Skip to main content

उज्जैन कलेक्टर ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम और बचाव तथा आमजन के स्वास्थ्य की सुरक्षा को देखते हुए प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किये



उज्जैन 07 जनवरी। कलेक्टर श्री आशीष सिंह ने जिले में कोरोना संक्रमण की रोकथाम और बचाव तथा आमजन के स्वास्थ्य की सुरक्षा को देखते हुए सम्पूर्ण जिले की राजस्व सीमाओं में प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किये हैं। इसके अनुसार जिले में सभी प्रकार के मेले तथा सामूहिक स्नान जिनमें जनसमूह एकत्रित होता है, प्रतिबंधित रहेंगे। विवाह आयोजनों में दोनों पक्षों के मिलाकर अधिकतम 250 लोगों की उपस्थिति की अनुमति रहेगी। आयोजन के दौरान मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सेनीटाइजर के इस्तेमाल का पालन किया जाना अनिवार्य होगा। अन्तिम संस्कार/उठावना में अधिकतम 50 लोगों को ही अनुमति दी जा सकेगी।

समस्त सार्वजनिक स्थलों पर मास्क का उपयोग किया जाना बन्धनकारी रहेगा। कलेक्टर ने आयुक्त नगर पालिक निगम, मुख्य नगर पालिका, नगर परिषद अधिकारी, सीईओ जिला पंचायत, समस्त सीईओ जनपद पंचायत, समस्त एसडीएम को निर्देश दिये हैं कि ऐसे क्षेत्रों को जहां संक्रमण को रोकने के लिये जरूरी हो, कंटेनमेंट झोन घोषित कर आवश्यक प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करें।

आमजन समुदाय को कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करना अनिवार्य होगा। मास्क ठीक ढंग से न पहनने और मास्क नहीं पहनने वालों पर 200 रुपये का अर्थदण्ड आरोपित किये जाने के निर्देश सम्बन्धित अधिकारियों को दिये गये हैं।

अन्य देशों से आये व्यक्तियों की जानकारी होने पर शासकीय और अशासकीय चिकित्सालय, नर्सिंग होम को जिन्हें यदि किसी व्यक्ति को कोरोना संक्रमित होने की आशंका प्रतीत होती है, उनका रिकार्ड रखना जरूरी है। ऐसे व्यक्तियों को क्वारेंटाईन आइसोलेशन में रखा जाना अनिवार्य होगा और ऐसे व्यक्तियों की जानकारी सीएमएचओ तथा स्मार्ट सिटी कार्यालय में बनाये गये कोरोना कंट्रोल रूम को देना अनिवार्य होगा।

किसी भी प्रकार की भ्रामक जानकारी, अप्रमाणित सन्देश, रयूमर का प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार करना तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया गया है। आपदा की गंभीरता एवं परिणाम के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देकर किसी प्रकार का आतंक या संत्रास फैलाये जाने जैसा आपराधिक कृत्य कारित करने वाला व्यक्ति डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की धारा-54 के तहत दण्ड का भागीदारी होगा।

कलेक्टर ने निर्देश दिये हैं कि कोविड-19 की आरटीपीसीआर जांच रेपिड एंटीजन टेस्ट आदि के सम्बन्ध में भारत सरकार/राज्य सरकार एवं आईसीएमआर द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल और गाईड लाइन का पालन सुनिश्चित किया जाये। सेम्पल लेते समय ही व्यक्ति का नाम, पूर्ण पता, वास्तविक मोबाइल नम्बर, सम्पूर्ण सूचना, आरटीपीसीआर एप पर अपलोड करते हुए संधारित की जाये। उक्त सूचना गोपनीय रखी जाये।

निजी जांच प्रयोगशालाओं, सेम्पल कलेक्शन सेन्टर, अस्पताल द्वारा कोविड-19 की जांच का परिणाम राज्य सरकार एवं आईसीएमआर के साथ वास्तविक समय आधार पर आईसीएमआर पोर्टल पर साझा करते हुए आरटीपीसीआर एप पर भी तत्काल अपलोड किया जाये। जांच में मरीज के कोविड-19 से संक्रमित पाये जाने पर इसकी सूचना तत्काल सीएमएचओ एवं सम्बन्धित आईडीएसपी सेल को दी जाये।

निजी जांच प्रयोगशालाओं, सेम्पल कलेक्शन सेन्टर/अस्पतालों द्वारा आरटीपीसीआर एवं रेपिड एंटीजन टेस्ट से उत्पन्न समस्त डाटा, ग्राफ एवं किट्स के बैच नम्बर के रिकार्ड सुरक्षित रखे जायें, ताकि आवश्यकता होने पर इनका सत्यापन भविष्य में किया जा सके। कोविड संक्रमित मरीज के निवास पर बनाये गये कंटेनमेंट एरिया के अन्तर्गत पूर्ण रूप से आवागमन प्रतिबंधित रहेगा। कंटेनमेंट एरिया के समस्त निवासियों तथा कोविड संक्रमित मरीज के परिजन निकट सम्पर्क में रहने वालों को होम क्वारेंटाईन में रहना अनिवार्य होगा।

कंटेनमेंट एरिया के भीतर निवास करने वाले सभी व्यक्तियों को ड्यूटी पर लगे हुए सभी अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा विधिसंगत निर्देशों का पालन करना अनिवार्य होगा। अपालन की स्थिति में उत्तरदायी व्यक्ति डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की धारा-51 के तहत दण्ड का भागी होगा।

कलेक्टर द्वारा जारी उक्त आदेश का उल्लंघन भादंसं-1860 की धारा-188 तथा डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट-2005 के प्रावधानों के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध होगा। उक्त आदेश आगामी आदेश तक की अवधि के लिये प्रभावशील रहेगा।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम