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मशरुम की खेती की ओर बढ़ रहा है किसानों का रुझान - कुलपति प्रो पांडेय

मशरुम की खेती की ओर बढ़ रहा है किसानों का रुझान - कुलपति प्रो पांडेय

जैवप्रौद्योगिकी के छात्रों को प्रायोगिक ज्ञान देने के लिए फील्ड में चल दिए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पाण्डेय


उज्जैन : जैवप्रौद्योगिकी के छात्रों को प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करने के उद्देश्य से कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने विश्वविद्यालय परिसर में भ्रमण करते हुए मशरुम की कई प्रजातियों की पारिस्थितिकी, जैवविविधता, पहचानने के लिए लक्षण तथा उनके उपयोग की जानकारी प्रदान की।
एक शैक्षिक प्रशासक का दायित्व अनुकूल शैक्षिणिक परिस्थितियों का निर्माण करता है। प्रशासक के गुणों की व्याख्या करते हुए पी. सी. रैन ने कहा है कि "जो घड़ी के लिए मुख्य: स्प्रिंग है, या मशीन के लिए पहिया है, या जहाज के लिए इंजन है, वही संस्था के लिए प्रशासक है"। प्रशासक मात्र प्रबंधक नहीं होता बल्कि वह एक ऐसा नेता है, जिसे संगठित करना, निरीक्षण करना एवं पथ प्रदर्शन करना होता है । इन सबका निर्वाह करने के लिए उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली एवं प्रभावपूर्ण होना चाहिए। यह सभी बातें प्रमाणित होती है, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय में, जिनमें एक अच्छे शैक्षिणिक प्रशासक के समस्त गुण विद्यमान है, जो एक प्रशासक के साथ-साथ कुशल शिक्षक भी है। ऐसे कई उदाहरण है, जब कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय विभागों के निरीक्षण करने हेतु निकलते हैं, तो वह एक प्रशासक के अंदर स्थित कुशल शिक्षक की अपनी भावना को रोक नहीं पाते और क्लासरूम में पहुंच जाते हैं, जहाँ वह चाक लेकर बच्चों को पढ़ाते हुए नज़र आते हैं।

प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में बी एससी जैवप्रौद्योगिकी प्रथम सेमेस्टर के छात्रों से चर्चा करते समय उन्होंने कई बार छात्रों को विभिन्न विषयों पर अध्यापन एवं प्रायोगिक ज्ञान प्रदान किया । कुछ दिन पूर्व, प्रोफेसर पाण्डेय बी.एससी. (ओनर्स) जैवप्रौद्योगिकी के छात्रों को प्रायोगिक ज्ञान प्रदान कर रहे थे। उसी समय कुछ छात्रों ने उनसे फंगी (मशरुम) की कालोनी निर्माण, जैवविविधता, पारिस्थितिकी, लक्षणों से सम्बंधित कई प्रश्न पूछे तो उनके अंदर उपस्थित एक कुशल शिक्षक अपने आपको कैसे रोक सकता था। प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच भी उन्होंने छात्रों के साथ प्रायोगिक अध्ययन हेतु पैदल ही विश्वविद्यालय परिसर में भ्रमण करने का निर्णय लिया। विश्वविद्यालय परिसर में उन्होंने छात्रों को मशरुम के वास-स्थान, पारिस्थितिकी, अनुकूल तापमान, कालोनी निर्माण और जैव- विविधिता की जानकारी देते हुए विभिन्न प्रकार के मशरुम जैसे एगेरिकस, गैनोडर्मा, ऑरिक्युलरिया, ओएस्टर मशरुम आदि को पहचानने हेतु उनके लक्षणों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की।


कुलपति जी के कुशल शिक्षण से प्रेरित बी.एससी. जैवप्रौद्योगिकी प्रथम सेमेस्टर के छात्र कहते हैं कि कुलपति सर द्वारा दी गयी जानकारी को हम सभी छात्र अपनी प्रायोगिक रिकॉर्ड में लिखते है तथा उन्हीं से नए-नए प्रयोग करते रहते हैं।


यह सर्वविदित है कि प्रोफेसर पांडेय देश के एक प्रतिष्ठित कवक वैज्ञानिक है, अतः उनके द्वारा छात्रों को दी गयी जानकारी छात्रों के भविष्य के लिए अधिक उपयोगी होगी। प्रायोगिक भ्रमण के इस अवसर पर प्रोफेसर पाण्डेय ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से देश में किसानों का रुझान मशरुम की खेती के लिए बढ़ा है। मशरुम की खेती बेहतर आमदनी का जरिया बन सकती है। मशरुम में प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, खनिज लवण और विटामिन की भरपूर मात्रा होती है, जिसके कारण यह औद्योगिक उत्पादों के निर्माण हेतु अपना एक विशेष महत्त्व रखता है। इसके द्वारा मशरुम के पापड़, अचार, बिस्किट, टोस्ट, जैम, सेव, चकली आदि भोज्य पदार्थो का निर्माण किया जा सकता है।


प्रायोगिक भ्रमण के इस कार्यक्रम में कुलपति जी के साथ प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के शिक्षकगण डॉ सलिल सिंह, डॉ अरविन्द शुक्ला, डॉ संतोष कुमार ठाकुर, डॉ शिवि भसीन, शोध छात्रा कुमारी पूर्णिमा त्रिपाठी एवं बी.एससी. जैवप्रौद्योगिकी प्रथम सेमेस्टर के छात्रा कुमारी छवि मैदान, कुमारी युक्ता लुल्ला, कुमारी चेल्सी पॉल तथा विभाग के अन्य छात्र एवं छात्राएं उपस्थित थे।

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