राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसका विषय- " विश्व विजेता सन्यासी स्वामी विवेकानंद जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व" में मुख्य अतिथि के रूप में श्री ब्रजकिशोर शर्मा जी, संस्था अध्यक्ष , उज्जैन अपना वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि, महान लोग विचारों से ही लोगों के बीच जीवित रहते हैं । विवेकानंद जी कहते थे- अगर हम समुद्र के किनारे पर खड़े हों और लहरों को टकराते सुनें तो बहुत भारी आवाज सुनाई देती है पर, यह एक लहर ही नहीं , बहुत छोटी-छोटी लहरों के टकराने की समग्र ध्वनि है । इसी तरह महान पुरुषों के छोटे-छोटे कार्य ऐसे होते हैं जो कि, हमारे व्यक्तित्व पर छाप छोड़ जाते हैं।कार्यक्रम की अध्यक्षता डा बालासाहेब तोरस्कर महाराष्ट्र ने की।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता -श्रीमती सुवर्णा जाधव कार्यकारी अध्यक्ष , पुणे, महाराष्ट्र ने कहा - उनके विचार कालातीत हैं। आज भी हम को प्रेरणा देते हैं । उनके शिष्यों को लिखे पत्रों का जिक्र करते हुए कहा कि, इंसान को जीने के लिए हवा पानी और खाना ही जरूरी नहीं है। उसके लिए स्वतंत्रता भी जरूरी है । उसे हर बात की आजादी होनी चाहिए।डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, राष्ट्रीय मुख्य संयोजक, पुणे ने कहा - विवेकानंद जी कहते थे कि, हम वही बनते हैं जो हमारे विचार हमें बनाते हैं।
श्री हरेराम बाजपेई इंदौर ने कहा कि, उनके विचारों की अगर एक बूंद को भी हम अपना लेते हैं तो, हमारा जीवन सार्थक हो जाएगा।
डॉ. प्रभु चौधरी, राष्ट्रीय महासचिव उज्जैन ने सुंदर संस्कृत के श्लोक - असतो मां सद्गमय से प्रस्तावना की शुरुआत की और कहा कि , 'साहस' शब्द से अधिक साहसी कर्म करने चाहिए।
डॉ. अनुराधा सिंह ने कहा कि- राजमाता जीजाऊ से माताओं को सीखना चाहिए।डॉ.अनसूया अग्रवाल जी ने कहा कि- वे इतने प्रखर इतने ऊर्जावान और इतने ओजस्वी थे कि, निराश व्यक्ति भी अपने अंदर जीने की ललक पैदा कर सकता है । वे कहते थे कि, जिस पल मैं हर व्यक्ति में ईश्वर देखता हूं, उस पल मैं ईश्वर को देख लेता हूं।
श्रीमती भुनेश्वरी जायसवाल जी ने कहा कि- उन्हें भारत की संस्कृति से बहुत लगाव था और उन्होंने विदेश में एक व्यक्ति से कहा कि, जब आपने अपनी मातृभाषा का सम्मान किया था । मैंने अपनी मातृभाषा का सम्मान किया पर जब आपने मेरी मातृभाषा का सम्मान किया तब मैंने आपकी मातृभाषा का सम्मान किया । उस की घटना का वर्णन किया । डॉ.संध्या भोई ने कहा कि, - विवेकानंद जी अभिनव भारत के निर्माण में सतत प्रयत्नशील रहे।डॉ. जया आनंद जी ने कहा कि- भक्ति मतलब, देशभक्ति चर्चा का विषय नहीं , मैं इस पर विश्वास करता हूं ऐसा वे कहते थे ।
डॉ.सुरेखा मंत्री ने कहा कि - उनके हृदय में राष्ट्रवाद की भावना में विश्व निर्माण की भावना भी समाई है ।और उनका जीवन परिचय दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत श्रीमती ज्योति तिवारी द्वारा सरस्वती वंदना से हुई। आभार व्यक्त भुवनेश्वरी जायसवाल ने किया। कार्यक्रम का सफल एवं सुंदर संचालन डॉ.रश्मि चौबे गाजियाबाद ने किया।
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्
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