Skip to main content

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में सातवें अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2021 पर किया गया योगाभ्यास। छत्तीस दिवसीय योग प्रशिक्षण शिविर का समापन संपन्न।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में सातवें अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2021 पर किया गया योगाभ्यास।
छत्तीस दिवसीय योग प्रशिक्षण शिविर का समापन संपन्न।


विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की दर्शनशास्त्र अध्ययनशाला अन्तर्गत संचालित योग केन्द्र द्वारा गोविन्द गुरू जनजातीय विश्वविद्यालय बाॅंसवाड़ा, राजस्थान तथा वाराणसी स्थित आसनेन रूजो हन्ति संस्था के संयुक्त तत्वावधान में सातवें अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस - 21 जून 2021 के अवसर पर जूमएप, फेसबुक तथा यूट्यूब के माध्यम से ऑनलाईन योग प्रोटोकाल के अनुसार योग अभ्यास कार्यक्रम का आयोजन प्रातः 7 बजे से 8.30 के मध्य हुआ। 




इस कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के विद्यार्थी, कर्मचारी तथा शिक्षकों सहित उनके परिवार के सदस्यों ने भी सहभागिता करते हुए योगाभ्यास किया। इस संयुक्त योगाभ्यास में विक्रम विश्वविद्यालय परिक्षेत्र के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों से लगभग सात सौ प्रतिभागी सम्मिलित हुए।



प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की दर्शनशास्त्र अध्ययनशाला अन्तर्गत संचालित योग केन्द्र द्वारा गोविन्द गुरू जनजातीय विश्वविद्यालय बाॅंसवाड़ा, राजस्थान तथा वाराणसी स्थित आसनेन रूजो हन्ति संस्था के सम्मिलित प्रयास से 36 दिवसीय योग प्रशिक्षण शिविर 16 मई 2021 से आरम्भ होकर 21 जून अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस - 2021 को इसका समापन हुआ। 

समापन कार्यक्रम के अध्यक्ष पद्मविभूषण तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरू रामभद्राचार्य महाराज जी तथा मुख्य अतिथि डाॅ मोहन यादव, माननीय मन्त्री, उच्चशिक्षा, मध्यप्रदेश शासन तथा विशिष्ट अतिथि वृन्दावन के वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी थे। 

कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय तथा गोविन्द गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय बाॅंसवाड़ा के कुलपति प्रो. वाई. एस. त्रिवेदी जी भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि के रूप में उद्बोधन देते हुए उच्चशिक्षा मन्त्री डाॅ मोहन यादव ने योग को राष्ट्रीय शिक्षा नीति में योग शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की आवश्यकता बताई। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में जगद्गुरू रामभद्राचार्य ने आन्तरिक रूपान्तरण हेतु योग की महत्ता का प्रतिपादन किया। 36 दिवसीय योग प्रशिक्षण के दौरान प्रतिदिन योग प्रशिक्षण के अतिरिक्त डाॅ अनन्त विरादर, राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा संगठन, प्रो रामनारयण द्विवेदी, विभागाध्यक्ष-धर्मदर्शन विभाग, बीएचयू, डाॅ विक्रम सिंह जेएनयू नई दिल्ली, प्रो बी. सी. कापरी बीएचयू, डाॅ दिव्यचेतन ब्रह्मचारी, संम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी सहित देश विदेश के प्रसिद्ध विद्वानों के व्याख्यान आयोजित किए गये। प्रशिक्षण अवधि में विभिन्न आयुवर्ग के प्रतिभागियों के लिए योगासन प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। योग प्रोटोकाॅल अभ्यास सत्र का समापन वक्तव्य प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा दिया गया।


Comments

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं। उनकी कहानियों में आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर

मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

MALVI BHASHA AUR SAHITYA: PROF. SHAILENDRAKUMAR SHARMA पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या Book Review : Dr. Shweta Pandya  मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई दिशा  लोक भाषा, लोक साहित्य और संस्कृति का मानव सभ्यता के विकास में अप्रतिम योगदान रहा है। भाषा मानव समुदाय में परस्पर सम्पर्क और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी प्रकार क्षेत्र-विशेष की भाषा एवं बोलियों का अपना महत्त्व होता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़े विशाल वाङ्मय में मालवा प्रदेश, अपनी मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति के कारण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ की भाषा एवं लोक-संस्कृति ने  अन्य क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। मालवी भाषा और साहित्य के विशिष्ट विद्वानों में डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। प्रो. शर्मा हिन्दी आलोचना के आधुनिक परिदृश्य के विशिष्ट समीक्षकों में से एक हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ-साथ मालवी भाषा, लोक एवं शिष्ट साहित्य और संस्कृति की परम्परा को आलोचित - विवेचित करने का महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक प्रयास किया है। उनकी साहित्य

हिंदी कथा साहित्य / संपादक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश : किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास  विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है।  कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यम