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करपात्रीजी प्रणीत ग्रन्थ ' विचार - पीयूष' का लोकार्पण, साहित्यिक पत्रिका 'कल्लोलिनी' का प्रवेशांक भी लोकार्पित

■ करपात्रीजी प्रणीत ग्रन्थ ' विचार - पीयूष' का लोकार्पण 
■ साहित्यिक पत्रिका 'कल्लोलिनी' का प्रवेशांक भी लोकार्पित


उज्जैन, रविवार, 05 दिसम्बर, 2021 । अनन्तश्रीविभूषित ब्रह्मलीन स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज- प्रणीत ग्रन्थ ' विचार- पीयूष' का लोकार्पण रविवार, 05 दिसम्बर, 2021 को शाम 5 बजे मध्यप्रदेश सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान, भरतपुरी, उज्जैन (मध्यप्रदेश) में धर्मसंघ वाराणसी के पीठाधीश्वर स्वामी श्री शंकरदेव चैतन्य ब्रह्मचारी जी, श्री चारधाम मन्दिर उज्जैन पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर स्वामी श्री शान्तिस्वरूपानन्द गिरिजी, श्री रामानुजकोट उज्जैन से युवराज स्वामी श्री माधव प्रपन्नाचार्य जी, विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. बालकृष्ण शर्मा जी एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ. प्रमोद त्रिवेदी जी द्वारा किया गया।


उक्त जानकारी देते हुए धर्मसंघ वाराणसी के महामंत्री श्री जगजीतन पाण्डेय तथा श्रीमती इन्दु कमलेश मिश्र ने बताया कि, इस अवसर पर साहित्यिक पत्रिका 'कल्लोलिनी' का प्रवेशांक भी लोकार्पित किया गया । 


● इस अवसर पर अपने उद्बोधन में अखिल भारतीय धर्म संघ के अध्यक्ष स्वामी श्री शंकरदेव चैतन्य ब्रह्मचारी जी ने कहा कि, आज धर्म सम्राट करपात्रीजी के बताए रास्ते पर चलने की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति और परम्परा से विमुख होकर आधुनिक जीवनशैली अपनाने के कारण ही आज मानवता अनेक संकटों का सामना कर रही है। उन्होंने कहा कि, धर्म सम्राट करपात्रीजी ने ग्रन्थ 'विचार- पीयूष' में आदर्श जीवन शैली की ओर संकेत किया है। इसलिए अब अपनी परंपरा की ओर लौटने का समय है । धर्मसंघ वाराणसी द्वारा प्रकाशित ग्रंथ 'विचार- पीयूष' में धर्म सम्राट करपात्रीजी महाराज ने सनातन धर्म और संस्कृति की व्याख्या करते हुए धर्मानुकूल आचरण पर बल दिया है। 



● श्री चारधाम मन्दिर उज्जैन के पीठाधीश्वर स्वामी श्री शान्तिस्वरूपानन्द गिरिजी ने कहा कि, पूज्य करपात्रीजी महाराज चलते- फिरते शब्दकोश थे।  वे वेद-वेदान्त के किसी भी ग्रन्थ में उल्लिखित किसी भी श्लोक की संदर्भ सहित व्याख्या कर देते थे। करपात्रीजी ने ग्रन्थ में केवल शब्द ही नहीं दिए बल्कि जो आत्मसात किया वही 'विचार -पीयूष' के रूप में प्रवाहित किया। उन्होंने कहा कि, करपात्रीजी महाराज संत शिरोमणि थे, वे सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने देश- समाज  और सनातन धर्म की रक्षा के लिए बहुत संघर्ष किया । उनके ग्रन्थ के लोकार्पण समारोह पर उन्हें सही भावांजलि यही होगी कि हम उनके बताए रास्ते पर चलें । 


● इस अवसर पर श्री रामानुजकोट उज्जैन के युवराज स्वामी श्री माधव प्रपन्नाचार्य जी ने कहा कि, धर्म सम्राट करपात्रीजी महाराज स्वयं साक्षात सनातन धर्म के रूप में ही विचरण करते थे, ऐसे करपात्रीजी महाराज के विचार इस ग्रन्थ के माध्यम से पीयूष ही प्रवाहित करते हैं। उन्होंने कहा कि, उज्जयिनी में 'विचार- पीयूष' का प्रकाशन और लोकार्पण इस मायने में महत्वपूर्ण है कि उज्जयिनी कालगणना का केन्द्र रहा है और हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि अपनी नयी पीढ़ी को धर्म- संस्कृति से परिचित कराएं। करपात्रीजी महाराज प्रणीत ग्रन्थ 'विचार -पीयूष' का अवगाहन इसमें सहायक होगा ।


● विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और उद्भट संस्कृत विद्वान डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि, ग्रन्थ 'विचार पीयूष'  में करपात्रीजी महाराज के विचार भारतीय जीवन के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि, स्वामी जी ने राजनीति पर भी विचार व्यक्त किए हैं। श्री शर्मा ने कहा कि अध्ययन बहुत लोग करते हैं लेकिन उसे समझकर आत्मसात कुछ करते हैं। आत्मसात करने वाले में से कुछ ही उसे आचरण में उतारते हैं और उसके अगले चरण विचार तक पहुँच सकने वाले अल्प होते हैं जो चारों चरण पार कर विचारों को पीयूष के रूप में देते हैं, करपात्रीजी ऐसे ही महापुरुष थे। 


● साहित्यकार श्री प्रमोद त्रिवेदी ने कहा कि, उज्जैन से साहित्यिक पत्रिका  'कल्लोलिनी'  का प्रकाशन उसी परंपरा का निर्वाह है जो परंपरा पं. सूर्यनारायण व्यास ने शुरू की थी । उन्होंने कहा आशा है कि,  श्री अशोक रक्ताले  के सम्पादकत्व में देश के ख्यात प्रकाशन संस्थान 'अक्षर विन्यास' द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'कल्लोलिनी' स्तरीय साहित्यिक सामग्री की क्षुधा शांत करेगी । 


● कार्यक्रम का संचालन श्री रक्ताले ने  किया और आभार श्री जगजीतन पाण्डेय ने व्यक्त किया।


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