राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के प्रमुख उद्देश्यो में मातृभाषा एवं राजभाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये प्रचार-प्रसार के साथ-साथ विश्व में हिन्दी ने द्वितीय स्थान से प्रथम विश्व की प्रथम भाषा का स्थान प्राप्त होगा। इसी विषय पर विद्वान अतिथि एवं वक्ता ‘विश्व में हिन्दी का बढ़ता प्रभाव‘ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में विचार व्यक्त करेंगे। यह जानकारी राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने देते हुए बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी की जयंती समारोह हिन्दी भवन भोपाल के महादेवी वर्मा सभागार मे द्वितीय सत्र राष्ट्रीय संगोष्ठी संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा(संकायाध्यक्ष, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन), विशिष्ट अतिथि श्री दिग्विजय शर्मा प्राध्यापक आगरा , श्री नरेन्द्रसिंह परिहार(संपादक दिवाना मेरा नागपुर), श्री जवाहर कर्नावट(निदेशक हिन्दी भवन भोपाल), विशेष वक्ता श्रीमती विनया राजाराम(बाल साहित्यकार भोपाल), श्री एस. विनयकुमार(सम्पादक कनार्टक हिन्दी पत्रिका), अध्यक्षता श्री हरेराम वाजपेयी(अध्यक्ष हिन्दी परिवार इन्दौर) करेंगे। स्वागत भाषण श्री ब्रजकिशोर शर्मा(अध्यक्ष राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन) एवं संचालन डॉ. रश्मि चौबे(महासचिव इकाई महिला गाजियाबाद) करेंगे।
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्
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