Skip to main content

स्वतंत्रता के लिए विश्व स्तर पर प्रयास किए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने - कुलपति प्रो पांडेय

विक्रम विश्वविद्यालय में पराक्रम दिवस पर आयोजित किया गया विशिष्ट परिसंवाद

उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती - पराक्रम दिवस के अवसर पर महत्वपूर्ण परिसंवाद का आयोजन किया गया। यह परिसंवाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके बहुआयामी अवदान पर केंद्रित था। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। प्रमुख वक्ता कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं जीवविज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो देवेंद्र मोहन कुमावत थे।

आयोजन को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत की स्वतंत्रता के लिए विश्व स्तर पर प्रयास किए। वे जर्मनी से लेकर जापान तक देश की आजादी के लिए प्रयत्नरत रहे। उनमें लोगों को पहचानने की अद्भुत क्षमता थी। युवाओं को हमारे अमर शहीदों के बारे में जानना चाहिए। युवा ही वास्तव में परिवर्तन लाते हैं। अमर शहीदों के योगदान पर विश्वविद्यालय द्वारा दस्तावेजीकरण करते हुए पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा। इस वर्ष नुक्कड़ नाटक, काव्य पाठ आदि के माध्यम से सुभाष चंद्र बोस के योगदान से युवा पीढ़ी को अवगत कराया जाएगा।

कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वराज्य प्राप्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर कार्य किया। वे दो बार भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्होंने आजादी के लिए कई देशों से चर्चा की। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि उन्होंने ही दी थी। भारत राष्ट्र की मुक्ति के लिए उन्होंने अपना सब कुछ अर्पित कर दिया।


कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अमर योद्धा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में सशस्त्र सेना ने भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये लम्बा संघर्ष किया था। उन्होंने 1943 में आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी। इम्फ़ाल में इस अस्थायी सरकार का मुख्यालय था, जहाँ मोइरंग में इंडियन नेशनल आर्मी युद्ध संग्रहालय स्थापित है। उनके जीवन से जुड़े अनेक स्मारक आज नेताजी और आजाद हिन्द फौज की देशभक्ति, संघर्ष और समर्पण के जीवंत साक्ष्य हैं। राष्ट्रकवि श्री कृष्ण सरल ने उनके जीवन पर शोध करते हुए अनेक कृतियों का सृजन किया।

जीव विज्ञान संकाय अध्यक्ष प्रो देवेंद्र मोहन कुमावत ने कहा कि युवा संकल्प लें कि वे नेता जी द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलते हुए देश को ऊँचाइयों पर ले जाएंगे।

एनसीसी अधिकारी लेफ्टिनेंट डॉक्टर कानिया मेड़ा ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में योगदान देने वाले रणबांकुरे के योगदान के संबंध में एनसीसी के केडेट्स को जानना चाहिए। राष्ट्रीय सेवा योजना के युवा स्वयंसेवक संजय सेन ने ऐ मेरे वतन के लोगों गीत सुनाया।

विश्वविद्यालय के मुख्य प्रशासनिक भवन परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कर्मचारी, एनसीसी कैडेट्स एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एनसीसी अधिकारी लेफ्टिनेंट डॉ कानिया मेड़ा ने किया। आभार प्रदर्शन रासेयो स्वयंसेवक श्री संजय सेन ने किया।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं द