या केवल धन सम्पदा में हैं, क्या केवल भौतिकता में है। उनके बीच में वह प्रेम और सहानुभूति का संचार करती हुई हमें सार्थक उपसंहार की ओर ले जाती है। रचनाकार ने बहुत सुन्दर ढंग से अतीत की उलझी हुई प्रेम अनुभूतियों के बीच में नए प्रकार की भाषा का संचार किया है। इसमें एक छोटा सा प्रसंग भी आता है कि एक माँ जब स्वेटर बुनती है तो वह दोनों पर ध्यान रखती है,  स्वेटर पर भी ध्यान रखती है और अपने बच्चे पर भी, जिसे उसकी सलाई से तकलीफ भी हो सकती है। नायिका अनीता भी कुछ इसी प्रकार की स्थितियों के बीच से एक नए प्रकार के जीवन को आनंद के साथ देखती हुई आगे बढ़ती है। एरिक को जो इस प्रकार की स्मृतियाँ हैं, जो दुःस्वप्न हैं,  उनका अहसास नहीं होने देती है। वह जॉन के पत्रों को फाड़कर फेक देती है। बहुत से संकेतों के साथ लेखक ने  घटनाओं को व्यक्त किया है। 

नीदरलैंड के प्रो. मोहन कान्त गौतम ने कहा कि मैं दो वर्ष नार्वे में रहा हूँ और थ्रोम्सो नगर गया हूँ, जिसका कहानी में जिक्र है। इस कहानी में प्रेम का एक स्वतन्त्र वैयक्तिक अनुभव सामने आता है जिसमें द्वन्द्व और ख़ुशी का साफ़ चित्रण हुआ है। नॉर्वे के अर्धरात्रि के सूरज के सौन्दर्य का बहुत अच्छा वर्णन कहानी में हुआ है, जहाँ हजारों लोग उसे देखने जाते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह कहानी बहुत अच्छी है, क्योंकि लेखक ने कहानी के पात्र जॉन, अनीता, मारित और एरिक के सम्बन्ध को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। 

इला  जायसवाल, नोएडा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह कहानी नारी मन की  यात्रा कराती है। कई बार नारी का मन उलझ जाता है। एक उम्र होती है जब उसे आगे बढ़ने की चाह होती है। यदि प्रेमी में प्रेम और सहानुभूति का मिश्रण होता है तो उससे वह आकर्षित हो जाती है। भावी जीवन साथी उसे  सम्बल प्रदान करे, यह सोच विश्व के हर कोने में पायी जाती है। 

डॉ. रश्मि चौबे ने कहा कि इस कहानी में अलौकिक प्रेम के दर्शन होते हैं। डॉ. अशोक कौशिक ने कहा कि लेखक ने नार्वे के थ्रोम्सो शहर के सौंदर्य का चित्रात्मक शैली में सुन्दर  वर्णन किया है। पश्चिमी की झलक इस कहानी में दिखती है। परन्तु भावनात्मक सम्बन्ध भूगोल से बहुत ऊपर है। यह बात स्पष्ट रूप से कहानी में झलकती  है। 

बलराम अग्रवाल, नई दिल्ली के अनुसार कहानी का शीर्षक अर्धरात्रि  का सूरज एक प्रतीक है। लेखक ने थ्रोम्सो नगर को उत्तरी देशों का पेरिस कहा है। भावनात्मक सम्बन्ध भूगोल से बहुत ऊपर होते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। 

ओम सप्रा, नई दिल्ली ने कहा कि कहानी सुनकर ऐसा लगा कि भारत में रहकर हम नार्वे की सैर कर रहे हैं। कहानी का चित्रांकन फिल्मांकन की तरह लगता है। लेखक ने भौतिकता के दौर का संकेत दिया है कि भाग्य एक सुन्दर घर की तरह होता है जिसमें नयी कार और महंगे फर्नीचर की आवश्यकता होती है।

 

डॉ. हरिसिंह पाल, नई दिल्ली के कहा कि यह नारी केंद्रित कहानी है। प्रो  योगेंद्र प्रताप सिंह, लखनऊ ने कहा कि लेखक का कहन अर्थात् शैली, बहुत सुन्दर है। यूरोप में प्रेम और सौन्दर्य का अभिराम चित्रण है ही पर संवेदना की कोई सीमा नहीं होती।  यह परिस्तिथियाँ हर देश में हैं भारत भी इससे अछूता नहीं है। यह  बड़ी संवेदनापूर्ण कहानी है। 

डॉ. पूनम सिंह, डॉ. कुंअर वीर सिंह मार्तण्ड  और डॉ. करुणा पांडेय ने भी कहानी के विभिन्न पक्षों को व्यक्त करते हुए अपनी बात कही।

अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन  

देश-विदेश के कवियों ने अपनी सुमधुर रचनायें सुनाईं, जिन्हें बहुत पसंद किया गया। कवि सम्मेलन में भारत से भाग लेने वालों में प्रमिला कौशिक, डॉ. हरिसिंह पाल, कुलदीप सलिल, ओम सप्रा और डॉ. हरनेक सिंह गिल दिल्ली,  इला  जायसवाल नोएडा, डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ. रामगोपाल भारतीय, मेरठ, प्रसिद्ध व्यंग्यकार कवि सूर्यकुमार पांडेय, डॉ. मंजू शुक्ल और प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह लखनऊ, सुवर्णा जाधव पुणे और डॉ. कुंवर वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता प्रमुख थे।  

विदेशों से कविता पाठ करने वालों में नीरजा शुक्ला कनाडा, डॉ. राम बाबू गौतम अमेरिका, जय वर्मा ब्रिटेन, सुरेश पांडेय, स्वीडेन और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ओस्लो, नार्वे थे। 

अध्यक्षता करते हुए कार्यक्रम की समीक्षा डॉ. कुँअर वीर सिंह मार्तण्ड ने की। उन्होंने कार्यक्रम की बहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की। 

उन्होंने कहा कि सभी ने अपनी बहुत सुन्दर रचनायें सुनायीं। उन्होंने रचनाकार सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' को कहानी के लिए बधाई देते हुए कहा कि  उन्होंने जो कविता 'रागनी मिलन पुकार, प्रियतमा असीम चाह, सांस आख़िरी तलाक सजाऊँ अश्रु की लड़ी' सुनाई वह बहुत मधुर और संवेदनात्मक थी और वह नीरज के गीत कारवां गुजर गया की समकक्ष रचना है।

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