Skip to main content

विक्रम विश्वविद्यालय में संचालित पाठ्यक्रमों में रिक्त सीटों पर प्रवेश के लिए 14 अक्टूबर तक किए जा सकेंगे आवेदन

विक्रम विश्वविद्यालय में संचालित पाठ्यक्रमों में रिक्त सीटों पर प्रवेश के लिए 14 अक्टूबर तक किए जा सकेंगे  आवेदन 

अध्ययनशालाओं में संचालित 205 से अधिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए पहली बार आए साढ़े तीन हजार से अधिक आवेदन



उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन  की विभिन्न अध्ययनशालाओं  एवं संस्थानों में संचालित 205 से अधिक स्नातकोत्तर, स्नातक, डिप्लोमा एवं प्रमाण पत्र पाठ्यक्रमों में मेरिट के आधार पर प्रवेश की प्रक्रिया  चल रही है। ये पाठ्यक्रम विज्ञान, जीव विज्ञान,  इंजीनियरिंग, व्यवसाय प्रबंधन, कला, समाज विज्ञान, विधि, वाणिज्य, शारीरिक शिक्षा, कृषि, कंप्यूटर विज्ञान,  नॉन फॉर्मल एजुकेशन, फॉरेंसिक साइंस, फूड टेक्नोलॉजी आदि संकाय और विषय क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। विश्वविद्यालय में संचालित विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए पहली बार अब तक तीन हजार पाँच सौ से अधिक आवेदन पत्र आ चुके हैं। विक्रम विश्वविद्यालय की अध्ययनशालाओं एवं संस्थानों में संचालित विभिन्न पाठ्यक्रमों में रिक्त सीटों पर प्रवेश के लिए आवेदन 14 अक्टूबर तक किए जा सकते हैं। 



प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि, विश्वविद्यालय के मैनेजमेंट, कम्प्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग संस्थानों में संचालित एमबीए, एमसीए एवं बी टेक – सिविल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मैकेनिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश डीटीई, भोपाल के माध्यम से हो रहे हैं। 

इस वर्ष से स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (एसओईटी) में चार एम टेक पाठ्यक्रम -  स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग, थर्मल इंजीनियरिंग, पावर सिस्टम ऑटोमेशन एवं डिजिटल कम्युनिकेशन प्रारंभ किए गए हैं।  इनमें मेरिट के आधार पर प्रवेश दिया जा रहा है।

विश्वविद्यालय में संचालित पाठ्यक्रमों से संबन्धित विस्तृत विवरण विक्रम विश्वविद्यालय की वेबसाइट   http://vikramuniv.ac.in/  से प्राप्त किया जा सकता है। विशेष जानकारी के लिए  विद्यार्थी देवास रोड पर स्थित विश्वविद्यालय के अकादमिक परिसर में विभिन्न अध्ययनशालाओं एवं संस्थानों से संपर्क कर सकते हैं। 

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्

तृतीय पुण्य स्मरण... सादर प्रणाम ।

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1003309866744766&id=395226780886414 Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bkk News Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets -  http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar

चौऋषिया दिवस (नागपंचमी) पर चौऋषिया समाज विशेष, नाग पंचमी और चौऋषिया दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

चौऋषिया शब्द की उत्पत्ति और अर्थ: श्रावण मास में आने वा ली नागपंचमी को चौऋषिया दिवस के रूप में पुरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। चौऋषिया शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द "चतुरशीतिः" से हुई हैं जिसका शाब्दिक अर्थ "चौरासी" होता हैं अर्थात चौऋषिया समाज चौरासी गोत्र से मिलकर बना एक जातीय समूह है। वास्तविकता में चौऋषिया, तम्बोली समाज की एक उपजाति हैं। तम्बोली शब्द की उत्पति संस्कृत शब्द "ताम्बुल" से हुई हैं जिसका अर्थ "पान" होता हैं। चौऋषिया समाज के लोगो द्वारा नागदेव को अपना कुलदेव माना जाता हैं तथा चौऋषिया समाज के लोगो को नागवंशी भी कहा जाता हैं। नागपंचमी के दिन चौऋषिया समाज द्वारा ही नागदेव की पूजा करना प्रारम्भ किया गया था तत्पश्चात सम्पूर्ण भारत में नागपंचमी पर नागदेव की पूजा की जाने लगी। नागदेव द्वारा चूहों से नागबेल (जिस पर पान उगता हैं) कि रक्षा की जाती हैं।चूहे नागबेल को खाकर नष्ट करते हैं। इस नागबेल (पान)से ही समाज के लोगो का रोजगार मिलता हैं।पान का व्यवसाय चौरसिया समाज के लोगो का मुख्य व्यवसाय हैं।इस हेतू समाज के लोगो ने अपने