प्रेमचंद का साहित्य कालजयी और आज भी प्रासंगिक - डॉ. शर्मा ; प्रेमचंद का कथा साहित्य : सांस्कृतिक - राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पर राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी
प्रेमचंद का साहित्य कालजयी और आज भी प्रासंगिक - डॉ. शर्मा
प्रेमचंद का कथा साहित्य : सांस्कृतिक - राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पर राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी प्रेमचंद का कथा साहित्य : सांस्कृतिक - राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कला संकाय के डीन प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद कालजयी रचनाकार हैं। देश और काल की सीमाओं से बद्ध होने के बावजूद उनका साहित्य आज अधिक प्रासंगिक नजर आता है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समानांतर इस प्रकार के चरित्रों, प्रसंगों और कथानकों को बुना जो स्वदेश के प्रति स्वाभिमान जगाते हैं। उन्होंने देश को गुलामी से मुक्ति के साथ सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के प्रसार के लिए सृजन किया। वे जितना ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष के लिए आह्वान करते हैं, उतनी ही आवाज समाज में व्याप्त अन्याय, शोषण और कुरीतियों के खिलाफ लगाते हैं। उन्होंने बाल और वृद्ध जीवन की उपेक्षा के विरुद्ध भी आवाज बुलंद की है। उनके स्त्री पात्र जहां त्याग, सेवा और आदर्शों की प्रतिमूर्ति हैं, वहीं वे समाज की रूढ़ मान्यताओं के खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि प्रेमचंद सत्य पथ पर चलने वाले रचनाकार थे। आज के दौर में जब निरंतर विघटन हो रहा है। दशकों पहले प्रेमचंद को इस बात की चिंता थी। वर्तमान में दुरूह होती जा रही स्थितियों के बीच प्रेमचंद का साहित्य नई चेतना जगाता है।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख़, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि प्रेमचंद की वैचारिक यात्रा किसान ,मजदूर एवम दलित वर्ग इन सभी के मध्य से होकर गुजरी है। प्रेमचंद जिस परिवेश में आए थे,वह श्रमजीवियों एवं कृषकों का वर्ग था, इसलिए उन्होंने स्वयं को कभी कटा हुआ नहीं समझा। उस समय मजदूर और किसान सर्वाधिक महत्व पूर्ण होते हुए भी समाज द्वारा उपेक्षित थे। यही उपेक्षा प्रेमचंद के भीतर आग बनकर निर्मित हुई।


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