युवा शक्ति में स्वतंत्रता आंदोलन के सम्बंध में गौरव का भाव जरूरी
आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत स्वतंत्रता आंदोलन के विशेषज्ञ डॉ सुधीर भसीन से चर्चा की कुलपति प्रो पाण्डेय ने
15 अगस्त 2022 देश को आजादी की 75 वीं सालगिरह पूर्ण होने जा रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में सम्पूर्ण देश में आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इसी सन्दर्भ में विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा भी कई सांस्कृतिक, कलात्मक एवं शैक्षणिक कार्यक्रमों का आयोजन लगातार जारी है। उपरोक्त कार्यक्रम की निरंतरता में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने स्वतंत्रता सेनानियों के विशेषज्ञ एवं शहीदे आज़म भगत सिंह पर शोध उपाधि पूर्ण करने वाले एकमात्र शोधकर्ता डॉ सुधीर भसीन अधिवक्ता (उच्च न्यायालय) से सौजन्य भेट की एवं स्वतंत्रता सेनानियों तथा शहीद भगत सिंह से सम्बंधित विचार-विमर्श किया। इस अवसर पर प्रोफेसर पाण्डेय ने कहा कि युवा शक्ति को स्वतंत्रता आंदोलन के सम्बंध में गौरव का भाव रखना चाहिए। उन्हें अमर शहीद सेनानियों की सही जानकारी प्रदान किया जाना भविष्य के लिए आवश्यक है। इससे छात्रों में अपने देश के प्रति भक्ति, निष्ठा, कर्तव्यपरायणता एवं समर्पण की भावना जागृत होती है। इस अवसर पर डॉ सुधीर भसीन ने स्पष्ट किया कि भारत के इतिहास में यह अनोखी बात है कि जब भी भारतीय सम्पदा एवं स्वाधीनता पर संकट आया है तब-तब किसी देशभक्त ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने परिश्रम एवं त्याग से संकट ग्रस्त भारत माता को पुनः नवीन परिश्रम, शक्ति एवं सौन्दर्य से अभिभूत किया है। भगत सिंह भारत माता के उन्ही दैदीप्यमान रत्नों में से एक थे। भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव का बलिदान दिवस 23 मार्च 1931 ऐसा ही पावन दिवस है।
कुलपति प्रोफेसर पाण्डेय से चर्चा करते हुए डॉ भसीन ने अनेक प्रेरणादायक तथ्यों का उल्लेख किया।
इनमें प्रमुख हैं -
(1) मेरे शोधकार्य का उद्देश्य भगत सिंह की लोकप्रियता एवं उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को जीवित सम्मान देने का प्रयास भर रहा है।
(2) भगत सिंह बचपन से क्रांति के अद्भुत अनुयायी थे। इनके द्वारा सभी क्रांतिकारियों को अपनी डेयरी से दूध का वितरण मुफ़्त में किया जाता था।
(3) भगत सिंह जलियावाला बाग़ की रक्तरंजित मिटटी को मस्तिष्क पर लगाकर, उसे शीशी में भर कर लाये थे।
(4) कक्षा 9 वीं में अध्ययन करते समय उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया तथा चौरीचौरा काण्ड के बाद पूर्ण रूप से क्रन्तिकारी विचारों को धारण कर लिया।
(5) साइमन कमीशन जो 28 अक्टूबर 1928 को भारत आ रही थी, उसका विरोध करने में भगत सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी।
(6) भगत सिंह ऐसी क्रांति चाहते थे, जो मनुष्य पर मनुष्य का शोषण करने वाली सरकार को समाप्त कर दे।
(7) असेम्बली बम प्रकरण में भगत सिंह ने स्वेच्छा से आत्मसमर्पण किया, वे अगर चाहते तो वहा से भाग सकते थे।
(8) भगत सिंह को फांसी की सजा होने के बाद जयदेव कपूर ने भगत सिंह से पूछा की उसे कोई अफ़सोस तो नहीं है, भगत सिंह ने मुस्कुरा कर कहा कि जेल की दीवारों से इंकलाब जिंदाबाद का नारा सुनता हूँ तो सोचता हूँ कि जीवन का इससे ज्यादा क्या मोल हो सकता है।
(9) पिता किशनसिह की मर्सी पिटीशन पर भगत सिंह ने अफ़सोस जताते हुए उनसे झगड़ा किया था।
(10) भगत सिंह ने वाइसराय गवर्नर को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि हम युद्धबंदी हैं और हमें फांसी लगाए जाने की जगह गोलियों से उडा देना चाहिए ।
(11) भगत सिंह की अंतिम इच्छा बेबे (जमादारनी) के हाथ का खाना खाने की थी, वे कहते थे कि मेरी दो बेबे या माँ हैं एक ने मुझे जन्म दिया वह मेरी माँ है, दूसरी जेल में काम करने वाली बेबे अर्थात् माँ है।
(12) फांसी से 3-4 घंटे पहले वसीयत के लिए वकील प्राणनाथ मेहता ने पूछा कि आखरी सलाम किसे भेजना चाहते हो, तो इस पर भगत सिंह ने कहा कि पहला सलाम सुभाष चंद्र बोस को भेजना, फिर मेरा अंतिम सलाम मोतीलाल नेहरू को भेजना ।
(13) भगत सिंह फांसी के कुछ समय पूर्व लेनिन की पुस्तक पढ़ रहे थे और जैसे ही जेलर ने उन्हें फांसी के लिए बुलवाया, उन्होंने किताब को उछालते हुए कहा कि चलो एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिलने जा रहा है।
इस अवसर पर डॉ भसीन ने कुलपति प्रो पाण्डेय को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय में अध्ययनरत शोधार्थी जो राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन क्षेत्र में शोध कार्य कर रहे हैं, उनके लिए हमारी पुस्तकालय एवं मेरे द्वारा यथासंभव सहयोग प्रदान किया जायेगा। इस कार्यक्रम में प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, प्राणिकी एवं जैव- प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के डॉ सलिल सिंह, डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ शिवि भसीन एवं डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी उपस्थित थे।
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