Skip to main content

■ युवाओं की रचनात्मक ऊर्जा का उपयोग राष्ट्र के निर्माण में होना वर्तमान समय की आवश्यकता - डॉ. मोहन यादव, उच्च शिक्षा मंत्री, मध्यप्रदेश शासन ■ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से युवाओं को लाभ मिलेगा - पारस चन्द्र जैन, विधायक, पूर्व मंत्री, मध्यप्रदेश शासन ■ विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के उन्नयन में सबकी सहभागिता मिल रही है - कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय ◆ विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में नवनिर्मित भवन का लोकार्पण कार्यक्रम सम्पन्न ◆ उच्च शिक्षा मंत्री ने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन परिसर में नवीन भवन निर्माण के लिये 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा की

■ युवाओं की रचनात्मक ऊर्जा का उपयोग राष्ट्र के निर्माण में होना वर्तमान समय की आवश्यकता - डॉ. मोहन यादव, उच्च शिक्षा मंत्री, मध्यप्रदेश शासन

■ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से युवाओं को लाभ मिलेगा - पारस चन्द्र जैन, विधायक, पूर्व मंत्री, मध्यप्रदेश शासन 

■ विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के उन्नयन में सबकी सहभागिता मिल रही है - कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय

◆ विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में नवनिर्मित भवन का लोकार्पण कार्यक्रम सम्पन्न

◆ उच्च शिक्षा मंत्री ने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन परिसर में नवीन भवन निर्माण के लिये 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा की




उज्जैन 15 जुलाई। मध्यप्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि युवाओं की रचनात्मक ऊर्जा का उपयोग राष्ट्र के निर्माण में होना वर्तमान समय की आवश्यकता है। विद्या किसी राष्ट्र की संस्कृति का संरक्षण, संवर्धन ही नहीं करती, अपितु एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संस्कारों का हस्तांतरण भी करती है। शिक्षा ग्रहण कर मनुष्य जीवनपर्यन्त समाज को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है।


उक्त विचार उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने विक्रम विश्वविद्यालय के नवनिर्मित भवन के लोकार्पण कार्यक्रम के साथ हुई परिचर्चा के अवसर पर व्यक्त किये। विश्वविद्यालय के नवनिर्मित  भवन की लागत पांच करोड़ रुपये है। उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.यादव ने कहा कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने ऐतिहासिक नगरी उज्जयिनी (वर्तमान नाम - उज्जैन) में शिक्षा व अनुसंधान के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की परिकल्पना एक महान विद्यापीठ के रूप में की थी। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय के द्वारा सफलता एवं उपलब्धियों के नये-नये आयाम हासिल करने पर विश्वविद्यालय परिवार को शुभकामनाएं भी दी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि 21वी सदी की प्रथम शिक्षा नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। इसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिये अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। शिक्षा नीति में भारत की महान प्राचीन परम्परा तथा उसके सांस्कृतिक मूल्यों को आधार बनाया गया है। मध्यप्रदेश राज्य सरकार के उच्च शिक्षा विभाग राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अपनी भूमिका पूरी निष्ठा के साथ निभा रहा है और विक्रम विश्वविद्यालय नई शिक्षा नीति के परिपालन में अग्रणी सहभागिता कर रहा है।


उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.यादव ने इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन परिसर में विभिन्न विषयों के शिक्षण के लिये एक और नवीन भवन निर्माण के लिये 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा की। उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार के नवीन पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये जायेंगे। इन पाठ्यक्रमों से जहां हम आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाने के लिये तत्पर होंगे, वहीं इनसे कौशल संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण संभावनाएं साकार होंगी। रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम वर्तमान दौर की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उज्जैन औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित हो रहा है और इसका लाभ उठाकर विक्रम विश्वविद्यालय कई नवीन पाठ्यक्रम प्रारम्‍भ करने जा रहा है। नवीन पाठ्यक्रम विद्यार्थियों की प्रतिभा और कौशल के संवर्धन के साथ रोजगार प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होंगे। अतिथियों ने विश्वविद्यालय के प्रवेश पोस्टर का लोकार्पण भी किया।



नवनिर्मित भवन के लोकार्पण कार्यक्रम के अवसर पर मध्यप्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक श्री पारस चन्द्र जैन ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदेश के साथ-साथ उज्जैन में आये-दिन विकास से क्षेत्रवासियों को लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से युवाओं को लाभ मिलेगा। कोरोना महामारी से बचना आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति सावधानी बरते और सरकार की गाईड लाइन का अनिवार्य रूप से पालन करे। 

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त कर कहा कि, विक्रम विश्वविद्यालय के उन्नयन में सबकी सहभागिता मिल रही है। विश्वविद्यालय में इन्क्यूबेशन सेन्टर की स्थापना 2021 अप्रैल माह से की जा चुकी है। स्टार्टअप को प्रारम्भ करने के लिये प्रयास भी प्रारम्भ हो चुके हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने से छात्रों को लाभ मिलने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। प्राचीन नगरी उज्जयिनी में गुरूकुल की परम्परा थी। भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन किया है, वह प्रशंसनीय है। शिक्षा के साथ विश्वविद्यालय में रोजगारोन्मुखी कोर्स चालू किये हैं, इससे छात्रों को लाभ मिलेगा। कुलपति ने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम एवं केन्द्र खोले जाना प्रस्तावित है। प्रारम्भ में विक्रम विश्वविद्यालय के कुल सचिव डॉ.प्रशांत पौराणिक ने स्वागत भाषण दिया। अतिथियों ने कार्यक्रम के पूर्व पांच करोड़ रुपये की लागत से बने नवनिर्मित भवन का विधिवत लोकार्पण कर भवन का अवलोकन किया। अतिथियों ने नवीन भवन की प्रशंसा की।


लोकार्पण के बाद कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.पाण्डेय, कुल सचिव डॉ.पौराणिक, उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक श्री आरसी जाटवा, विभिन्न संकायों के विभागाध्यक्षों, प्रोफेसरों एवं विद्यार्थियों की ओर से शुभम चौऋषिया ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय की कार्य परिषद के सदस्य श्री राजेश कुशवाह, सुश्री ममता बैंडवाल, भारत स्काउट एवं गाइड मध्यप्रदेश के राज्य मीडिया प्रभारी श्री राधेश्याम चौऋषिया आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया और अन्त में आभार श्री सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने प्रकट किया।




Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...