जरूरी है कि सभी राष्ट्र प्रेमी हिंदी को अपनाएं - श्री शुक्ल
वैश्विक संदर्भ में हिंदी : संवर्धन और संभावनाएं पर हुई विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला में हिंदी दिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी वैश्विक संदर्भ में हिंदी : संवर्धन और संभावनाएं पर केंद्रित थी। आयोजन की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे एवं विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक थे। आयोजन में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने विषय से जुड़े विविध पहलुओं पर विचार व्यक्त किए। आयोजन में उपलब्धिपूर्ण कार्यकाल के एक वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय को शॉल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर उनका सम्मान किया गया।
कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है, जहां कई भाषाएं बोली जाती हैं। हिंदी आज विश्व भाषा बन गई है। हिंदी और देश के गौरव को भुलाना उचित नहीं है। मातृभाषा के माध्यम से ही वास्तविक शिक्षा प्राप्त की जा सकती है और उस शिक्षा के माध्यम से संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। उच्च स्तरीय ग्रंथ हिंदी में आने चाहिए। विश्वविद्यालय में प्रारंभ किए गए कृषि पाठ्यक्रम द्विभाषी माध्यम से संचालित किए जाएँगे। हिंदी में विज्ञान लेखन को प्रोत्साहित किया जाएगा। हमारा प्रयास होगा कि अभियांत्रिकी, कृषि, टेक्नोलॉजी में श्रेष्ठ किताबें हिंदी माध्यम से तैयार करवाई जाएं।
श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने वेब पटल के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि सभी राष्ट्र प्रेमी हिंदी को अपनाएं, यह जरूरी है। हिंदी से जुड़े अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए हम इसका गौरव बढ़ा सकते हैं। स्केंडनेवियन देशों में हिंदी के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। नॉर्वे से स्पाइल दर्पण एवं विश्वा जैसी हिंदी पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। नई पीढ़ी को हिंदी के माध्यम से संस्कारित करने की आवश्यकता है।
कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि वैश्विक संदर्भ में हिंदी आगे बढ़ रही है। हिंदी के समक्ष क्षेत्रीय भाषाओं की चुनौतियां हैं। किंतु हमें प्रयास करना होगा कि उनके बीच परस्पर आदान प्रदान हो। लिपि एवं भाषा की दृष्टि से भारत का इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण है।
हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी को विश्व भाषा बनाने में देश दुनिया के असंख्य गैर हिंदी भाषियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह आज जन भाषा से विश्व भाषा तक विस्तार ले चुकी है। सरलता, सहज ग्राह्यता और सर्व समावेशी स्वरूप के कारण यह दुनिया को जोड़ने का काम कर रही है। हिंदी कंप्यूटिंग के कारण कई कल्पनाएं हकीकत में बदलने लगी है। टेक्स्ट टू स्पीच ऑन स्पीच टू टेक्स्ट जैसे महत्वपूर्ण उपकरण हिंदी में उपलब्ध हो गए हैं। अनुवाद कार्य में तेजी आई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बदौलत हिंदी में ऐसे बहुत सारे काम करना आसान हो गए हैं, जो पहले असंभव माने जाते थे।
प्रो प्रेमलता चुटैल ने कहा कि हिंदी के प्रसार में अर्थव्यवस्था की बहुत बड़ी भूमिका रही है। भारत बहुभाषी देश है। हिंदी उसे एक सूत्र में बांधती है। भाषा के माध्यम से संस्कृति की विशेषताएं दूसरों तक पहुंचती हैं। अतः हमें हिंदी के माध्यम से श्रेष्ठ मूल्यों और परंपराओं का प्रसार करना चाहिए।
प्रो गीता नायक ने कहा कि हिंदी को महत्व न मिलने के कारण देश में भाषाई समस्या का सामना करना पड़ता है। हिंदी इस देश की संपर्क भाषा है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में यह भाषा आगे बढ़ी। विज्ञापन और जनसंचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। हमें इसकी शक्ति को पहचानना होगा।
प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने हिंदी में हस्ताक्षर का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भाषा केवल भाषा नहीं है। वह संस्कृति की संवाहिका होती है। आज बड़ी संख्या में गैर हिंदी भाषी हिंदी की सेवा कर रहे हैं।
डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि हिंदी को विचार और विमर्श की भाषा बनाने का प्रयत्न वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसके अभाव में हिंदी सामान्य जन की आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाएगी। शोधार्थी रणधीर अथिया ने बुंदेली लोकगीत सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
अतिथियों का स्वागत डीएसडब्ल्यू डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा, डॉ कानिया मेड़ा, डॉ शैलेंद्र भारल, डॉ डीडी बेदिया, डॉ गणपत अहिरवार, डॉ संग्राम भूषण, जसवंत सिंह आंजना आदि ने किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन श्रीमती हीना तिवारी ने किया। वाग्देवी भवन, देवास रोड पर आयोजित इस संगोष्ठी में शिक्षाविदों, हिंदीप्रेमियों, साहित्यकारों, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने सहभागिता की।
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