उज्जैन : अर्थशास्त्र अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में दिनांक 10 अप्रेल को स्वतन्त्रता आन्दोलन के 75वें वर्ष में आयोजित अमृत महोत्सव के अवसर पर सतपुड़ा अंचल के गुमनाम शहीदों की याद में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अमृत महोत्सव के इस महत्वपूर्ण आयोजन के उद्घाटन वक्तव्य में कुलपति प्रों अखिलेश कुमार पाण्डेय ने स्वतन्त्रता को अक्षुण्य रखने के लिए शहीदों के बलिदान को स्मरण करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु जनजातीय समाज के स्वतन्त्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। आज हमें देश की एकता एवं अखण्डता बनाए रखने के लिए ऐसे वीर योद्धाओं से प्रेरणा लेनी होगी।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री राधाकिशन सिंह शास्त्री, आजाद हिन्द फौज में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में नागालैण्ड के कोहिमा बार्डर पर अंग्रेजी सेना से लोहा लेने वाले नेता जी के अद्भुत व्यक्तित्व का चित्रण करते हुए भावुक हो गए। ज्ञातव्य हो कि नेता जी के आह्वान किया कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूॅंगा के नारे पर देशभर में जीवित मात्र तीन लोगों में से एक 104 वर्षीय आजाद हिन्द फौज में शामिल होकर रंगून से आकर नागालैण्ड के कोहिमा के पास अंग्रेजों से लोहा लिया था। इस उम्र में भी उन्होंने जोश तथा जज्बे के साथ आजादी के संघर्ष की गाथाएं सुनाई।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता लेखक समाजसेवी श्री कमलेश सिंह ने मध्यप्रदेश के गोंडवना तथा महाकौशल क्षेत्र में जनजातीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का विस्तार से परिचय दिया। जंगल सत्याग्रह में बैतूल, छिन्दवाड़ा तथा सिवनी सहित सतपुड़ा अंचल के जनजातियों ने अपने संघर्ष तथा बलिदान से अंग्रेजों की चूल हिला कर रख दी थी। बंजारी ढ़ाल, चिखलार तथा सातलदेही सत्याग्रह का जिक्र करते हुए श्री सिंह ने कोवा गोंड के बलिदान को याद रखने की जरूरत बताई। गोंड जनजातीय बाहुल्य सतपुड़ा क्षेत्र स्वतन्त्रता संग्राम का केन्द्र बन चुका था। महात्मा गॉंधी, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे आजादी के महानायक गोंडवाना तथा महाकौशल क्षेत्र में जनजातीय लोगों के त्याग तथा बलिदान से प्रभावित थे। इस अवसर पर सरदार विष्णुसिंह गोंड, विरदी चन्द गोठी जैसे सतपुड़ा के गुमनाम शहीदों के त्याग तथा बलिदान को याद करने की आवश्यकता बताई।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथि स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए अर्थशास्त्र अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ. एस.के मिश्रा ने आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजन की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की। आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम में शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ कनिया मेड़ा, डॉ वीरेन्द्र चावरे, डॉ धर्मेन्द्र सिंह, डॉ दीपा द्विवेदी, श्री जितेश पोरवाल सहित भारी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी तथा विद्यार्थी उपस्थिति थे। कार्यक्रम का संचालन तथा आभार ज्ञापन वेबिनार समन्वयक डॉ संग्राम भूषण ने किया।
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आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्
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