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सृष्टि के कण कण पर होता है पावस का प्रभाव – प्रो शर्मा ; पावस ऋतु के सरोकार : साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं उमंग तरंग कविता एवं गीत गोष्ठी आयोजित

 सृष्टि के कण कण पर होता है पावस का प्रभाव – प्रो शर्मा 

पावस ऋतु के सरोकार : साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं उमंग तरंग कविता एवं गीत गोष्ठी आयोजित 


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा पावस के आगमन पर पावस ऋतु के सरोकार : साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं उमंग तरंग कविता - गीत संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ उर्वशी उपाध्याय, प्रयागराज, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, प्रतिभा मगर, पुणे, सविता इंगले, पुणे, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, गरिमा गर्ग पंचकूला, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर एवं डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। सूत्र समन्वय श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गरमी की इन्तहा होने पर पूरा देश जब आसमान की ओर तकने लगता है, तब दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के सागर से काली घटाओं की आमद होती है। फिर पूरा देश कजरारे बादलों और शीतलता लिए हुए वायु की गति और लय से झूमने लगता है। कभी महाकवि कालिदास ने इन्हीं आषाढ़ी बादलों को देखकर उन्हें विरही यक्ष का सन्देश अलकापुरी में निवासरत प्रिया के पास पहुँचाने का माध्यम बनाया था और सहसा मेघदूत जैसी महान रचना का जन्म हुआ था। पावस के आगमन का प्रभाव सृष्टि के कण कण पर व्याप्त हो जाता है। भीषण गर्मी के बाद जब बरसते बादलों की आमद होती है, तब सभी का तन - मन भीग जाता है। प्रकृति के सभी उपादान अपना हर्ष अलग-अलग माध्यमों से प्रकट करने लगते हैं। नदी, नाले और सरोवर भी तरंगायित हो जाते हैं। महाकवि सूरदास, नंददास, तुलसीदास, सेनापति से लेकर सुमित्रानंदन पंत, निराला आदि ने पावस पर केंद्रित मार्मिक कविताओं का सृजन किया है। लोक संस्कृति में वर्षा के बुलावे के  लिए कई उपाय प्रचलित हैं। किसान और उनके परिवारजन गीतों के माध्यम से बादलों का आह्वान करते दिखाई देते हैं। 

मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने वर्षा के स्वागत में रचना सुनाई। इसके शब्द थे, ये उमंग ये तरंग गीत ग़ज़ल व्यंग्य, सारा देश जोड़ लिया राष्ट्रीय शिक्षक संग। जून की विदाई करें स्वागतम जुलाई। साथ में देखो अपने बादलों को लाई। झूम के बरसेंगे जब ये बदलेगा धरा का रंग। ये उमंग ये तरंग। प्रेम पथ पर चले कोई बिरह में बहे अश्क, मेघदूत बन के आए, कालिदास संग। ये उमंग ये तरंग। उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा, प्रयागराज ने शिव वंदना सुनाई। जिसकी पंक्तियां थी, सृष्टि धरा और भारत माता, सभी रूप जननी के ही, फिर क्यों अब हर घर में बेटी, करती है चित्कार। आई तेरे द्वार शिव शंकर हे त्रिपुरारी। पुणे की श्रीमती प्रतिभा मगर ने मोबाइल पर केंद्रित हास्य व्यंग की कविता सुनाई।

सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा की कविता की पंक्तियां थीं, मेरा तेरे लिए कान्हा प्यार बहुत याद आता है, तू मेरा बांके दिलदार, क्यों इतना सताता है। श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने बरस गया बादल का पानी गीत सुनाया। गीत की पंक्तियाँ थीं, बिजली चमकी दूर गगन में। कंपन होते प्राण भवन में, तरल-तरल कर गई हृदय को, निष्ठुर मौसम की मनमानी, बरस गया बादल का पानी। डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किताबों की महिमा पर केंद्रित गीत पुण्यमयी किताब सुनाया। जिसकी पंक्तियां थीं, किताबें गुरुओं का है ज्ञान, गुरु-ग्रंथ है दोनों समान। मूढ़मति भी होत सुजान, पुण्यमयी किताबों से। देश-दुनिया की ये पहचान,  नैतिकता का मिलता ज्ञान, नयी-पुरानी संस्कृति जान, पुण्यमयी किताबों से। 

भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने प्रेम कविता सुनाई। जिसकी पंक्तियां थीं, रहें हम दूर पर दिल में सदा अहसास रहता है, तुम्हारे दिल में हूँ मैं ही मेरा विश्वास कहता है। कि तोड़े से ना टूटे ये तो पावन डोर है ऐसी, सच्चा प्यार होता जहाँ खुदा का वास रहता है।

आर्यावती सरोजा, लखनऊ ने भक्ति गीत सुनाया। उसकी पंक्तियां थी ऐ कान्हा तुम्हीं ने अब तक सबकी लाज बचाई है। मेरी भी बचा लो। ऐ कान्हा तुम्हीं ने सबकी नैया पार लगाई है। मेरी भी लगा दो। डॉ.रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने हंसी पर केंद्रित कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं, इसे आगाह करती हूं अपने हो या पराए, किसी का दिल दुखाने मत आना हंसी। दूसरों को माफ करने के लिए आना हंसी, हां बात को हंसकर टालने के लिए आना हंसी।

डॉ बालासाहब तोरस्कर, मुंबई ने पावस पर अपनी कविता सुनाई। जिसकी पंक्तियां थीं, सांज समय पावस धारा, नभ में बादल उभर आए हवा जोरों से बहने लगी। बारिश बरसने लगी और धरा भीगकर चूर हो गयी।


 श्रीमती प्रभा ने वाग्देवी की वंदना का गीत सुनाया। जिसके पंक्तियां थीं, बोल समझना तुम्हीं मेरे शब्दों के उपहार का।

श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने अपनी साथियों के साथ लावणी गीत सुनाया। लक्ष्मीकांत वैष्णव ने राम की स्तुति में भजन प्रस्तुत किया।  श्रीमती लता जोशी, मुंबई,  संगीता शर्मा, अल्पा मेहता, अहमदाबाद, चेतना उपाध्याय, अजमेर, सविता इंगले, गरिमा गर्ग, पंचकूला, अर्चना आदि ने भी अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं।


सरस्वती वंदना डॉ संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने प्रस्तुत की।  स्वागत भाषण डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने दिया। कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने किया।

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