Skip to main content

आजादी दिलाने वाले महान वीरों की कुर्बानी को याद करें – कुलपति प्रो पांडेय ; आज़ादी का अमृत महोत्सव पर 9 अगस्त को सामूहिक राष्ट्रगान, नुक्कड़ नाटक एवं सायकिल रैली हुई

आजादी दिलाने वाले महान वीरों की कुर्बानी को याद करें – कुलपति प्रो पांडेय

आज़ादी का अमृत महोत्सव पर 9 अगस्त को सामूहिक राष्ट्रगान, नुक्कड़ नाटक एवं सायकिल रैली हुई


उज्जैन : आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा दिनांक 9 अगस्त 2021, सोमवार को प्रातः काल माधव भवन परिसर में सामूहिक राष्ट्रगान, साइकिल रैली तथा नारी सशक्तीकरण एवं राष्ट्रभक्ति से जुड़े नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया। सामूहिक राष्ट्रगान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि भारत को आजाद कराने में अनेक अज्ञात और अनाम शहीदों ने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था। हम ऐसे महान वीरों की कुर्बानी को याद करें। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अगस्त माह का महत्व बताया। आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने आज़ादी दिलाने में आदिवासियों की भूमिका पर प्रकाश डाला।

आयोजन को संबोधित करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि आजादी के महासंग्राम में बिरसा मुंडा जैसे अनेक आदिवासी वीरों ने अपना योगदान दिया। उन्होंने अगस्त माह में देश की आज़ादी के लिए चलाए गए आंदोलनों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ कानिया मेड़ा ने विश्व आदिवासी दिवस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उपस्थित जनों को बधाई दी।

इस अवसर पर कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय के नेतृत्व में साइकिल रैली निकाली गई, जो विक्रम वाटिका, कोठी पैलेस और परिसर स्थित विक्रम तीर्थ सरोवर से होती हुई माधव भवन पहुंची। साइकिल रैली में कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ गणपत अहिरवार, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, श्री कमल जोशी आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए चल रहे थे। साइकिल रैली में सेवा भारती के किशोरों ने भी भाग लिया।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विक्रम द्वार पर नारी सशक्तीकरण एवं राष्ट्रभक्ति से जुड़े नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया। नाटक में विश्वविद्यालय के एनसीसी कैडेट्स ने विभिन्न भूमिकाएं निभाईं। नाटक में आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर महिलाओं की सामाजिक एवं व्यावसायिक स्थिति को दर्शाते हुए समानता का सन्देश दिया गया। नुक्कड़ नाटक का संयोजन इंजीनियरिंग संस्थान की सुश्री कंचन थूल और श्रीमती अंजलि उपाध्याय का रहा।

प्रारम्भ में अतिथि स्वागत कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा, आयोजन के समन्वयक हिंदी अध्ययनशाला के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, उज्जैन के निदेशक डॉ गणपत अहिरवार, डॉ विश्वजीतसिंह परमार आदि ने किया। आयोजन में पूर्व कुलपति प्रो पी के वर्मा, प्रो एच पी सिंह, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो देवेंद्र मोहन कुमावत, प्रो अलका व्यास सहित विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षक, अधिकारी, गेस्ट फ़ैकल्टी, कर्मचारीगण, शोधार्थी और विद्यार्थीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में नुक्कड़ नाटक के श्रेष्ठ प्रदर्शन को देखकर कुलपति जी की ओर से मिष्ठान्न वितरण कर मनोबल बढ़ाया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ विश्वजीतसिंह परमार ने किया। आभार प्रदर्शन विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने किया।

विश्वविद्यालय में भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय के निर्देशों के अनुरूप युवा पीढ़ी में राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम किए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय परिसर में 9 अगस्त को हुए इस आयोजन में शासन द्वारा जारी कोविड - 19 गाइडलाइन के निर्देशों का अनुपालन किया गया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...