Skip to main content

कोरोना की तीसरी लहर देखते हुए विक्रम ने तैयार किये आरोग्य मित्र


उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की अध्ययनशालाओं द्वारा कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय जी के मार्गदर्शन में सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने हेतु कोविड हेल्प डेस्क का गठन किया गया। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर विज्ञान संस्थान द्वारा महत्त्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया।  इसका उद्देश्य समाज में विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं छात्रों को आरोग्य मित्र के रूप में तैयार कर, समाज में अपनी भागीदारी के द्वारा कोरोना से बचाव के उपायों का प्रचार करना था।  कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय द्वारा की गयी। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में छात्रों एवं शिक्षकों से आग्रह किया कि कोरोना के प्रति अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करें। साथ ही साथ उन्होंने विभिन्न गतिविधियों, जैसे वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण एवं हरित परिसर की पहल पर भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने सभी छात्रों एवं शिक्षकों से आग्रह किया कि अपने जन्मदिन पर एक पौधा अपने परिसर में लगाएँ एवं उसकी देखरेख करें। 

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ प्रज्ञान त्रिपाठी, एमडी आयुर्वेद, निदेशक, नर्मदे आयुर्वेदम थे। उन्होंने अपने वक्तव्य में आयुर्वेद का स्वर्णिम इतिहास एवं उससे जुड़े विभिन्न लाभों को विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया। उन्होंने बतलाया कि हमारे आसपास मौजूद प्राकृतिक चीजें, जैसे पेड़ पौधे, फूलों एवं आहार को औषधि के रूप में हम सेवन कर स्वयं को स्वस्थ रख सकते हैं। साथ ही अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं। कोरोना जैसे भयानक वायरस से कैसे बचें, इसका घरेलू प्रयोग उन्होंने प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम का आयोजन कंप्यूटर विज्ञान संस्थान विक्रम विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में दिनांक 6 जनवरी को कोविड हेल्प डेस्क समिति के अंतर्गत आयोजित किया गया। इसके संयोजक डॉ. प्रशांत पुराणिक, कुलसचिव, विक्रम विश्वविद्यालय एवं सदस्य श्री शेखर दिसावल थे।  संस्था के प्रभारी निदेशक डॉ कमल बुनकर द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा एवं अतिथियों का परिचय विस्तृत रूप से किया गया।

कार्यक्रम का संचालन एवं आभार डॉ लोकेश कुमार लड्डानी द्वारा किया गया। 

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम