मुक्त रचनात्मक व्यक्तित्व का निर्माण करने में है शिक्षक की सार्थकता – प्रो शर्मा ; डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन : जीवन और व्यक्तित्व के विविध आयाम पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न
मुक्त रचनात्मक व्यक्तित्व का निर्माण करने में है शिक्षक की सार्थकता – प्रो शर्मा
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन : जीवन और व्यक्तित्व के विविध आयाम पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन और व्यक्तित्व के विविध आयाम पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार श्री जीडी अग्रवाल, इंदौर ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मंजू रूस्तगी, चेन्नई, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ प्रभु चौधरी, डॉ रजिया शेख, अहमदनगर, डॉ नीलिमा मिश्रा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि इस संसार में ज्ञान से पवित्र कोई वस्तु नहीं है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बात करने का मतलब है भारतीय चिंतन धारा से जुड़ना, वेदांत दर्शन से जुड़ना। भारतीयों में वैचारिक स्वाभिमान जगाने के लिए वे निरन्तर प्रयास करते रहे। शिक्षक की सार्थकता इसमें है कि वह एक मुक्त रचनात्मक व्यक्तित्व का निर्माण करे। शिक्षा के द्वारा मानव मस्तिष्क का सार्थक प्रयोग सम्भव है।
अध्यक्षीय भाषण में साहित्यकार श्री जी. डी. अग्रवाल, इंदौर ने कहा कि संस्कारित शिक्षा ही मनुष्य को शीलवान और विवेकी बनाती है। शिक्षा जब अर्थ की तराजू पर तुलती है तो सार्थक नहीं, अनर्थकारी हो जाती है। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी जी ने कहा कि अधिकारी बनना सरल है परंतु शिक्षक बनना बहुत कठिन है। शिक्षक के हाथों में देश के भावी नागरिक बनाना होता है। गुरु का ज्ञान ऐसा होना चाहिए जो छात्र के जीवन को आगे बढ़ाने में काम आए।
विशेष वक्ता कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि विश्वविद्यालय गंगा यमुना का संगम है, जहां छात्र और शिक्षक का संगम होता है। बुद्धि, इच्छा और भावना का परिष्कार होता है। डॉ रजिया शेख ने कहा कि शिक्षक ही हमें बताता है कि सामान्य से सामान्य वस्तुओं का भी मोल होता है। शिक्षक के चरित्र को देखकर ही छात्र सीखते हैं। इसलिए हमेशा उसे सच्चाई की राह पर चलना चाहिए और स्वयं की गरिमा बनाए रखना चाहिए।
श्रीमती मंजू रुस्तगी, चेन्नई ने कहा कि शिक्षक विद्यार्थी के दिमाग में तत्वों को जबरन ना भरे, बल्कि आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करे। श्रीमती प्रभा शर्मा, मुम्बई ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन के परिवार के बारे में जानकारी दी। डॉ नीलिमा शुक्ला ने कहा कि जिस देश में शिक्षक का सम्मान होता है वही देश तरक्की करता है।
कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने सरस्वती वंदना से किया। प्रस्तावना में डॉ भरत शेणकर ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन का संपूर्ण जीवन परिचय दिया।
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