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विश्व मानवता का पथ सदा आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं – प्रो. शर्मा ; विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

विश्व मानवता का पथ सदा आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं – प्रो. शर्मा 

विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी



सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य  पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं हिंदी सेवी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे एवं प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। 


आयोजन के विशिष्ट अतिथि  हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा धमतरी, छत्तीसगढ़, एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ लता जोशी, मुंबई ने किया। 

मुख्य अतिथि साहित्यकार नॉर्वे के श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि टैगोर दुनिया के सभी देशों में जाने जाते हैं। उन्होंने दुनिया के अनेक देशों की यात्रा की थी और उन्हें अपनी कलम के माध्यम से संजोया। बिना टैगोर के भारतीय साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनकी रचनाओं में व्यापक अर्थ भरे हुए हैं। उनकी कविताओं की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। श्री शुक्ल ने टैगोर की कविता के अंशों का अनुवाद करते हुए उन्हें नॉर्वेजियन भाषा में सुनाया।

विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर कालजयी रचनाकार हैं। उनके लिए राष्ट्रीयता और विश्व मानवता परस्पर पर्याय थे। आज विश्व चेतना बिखर रही है, उसे पुनः जोड़ने और परस्पर सद्भाव लाने के लिए टैगोर के मार्ग पर चलना आवश्यक है। उन्होंने उपनिषद के दर्शन के आलोक में अपनी दृष्टि विकसित की थी, किंतु पश्चिम से आने वाले साहित्य और विचारों के प्रति भी वे सजग थे। टैगोर की महान रचनाएं विश्व मानवता का पथ सदैव आलोकित करती रहेंगी। एक साथ कई रूपों में उन्होंने भारतीय संस्कृति का उदात्त संदेश समूचे विश्व को दिया। उनका संदेश है कि प्रकृति के साहचर्य के बिना मनुष्य अधूरा है, इसीलिए उन्होंने शिक्षा और प्रकृति के संबंधों को केंद्र में रखते हुए शांति निकेतन की स्थापना की। ईश्वर के साथ मनुष्य के शाश्वत सम्बन्ध को टैगोर ने अपनी रचनाओं में अलग-अलग रूपों में उभारा है। वे ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्होंने अनेक विधाओं में अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर की प्रतिष्ठा विश्व कवि के रूप में है। उनकी प्रेरणा से महात्मा गांधी ने मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा पर बल दिया। वे राष्ट्रभाषा हिंदी और देवनागरी लिपि के पक्षधर थे। टैगोर मानते हैं कि मनुष्य सेवा सर्वोपरि सेवा है। श्री वाजपेयी ने कहा कि रवींद्र नाट्य गृह एवं रवींद्रनाथ टैगोर मार्ग के माध्यम से इंदौर ने उनकी स्मृतियों को संजो कर रखा है। 


डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता ने कहा कि टैगोर ने प्रकृति के सान्निध्य में शैक्षिक परिसर को स्थापित किया था, जो शांतिनिकेतन के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। प्रकृति के प्रत्येक वृक्ष को अपने पुत्र के समान मानते थे। वे महान मानवतावादी साहित्यकार थे। टैगोर के प्रति संपूर्ण हिंदी साहित्य सदैव ऋणी रहेगा। उनका समूचा साहित्य, संगीत और चित्र कृतियाँ व्यक्ति के प्रतिबिंब बन गए हैं। उनके कथा साहित्य और नाटकों पर बांग्ला में 216 फिल्में बनी हैं।

अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल,  इंदौर ने कहा कि टैगोर ने साहित्य, संगीत, चित्रकला, शिक्षा, दर्शन आदि जैसे कई क्षेत्रों में महारत हासिल की थी। उनका लेखन विपुल है, उसका जितना मंथन करें कम होगा। आज के अंध भौतिकता के दौर में टैगोर अनेक प्रेरणाएँ देते हैं।


संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि परंपरा और संस्कार के साथ आधुनिकता का संगम टैगोर के जीवन और कृतित्व में दिखाई देता है। वे महान क्रांतिकारी विचारक और दार्शनिक थे। टैगोर ने राजनीति से स्वयं को दूर रखा। वे हिंदी के भक्त कवियों से जुड़े थे। उन्होंने कबीर की वाणी का अनुवाद बांग्ला में किया। इसी प्रकार महाकवि सूर, तुलसी और विद्यापति को लेकर भी उन्होंने लिखा। 

डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि साहित्य, कला और दर्शन के क्षेत्र में टैगोर की अनुपम उपलब्धियां हैं। उनका दर्शन प्रकृतिवाद और आदर्शवाद का समन्वित रूप लिए हुए है। उनका शिक्षा दर्शन अध्यात्म केंद्रित है। वे मानते हैं कि सृजनात्मक क्रियाओं से मानव व्यक्तित्व का निर्माण संभव है। उन्होंने युवाओं के मानसिक विकास के साथ उनके सर्वांगीण विकास पर बल दिया। वे युवाओं में तपस्या की भावना जरूरी मानते हैं। उनकी विश्वविख्यात रचना गीतांजलि का अनुवाद दुनिया की अनेक भाषाओं में हुआ है।

डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी ने कहा कि टैगोर का साहित्य वसुधैव कुटुंबकम् का संवाहक है। वे मनुष्य को परमात्मा की महान कृति मानते हैं।  उनके हृदय में पीड़ित मानवता के प्रति गहरी संवेदना थी। उन्होंने शोषण से मुक्ति की चेतना को अपने काव्य में व्यक्त किया है। वे सही अर्थों में विश्व कवि थे। गांधीजी के विचारों का उन पर प्रभाव था।

राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तावना,  विषय वस्तु  और संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। 


सरस्वती वंदना रूली सिंह, मुंबई ने की। स्वागत भाषण डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने दिया और टैगोर की प्रसिद्ध रचना मेरा शीश नवा दो सुनाई।

संगोष्ठी का सफल संचालन मुंबई की डॉक्टर लता जोशी ने किया। उन्होंने हरिप्रसाद द्विवेदी की रचना एक कुत्ता और एक मैना की चर्चा की और कहा कि टैगोर का जगत के प्राणियों और वनस्पतियों के साथ गहरा संबंध था। 

आभार गाजियाबाद की डॉक्टर रश्मि चौबे ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि टैगोर सार्वभौमिक और सार्वकालिक रचनाकार हैं। उनका सन्देश है कि यदि हमारे विचार शुद्ध होंगे तो विश्व सुख और शांतिमय हो जाएगा।

संगोष्ठी में संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ ममता झा, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़, श्रीमती आर्यावती सरोज, लखनऊ, श्री ओम प्रकाश प्रजापति, नई दिल्ली, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, डॉक्टर रोहिणी डावरे, डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई  आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


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