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भारतीय दर्शन और मूल्यों के प्रसार में हनुमान जी के चरित्र का योगदान अनुपम – प्रो शर्मा

भारतीय दर्शन और मूल्यों के प्रसार में हनुमान जी के चरित्र का योगदान अनुपम – प्रो शर्मा 

प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री शुक्ल ने प्रस्तुत किया हनुमान चालीसा का नॉर्वेजियन भाषा में प्रथम अनुवाद

भारतीय साहित्य और संस्कृति में हनुमान जी के चरित्र का विकास पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा हनुमान जयंती के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी भारतीय साहित्य और संस्कृति में हनुमान जी के चरित्र का विकास पर केंद्रित थी। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ. अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद छत्तीसगढ़ थीं। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि प्राध्यापक डॉ दयानन्द तिवारी, मुंबई, वरिष्ठ हिंदी सेवी डॉ अखिल शुक्ला, जयपुर, प्रवासी लेखक श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता संस्था के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ लता जोशी मुंबई ने किया।


मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय संस्कृति, दर्शन और मूल्य दृष्टि के प्रसार में हनुमान जी के चरित्र का अनुपम योगदान है। उनके जैसा कोई दूसरा  भक्त और अध्यात्म साधक नहीं हुआ। देश - विदेश के साहित्य एवं संस्कृति में विविध रूपों में उनके चरित्र और विशेषताओं का विकास होता आया है। उन्हें सप्त चिरंजीवी में स्थान मिला है, वे सर्वत्र विद्यमान हैं। वे समस्त गुणों के भंडार हैं। हनुमान जी वेदज्ञ और बलशाली होने के साथ संगीत और नृत्य के भी प्रकांड विद्वान थे। वे अपनी असीम शक्ति को विस्मृत किए हुए हैं, उन्हें स्मरण दिलाना पड़ता है। इसीलिए सुदूर अतीत से अब तक उनकी शक्ति का स्मरण कराने के अनेक दृष्टांत मिलते हैं। स्वयं हनुमान जी ने राम का चरित्र शिला पर काव्य के रूप में लिखा था, किंतु वाल्मीकि के प्रति स्नेह के कारण उसे सागर में विसर्जित कर दिया।

संगोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ. अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने कहा कि हनुमानजी की कृपा प्रसाद से तुलसी विश्व प्रसिद्ध काव्य रामचरितमानस की रचना कर सके। हनुमान जी अति मानवीय गुणों से युक्त हैं। उनकी भक्ति ही उनकी शक्ति है। वे सर्वज्ञ और सर्व समर्थ हैं। निस्वार्थ कर्म निष्ठा का उदाहरण उनके जैसा दूसरा दिखाई नहीं देता। 

विशिष्ट अतिथि नॉर्वेवासी प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने हनुमान चालीसा का नॉर्वेजियन भाषा में प्रथम बार अनुवाद प्रस्तुत कर आयोजन को ऐतिहासिक बनाया। उन्होंने कहा कि हनुमान जी सभी कामनाओं की पूर्ति करते हैं। यूरोपीय देशों में बसे भारतवंशी हनुमान जी से व्यापक प्रेरणा ग्रहण करते हैं।


विशिष्ट अतिथि एडवोकेट डॉ अखिल शुक्ला, जयपुर ने कहा कि हनुमान जी सर्वशक्तिमान हैं। वे निरंतर राम की आज्ञा के पालन के लिए तत्पर रहते हैं। समर्थ होने के बावजूद उन्होंने समुद्र की मर्यादा का पालन किया। उनकी महिमा अपरंपार है। वे समस्त प्रकार की पीड़ाओं को दूर करने वाले हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि हनुमान जी शिव के रुद्रावतार हैं। वे धर्म और भक्तगणों के रक्षक हैं। जो भी राम के भक्त हैं उनकी रक्षा के लिए स्वयं हनुमान जी तत्पर रहते हैं। वर्तमान में हनुमान की चारित्रिक विशेषताओं के निरंतर स्मरण की आवश्यकता है। उनका चरित्र युगों युगों तक प्रासंगिक रहेगा।


विशिष्ट अतिथि डॉ दयानंद तिवारी, मुंबई ने कहा कि हनुमान जी का चरित्र अनेक विशेषताओं से युक्त है। वे राम के परम भक्त हैं। उनके हृदय में श्रीराम के प्रति गहरी भावुकता है, जिसका दर्शन उनके द्वारा अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लेने के प्रसंग से होता है। कोरोना संक्रमण के दौर में हनुमान जी की भक्ति की आवश्यकता है।


विशिष्ट अतिथि कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि हनुमान जी कुशाग्र बुद्धि और कौशल के लिए जाने जाते हैं। उनमें जरा भी अहंकार नहीं है। रामचरितमानस और हनुमान चालीसा में उनका प्रभावी चरित्रांकन मिलता है। वे संवाद कुशल एवं ज्ञान के प्रतीक हैं और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हैं। आज गांव गांव में हनुमान के मंदिर स्थापित हैं।

स्वागत भाषण एवं कार्यक्रम की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। सरस्वती वंदना डॉ रूली सिंह, मुंबई ने की।

इस संगोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर, प्रो विमल जैन, इंदौर, डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, सुश्री गरिमा गर्ग, सुनीता गर्ग, पंचकूला, सतीश शर्मा, धमतरी, डॉ रूलीसिंह, मुंबई, डॉ शकुंतला सिंह, नियति अग्रवाल सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्य  जन उपस्थित थे। 

कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर लता जोशी, मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर सुनीता चौहान, मुंबई ने किया।


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