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भारतीय साहित्य और दर्शन की परंपरा के अद्वितीय संवाहक थे आचार्य त्रिपाठी

आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी जयन्ती समारोह एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के वाग्देवी भवन स्थित हिंदी अध्ययनशाला सभागार में प्रख्यात मनीषी और समालोचक आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की 93 वीं जयंती समारोह में उनके आलोचना कर्म के विविध आयामों पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय थे। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शिव चौरसिया को आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत किया गया। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं समालोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ विभा दुबे (मिर्जापुर, उप्र) एवं डॉ विवेक चौरसिया थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने की। विभिन्न वक्ताओं ने अपने व्याख्यानों के माध्यम से आचार्य त्रिपाठी जी के जीवन, लेखन और आलोचना के क्षेत्र में योगदान पर प्रकाश डाला।

कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि आचार्य त्रिपाठी भारतीय साहित्य एवं दर्शन की परंपरा के संवाहक थे। भारतीय परंपरा में गुरु, माता और पिता की भक्ति को महत्व मिला है। अनेक साहित्यकारों और शोधार्थियों के व्यक्तित्व के निर्माण में आचार्य त्रिपाठी जैसे गुरुओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आचार्य त्रिपाठी का स्मरण करना गुरु शिष्य परंपरा को महत्व देना है। कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि आचार्य त्रिपाठी ने भारतीय रस और ध्वनि सिद्धान्तों की अभिनव व्याख्या की। उनकी आलोचना पद्धति भारतीय चिंतन धारा की सुदृढ़ आधार भूमि पर खड़ी हुई है। वे मानते थे कि आलोचक संवेदनागत सौन्दर्य के जितना नजदीक होगा, आलोचना के मूल मर्म के साथ न्याय कर पाएगा। उनकी दृष्टि में आलोचना, कृति के माध्यम से साक्षात्कृत मूल संवेदना का सर्जनात्मक पुनराख्यान है। आचार्य त्रिपाठी की दृष्टि में तंत्र एक ऐसी युक्ति का नाम है जिसके माध्यम से हम अपनी अपरिमेय संभावनाओं से युक्त शक्ति को स्वायत्त कर सकते हैं, जो अज्ञान के कारण प्रसुप्त पड़ी हुई है। सन 2028 से आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के जन्म शताब्दी वर्ष को बड़े पैमाने पर मनाया जाएगा।

प्रो गीता नायक ने कहा कि आचार्य त्रिपाठी का व्यक्तित्व अत्यंत सहज और सरल था। वे भारतीय काव्यशास्त्र के धुरीण विद्वान थे। उनकी शैली आचार्य रामचंद्र शुक्ल की तरह सूत्रात्मक थी। उनकी मान्यता थी कि काव्य के प्रतिमान परिवर्तनशील है। इसलिए काव्य का लक्षण मानवीय अनुभूतियों के आधार पर दिया जाना चाहिए। उन्होंने काव्य के हेतुओं पर व्यापक प्रकाश डाला, जो आज भी प्रासंगिक है। डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने भारतीय काव्यशास्त्र के प्रतिमानों को लेकर महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने सभी काव्य धाराओं की समीक्षा उन प्रतिमानों के आधार पर की। भक्ति साहित्य पर उनका असाधारण अधिकार था। उन्होंने अल्प चर्चित काव्यधारा और कवियों की चर्चा करते हुए उनके महत्व का प्रतिपादन किया। उनकी दृष्टि आस्थावादी थी। नई आलोचना और रचनाओं की सम्यक् पड़ताल भी उन्होंने की। सारस्वत अतिथि डॉक्टर शिव चौरसिया ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ने हिंदी साहित्य के इतिहास का पुनर्लेखन किया था। भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रति उनमें गहरी निष्ठा थी। भारतीय काव्यशास्त्र एवं चिंतन के महत्वपूर्ण विद्वान के रूप में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। अध्यक्षीय उद्बोधन डॉक्टर हरिमोहन बुधौलिया ने दिया। उन्होंने कहा कि आचार्य त्रिपाठी ने विद्यार्थियों में ऊर्ध्वगामी संभावनाओं को चरितार्थ करने पर बल दिया। उनमें गहरी साहित्यिक एवं आध्यात्मिक मेघा थी।

डॉ विभा दुबे ने आचार्य त्रिपाठी से जुड़े संस्मरण सुनाते हुए कहा कि आचार्य त्रिपाठी पुरातनता के साथ प्रगतिशीलता के पोषक थे। वे परिवारजनों के बीच गुरु के रूप में थे। उनकी शिक्षा आज भी हम लोगों के लिए पाथेय बनी हुई है। डॉ विवेक चौरसिया ने आचार्य त्रिपाठी पुस्तक गुरु महिमा पर चर्चा करते हुए कहा कि जिस पर गुरु की कृपा हो जाती है उसे देवत्व मिल सकता है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शिव चौरसिया को अतिथियों द्वारा शॉल, श्रीफल एवं सम्मान राशि अर्पित कर उन्हें आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत किया गया।
इस दौरान श्री अमिताभ त्रिपाठी, श्री पद्मनाभ त्रिपाठी आदि सहित अनेक साहित्यकार, विभिन्न प्रान्तों के शोधकर्ता एवं आचार्य त्रिपाठी जी के परिवारजन उपस्थित थे। संगोष्ठी का संचालन एवं आभार प्रदर्शन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।

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