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मालवा की विलक्षण पहचान है लोक नाट्य माच – प्रो शर्मा

विक्रम विश्वविद्यालय में आयोजित विशिष्ट परिसंवाद में हुआ भारतीय नाट्य परंपरा और मालवा के लोकनाट्य माच पर मंथन

लोक संस्कृति मनीषी डॉ पूरन सहगल एवं डॉ शिव चौरसिया का सारस्वत सम्मान हुआ


उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा श्री सिद्धेश्वर सेन माच कला केंद्र, उज्जैन एवं क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से भारतीय नाट्य परंपरा और मालवा के लोकनाट्य माच पर केंद्रित विशिष्ट परिसंवाद एवं सम्मान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं रंग समीक्षक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि लोक संस्कृति मनीषी डॉ पूरन सहगल एवं डॉ शिव चौरसिया थे। विशिष्ट अतिथि लोक संपर्क ब्यूरो के क्षेत्रीय अधिकारी श्री दिलीप सिंह परमार एवं डॉ जगदीश चंद्र शर्मा थे।

परिसंवाद में कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भरतमुनि का नाट्यशास्त्र विश्व संस्कृति को भारत की अविस्मरणीय देन है। मालवा का लोकनाट्य माच समग्र रंगमंच है। यह मालवा सहित पूरे मध्यप्रदेश की विलक्षण पहचान है। माच परंपरा के रत्न स्व श्री सिद्धेश्वर सेन भरतमुनि के आधुनिक वंशज थे। माच के विकास में मालवा की अनेक लोकानुरंजक कला प्रवृत्तियों का योगदान रहा है। यहाँ प्रचलित स्वांग, गरबी गीत, ढारा-ढारी के खेल, तुर्रा कलंगी, नकल की प्रवृत्ति और लोकाचारों के संयोग से इसका विकास हुआ। नृत्य, गान, संगीत, अभिनय के विविध रूप, आध्यात्मिकता, नकल-स्वांग की प्रवृत्ति, निर्गुणी भक्ति, पुरुषों द्वारा स्त्री पात्रों की भूमिका जैसे कई रंग व्यवहार माच में आज भी मौजूद हैं। नए दौर में इसमें प्रयोगशीलता की प्रवृत्ति भी दिखाई देती है, जिसमें माच गुरु श्री सेन ने विशिष्ट योगदान दिया।

डॉ पूरन सहगल ने कहा कि लोक साहित्य के क्षेत्र में कार्य करना एक बड़े ढेर में से सोने के कण को खोजने के समान है। माच देश के अन्य सभी लोकनाट्य रूपों से भिन्न है। इसमें अभिनय, नृत्य और संगीत - तीनों में सिद्धहस्त होना कलाकार के लिए अनिवार्य है। हमारा देश मुख्य रूप से श्रोताओं का देश है। लोक साहित्य वाचिक परम्परा के माध्यम से लेखक को सदैव जीवित रखता है।

डॉ शिव चौरसिया ने कहा कि माच गुरु श्री सिद्धेश्वर सेन के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि माच स्व श्री सिद्धेश्वर सेन के बिना अधूरा है। उन्होंने माच को एक नई दिशा दी और उसमें से अश्लीलता को पूरी तरह से समाप्त कर दिया था। कार्यक्रम को डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा एवं श्री दिलीप सिंह ने भी संबोधित किया। श्री सिद्धेश्वर सेन की पौत्री स्वाति सुदीप ऊखले ने श्री सेन द्वारा रचित राजयोगी भरथरी माच से गीत की प्रस्तुति की।
कार्यक्रम में डॉ पूरन सहगल उनके लोक साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में योगदान के लिए शॉल, श्रीफल एवं पुष्पगुच्छ अर्पित कर सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार डॉ शिव चौरसिया को मालव सिद्ध अवार्ड 2022 से सम्मानित किया गया। परिसंवाद के एक दिवस पूर्व उज्जैन जिले के आजमपुरा निवासी माच के वरिष्ठ कलाकार श्री अमर बगाना को मालव सिद्ध अवार्ड से नवाजा गया। श्री सिद्धेश्वर सेन की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित सम्मान समारोह में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी डॉ विजय कुमार गवई तथा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री लोकेंद्र जी त्रिवेदी ने वीडियो के माध्यम से श्रद्धासुमन अर्पित किए।

माच के आधुनिक गुरु स्वर्गीय श्री सिद्धेश्वर सेन की बीसवीं पुण्यतिथि के अवसर पर सम्पन्न इस परिसंवाद के अवसर पर डॉ जगदीश चन्द्र शर्मा, प्रेमकुमार सेन, श्रीमती कृष्णा वर्मा, डॉ अजय शर्मा, रामगोपाल भाटी, श्री अनिकेत प्रेमकुमार सेन, स्वाति सुदीप ऊखले, पूर्णिमा आशीष चौहान, डॉ प्रियंका परस्ते, श्रीमती हीना तिवारी, कमल चंदेल, रमेश असवार, गगन जौहरी, शोधकर्ता एवम् कलाकार उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन वरिष्ठ रंगकर्मी श्री प्रेम कुमार सेन ने किया।

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