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भारत की पावन भूमि में ईश्वर के दर्शन कराते हैं राष्ट्रकवि गुप्त जी – प्रो शर्मा ; राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त : सांस्कृतिक - राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

भारत की पावन भूमि में ईश्वर के दर्शन कराते हैं राष्ट्रकवि गुप्त जी – प्रो शर्मा

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त : सांस्कृतिक - राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त : सांस्कृतिक - राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इंदौर के श्री जी डी अग्रवाल थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, मुख्य वक्ता केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के प्राध्यापक डॉ दिग्विजय शर्मा, अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ प्रभु चौधरी, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की।

विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कला संकाय के डीन प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि राष्ट्र के गौरव रहे गुप्त जी को याद करना संपूर्ण भारतीय राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना के साथ जुड़ना है। गुप्तजी ने भारतवासियों को मौलिक चिंतन को जाग्रत करने का संदेश दिया। वे परमेश्वर के दर्शन भारत की पावन भूमि और उसके अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य में कराते हैं। श्री गुप्त ने जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर अखण्ड राष्ट्रीय चेतना को जगाने का आह्वान किया। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने में उनकी अविस्मरणीय भूमिका रही है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध प्रतिरोध की ताकत पैदा की। उनकी दृष्टि में भारत माता का पावन मंदिर समता का संदेश देने वाला है।
पुणे से डॉ शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि गुप्त जी राष्ट्रीयता की पावन धारा से ओतप्रोत रहे। नारी के प्रति उनकी उदार भावना स्त्री अस्मिता के लिए संदेश देती रही। वे सामंजस्यवादी भारतीय चेतना के कवि हैं। उनकी संपूर्ण रचनाओं में युगबोध और राष्ट्रीय चेतना परिलक्षित होती है। सत्य, अहिंसा, समता, सेवा जैसे गांधीवादी मूल्यों की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। गुप्तजी ने उपेक्षित नारियों के चित्रण के माध्यम से नई चेतना जागृत की।

आगरा के डॉ दिग्विजय शर्मा ने कहा कि भारत के प्राचीन गौरव, वर्तमान की दयनीय दशा और स्वर्णिम भविष्य का अद्भुत स्वरूप थे भारत के प्रथम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त। उनका कहना था कविता केवल मनोरंजन के लिए नहीं होती है। उसके माध्यम से जन जाग्रति का उद्घोष होना चाहिए। महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहा था। वे स्वतंत्रता के बाद बारह वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य रहे। चिरगांव में जन्मा भारत भारती का सपूत चिर अमर हो गया। उन्हें बड़े आदर के साथ दद्दा कहकर पुकारा जाता रहा। डॉ शर्मा ने नारी, किसान, स्वतंत्रता आदि विषयों को लेकर गुप्त जी की कई कृतियों का उद्धरण दिया। मुख्य अतिथि इंदौर के डॉक्टर जी डी अग्रवाल ने कहा कि आज लोगों को पुस्तकों से लगाव कम होता जा रहा है जो ठीक नहीं है। उन्हें गुप्त जी की रचनाएं पढ़ना चाहिए। उन्होंने गुप्त जी की बहुत ही प्रसिद्ध रचना नर हो न निराश करो मन को का पाठ किया। गाजियाबाद से डॉ रश्मि चौबे ने साकेत, उर्मिला, भारत भारती, यशोधरा, पंचवटी आदि कई कृतियों का संदर्भ देते हुए कहा कि गुप्त जी गांधी जी से प्रभावित थे। गुप्तजी ने हिंदी को यौवन प्रदान किया। संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने गुप्त जी के अवदान की चर्चा करते हुए संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इंदौर के श्री हरेराम बाजपेयी ने गुप्त जी द्वारा 6 सितंबर 1952 में इंदौर के वीर वाचनालय भवन के शिलान्यास और श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति में काव्य पाठ के संदर्भ प्रस्तुत किए। रायपुर की डॉ मुक्ता कौशिक ने उन्हें लोक का कवि बताया। नार्वे से श्री सुरेश चंद शुक्ला ने कहा कि उनका काव्य कर्तव्य की ओर उन्मुख करने वाला रहा। संगोष्ठी में मुंबई की लता जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर बालासाहेब तोरस्कर, मनीषा सिंह, मंजू रस्तोगी, चेन्नई सरोज शर्मा लक्ष्मीकांत वैष्णव आदि ने भी सहभागिता की। कार्यक्रम का संचालन मैथिलीशरण गुप्त की सुंदर रचनाओं के साथ रायपुर की पूर्णिमा कौशिक ने किया एवं अंत में आभार मुंबई की सुवर्णा जाधव ने व्यक्त किया।

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