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तिलक की लेखनी से डरता था ब्रिटिश शासन।


लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक ऐसे देश भक्त थे जिसमें योद्धा के गुण के साथ हीस्वाभिमान बुद्धि चातुर्य भी बहुत अधिक था उनके द्वारा मराठा और हिंद केसरी में लिखे संपादकीय से ब्रिटिश शासन भी भय खाता था। उपर्युक्त उद्गार विक्रम विश्वविद्यालय के कुल अनुशासक डॉक्टर शैलेंद्र शर्मा ने राष्ट्रीय शिक्षक सं चेतना द्वारा लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि पर आयोजित गोष्ठी में व्यक्त किए। गोष्ठी का विषय लोकमान्य तिलक और उनका भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान था। वह स्वराज आंदोलन के महानायक थे संस्था के अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा ने कहा कि तिलक में सागर की गहराई थी उन्होंने होमरूल की स्थापना की थी। हिंदी परिवार इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेई ने कहा कि उन्होंने स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है यह नारा दिया था जो अंततः मूर्त रूप ले सका ।श्री वाजपेई ने कहां कि इंदौर ने तिलक को बड़े आदर के साथ याद किया है उनके नाम से यहां 2 कॉलोनी मार्ग शिक्षण संस्थाएं उनकी मूर्ति रेलवे स्टेशन तथा मोक्ष धाम तक है।

पुणे से डॉक्टर शहाबुद्दीन शेख ने तिलक जी के जीवन शिक्षा व वकालत तथा स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में कुछ संदर्भ दिए। जयपुर से डॉक्टर शिवा लोहारिया दिल्ली से डॉक्टर हरिसिंह पाल जयपुर से श्री देवनारायण गुर्जर नार्वे से श्री सुरेश चंद्र शुक्ल मुंबई से सुवर्णाजाधव अहमदनगर से डॉ बालासाहेब तोरस्कर मुंबई से डॉक्टर लता जोशी गाजियाबाद से डॉक्टर रश्मि चौबे कोलकाता से सुनीता मंडल तथा गरिमा गर्ग ममता झा एवं अन्य विद्वानों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने कहा कि मेरा जन्मदिन 1 अगस्त को होने से मुझ पर तिलक जी का बहुत प्रभाव है। इस अवसर पर प्रभु चौधरी का षष्टिपूर्ति प्रसंग पर आभासी रूप से शुभकामनाओं के साथ उनका अभिनंदन किया गया। कार्यक्रम का संचालन रायपुर से डॉक्टर मुक्ता कौशिक ने किया। आभार गरिमा गर्ग ने माना।

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