उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा 16-22 अगस्त 2021 तक पार्थेनियम (गाजरघास) प्रबंधन सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है, जिसका शुभारम्भ 16/8/2021 को किया गया था। इसके अंतर्गत आज दिनांक 21/08/2021 को पार्थेनियम (गाजरघास) नियंत्रण के लिए सूक्ष्मजीवIणुकीय विधियों पर अंतराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमे देश एवं विदेश के लगभग 400 व्यक्तियों ने सहभागिता की। इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को गाजरघास के दुष्परिणाम एवं नियंत्रण के लिए उपयोगी वैज्ञानिक विधियों से परिचित करना था।
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की सूक्ष्मजैविकी अध्ययनशाला, वनस्पतिकी अध्ययनशाला, प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्धयनशाला तथा पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला के सयुक्त प्रयासों के द्वारा पार्थेनियम (गाजरघास) प्रबंधन में सूक्ष्मजीवो की भूमिका-उपयोगिता एवं चुनौतियां विषय पर अंतराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन दिनांक 21/08/2021 को किया गया, जिसमें देश एवं विदेश से लगभग 400 व्यक्तियों ने सहभागिता की। पार्थेनियम (गाजरघास) फूलने वाले पौधों का एक वंश है जो आस्टेरेसी कुल में आते है। अमेरिका से भारत आयी गाजरघास के कारण फसलें बर्बाद हो रही है तथा किसान एवं आम नागरिक अस्थमा, एलर्जी, और साँस सम्बंधित कई बीमारियों से ग्रसित हो रहे है। अतः गाजरघास का प्रभावी वैज्ञानिक नियंत्रण आवश्यक है। इसी उद्देश्य से विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा गाजरघास के प्रबंधन सप्ताह का आयोजन दिनांक 16 से 22 अगस्त तक किया जा रहा है। गाजरघास के नियंत्रण हेतु 21/08/2021 को आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय, कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने बताया की गाजरघास में पार्थेनिम नामक जहरीला पदार्थ होता है। जो भी उसके संपर्क में आता है। उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, तथा गाजरघास की अधिक मात्रा फसलों को ख़राब करती है। अतः इसके नियंत्रण हेतु वैज्ञानिक उपाय किया जाना आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में प्रथम मुख्य वक्ता डॉ रेखा शुक्ला, वैज्ञानिक ग्विंनेट जॉर्जिया, यू.एस.ए. ने गाजरघास नियंत्रण के लिए माएको हर्विसाइड जैवीय विधियों पर प्रकाश डाला। डॉ शुक्ला ने बताया की स्क्लेरोटियम रॉल्फ़सी के द्वारा गाजरघास का नियंत्रण किया जा सकता है ।
कार्यक्रम के द्वितीय मुख्य वक्ता डॉ अजय कुमार सिंह अनुसन्धान निर्देशक ऐ जी बायोसीस्टम हैदराबाद ( तेलंगाना) ने फंगल फाइकोटॉक्सिन का उपयोग गाजरघास नियंत्रण करने हेतु जानकारी प्रदान की। डॉ सिंह ने गाजरघास नियंत्रण की भौतिक एवं रासायनिक विधियों का भी उल्लेख किया। अंतराष्ट्रीय वेबिनार के तीसरे प्रमुख वक्ता डॉ संजय सक्सेना थापर अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी सस्थान पटियाला, पंजाब ने सूक्ष्म जीवों बायोपेस्टिसाइड के उपयोग द्वारा गाजर के नियंत्रण विधियों पर उदबोधन दिया। डॉ सक्सेना बताया ने कि रासायनिक नियंत्रण हेतु उपयोग किये जाने वाले रसायन हानिकारक होते हैं। अतः गाजरघास नियंत्रण के लिए बायोपेस्टिसाइड अधिक उपयोगी एवं पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
अंतराष्ट्रीय वेबिनार में प्रोफेसर लता भट्टाचार्य विभागाध्यक्ष प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला ने अतिथियों का स्वागत स्वगतभाषण द्वारा किया। इसके बाद प्रोफेसर डीएम कुमावत विभागाध्यक्ष पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला द्वारा अतिथियों का परिचय दिया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर अलका व्यास विभागाध्यक्ष सूक्ष्म जैवविज्ञान अध्ययनशाला द्वारा किया गया। अतिथियों का आभार डॉ सुधीर कुमार जैन विभागाध्यक्ष वनस्पतिकी अध्ययनशाला द्वारा माना गया।
अंतराष्ट्रीय वेबिनार के आयोजक सचिव डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ चित्रलेखा कड़ेल एवं डॉ शिवी भसीन थे। इस अवसर पर डॉ प्रीति दास, डॉ सलिल सिंह, डॉ जगदीश शर्मा, डॉ संतोष कुमार ठाकुर, डॉ स्मिता सोलंकी, डॉ मुकेश वाणी, डॉ पराग दलाल, डॉ गरिमा शर्मा एवं कुमारी पूर्णिमा त्रिपाठी उपस्थित थे।
कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि गाजरघास जैसे हानिकारक पौधों के नियंत्रण हेतु जनजागृति अभियान का चलाया जाना पार्थेनियम (गाजरघास) प्रबंधन सप्ताह का आयोजन का मुख्य उद्देश्य है, जिसे भौतिक, रसायनिक एवं जैवीय विधियों के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
Comments