Skip to main content

कैरियर काउंसलिंग एवं प्रवेश उत्सव 24 से 26 अगस्त तक विक्रम विश्वविद्यालय के वाग्देवी भवन में ; 3 दिन तक आयोजित कैरियर काउंसलिंग एवं प्रवेश उत्सव में विद्यार्थियों को विशेष मार्गदर्शन मिलेगा ; 31 अगस्त तक किए जा सकेंगे विश्वविद्यालय की अध्ययनशालाओं में संचालित 180 से अधिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आवेदन

कैरियर काउंसलिंग एवं प्रवेश उत्सव 24 से 26 अगस्त तक विक्रम विश्वविद्यालय के वाग्देवी भवन में

3 दिन तक आयोजित कैरियर काउंसलिंग एवं प्रवेश उत्सव में विद्यार्थियों को विशेष मार्गदर्शन मिलेगा

31 अगस्त तक किए जा सकेंगे विश्वविद्यालय की अध्ययनशालाओं में संचालित 180 से अधिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आवेदन


उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में दिनांक 24 से 26 अगस्त 2021 तक कैरियर काउंसलिंग एवं प्रवेश उत्सव का आयोजन किया जाएगा। विक्रम विश्वविद्यालय परिसर में देवास रोड स्थित सर्किट हाउस के सामने वाग्देवी भवन में प्रतिदिन प्रातः 11 से संध्या 4 : 30 बजे तक कैरियर काउंसलिंग एवं प्रवेश उत्सव आयोजित किया जाएगा। विक्रम विश्वविद्यालय में नवीन शिक्षा सत्र 2021 - 22 में विभिन्न अध्ययनशाला एवं संस्थानों में संचालित 180 से अधिक पाठ्यक्रमों में स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा एवं प्रमाण पत्र पाठ्यक्रमों में मेरिट के आधार पर प्रवेश की प्रक्रिया निरन्तर जारी है। ये पाठ्यक्रम वाणिज्य, शारीरिक शिक्षा, कृषि, विज्ञान, जीव विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान, इंजीनियरिंग, व्यवसाय प्रबंधन, कला, समाज विज्ञान, नॉन फॉर्मल एजुकेशन, विधि आदि संकाय और विषय क्षेत्रों से जुड़े हैं। वाग्देवी भवन में आयोजित शिविर में संबंधित विषयों के विशेषज्ञ विद्यार्थियों को भावी केरियर एवं 180 से अधिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के संबंध में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। इस वर्ष विश्वविद्यालय में रोजगारपरक एवं कौशल संवर्धन से जुड़े लगभग सवा सौ से अधिक पाठ्यक्रम प्रारंभ किए गए हैं। प्रवेश हेतु एमपी ऑनलाइन के माध्यम से 31 अगस्त 2021 तक आवेदन किए जा सकते हैं। यह जानकारी देते हुए कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने बताया कि आयोजन में विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ और करियर परामर्शदाता विद्यार्थियों को उच्च अध्ययन, रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों को लेकर मार्गदर्शन देंगे। हायर सेकंडरी स्कूलों और महाविद्यालयों में विभिन्न संकायों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के साथ ही अध्ययन छोड़ चुके और करियर चयन में जुटे युवा इस शिविर का लाभ ले सकते हैं। इस उत्सव के दौरान विश्वविद्यालय की अध्ययनशालाओं एवं संस्थानों में संचालित 180 से अधिक स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों के महत्त्व और विभिन्न क्षेत्रों में उनकी करियर संभावनाओं की विशेष जानकारी युवाओं को दी जाएगी।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने बताया कि, विश्वविद्यालय की अध्ययनशाला एवं संस्थानों में संचालित विभिन्न पाठ्यक्रमों में विश्वस्तरीय मानकों के अनुरूप सीबीसीएस (च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम) पिछले वर्षों में लागू किया गया है। सीबीसीएस पद्धति में विद्यार्थियों को अपने विषय क्षेत्र के अध्ययन के साथ ही अपनी रुचि और व्यावसायिक दक्षता अर्जित करने की दृष्टि से अन्य विषयों के चयन का विकल्प प्राप्त हो रहा है। इस पद्धति में मुख्य विषय के साथ स्किल बेस्ड एवं वोकेशनल कोर्स भी समाहित किए गए गए हैं। यूजीसी के नवीन मानदंडों के अनुरूप प्रत्येक कोर्स के पाठ्यक्रम को अलग-अलग क्रेडिट्स में तैयार किया गया है। सीबीसीएस के तहत विद्यार्थियों को विभिन्न सेमेस्टरों में अपनी रुचि के अनुरूप प्रश्नपत्र पढ़ने की छूट मिल रही है। विभिन्न पाठ्यक्रमों से संबन्धित विवरण विक्रम विश्वविद्यालय की वेबसाइट http://vikramuniv.ac.in/ से प्राप्त किया जा सकता है।

Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम