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वर्तमान कोरोना व्याधि के संबंध में त्वरित एवं प्रभावी दिनचर्या व चित्कित्सा उपक्रम

 वर्तमान कोरोना व्याधि के संबंध में त्वरित एवं प्रभावी दिनचर्या व चित्कित्सा उपक्रम


  आज की परिस्थिति  को देखते हुए  आयुर्वेद दिनचर्या एवं चिकित्सा का उपयोग अत्यंत प्रभावी दृष्टिगोचर हो रहा है  उदाहरणार्थ केरल केरल राज्य द्वारा किए गए   कार्य एवं उसका परिणाम हमारे समक्ष है आयुर्वेद ग्रंथों एवं सनातन परंपरा में जिस दिनचर्या का वर्णन किया गया है जो  किसी भी प्रकार की संक्रामक व्याधियो से बचाने में अत्यंत प्रभावी है साथ ही अन्यान्य लाभ भी प्राप्त होते हैं।  महामारी के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय एवं आयुष मंत्रालय के तत्वाधान में कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का परीक्षण प्रारंभ हो रहा है लेकिन इसी के साथ हम शीघ्र  लाभ  रोग के  प्रभाव को समाप्त  करने के इसकी आवश्यकता है। प्रमाणिकता के कहा गया है 

इदं  आगम  सिद्ध्त्तवात्  प्रत्यक्ष फल  दर्शनाता।

मंत्रवत् तत  प्रयोकत्वयं  न मीमांशा  कथ्श्चन।।  

अर्थात यह  सब  पहले से ही आप्त पुरूषों के द्वारा  सिद्ध है इसके उपयोग से प्रत्यक्ष  परिणाम  प्राप्त  होता है, अतः  इस  पर  संशय  करने का   कोई  औचित्य नहीं है। 

दिनचर्या को भी इसमें जोड़ कर यदि उपयोग में लाते हैं तो हम दोगुनी क्षमता से इस महामारी पर विजय प्राप्त करेंगे साथ ही हमारे फ्रंटलाइन वर्कर,डॉक्टर  नर्सेज  पैरामेडिकल स्टाफ एवं प्रशासनिक अधिकारी गण को हम संक्रमित होने  से बचा लेंगे।  जिसका परिणाम एक सप्ताह में पूर्णरूपेण सामने होगा ।

हमें  तीन  महत्त्वपूर्ण बिंदुओ  पर  कार्य करने की  आवश्यकता है-

1- चिकित्सा कार्य व प्रशासनिक  व्यवस्था मैं लगे हुए व्यक्तियों को बचाव के लिए ::

 नस्य कर्म  - नासा में  दो दो बूंद  तैल डालना   तैल  अणु तैल,तिल तैल, नारियल तेल ,सरसो  तैल ,बादाम रोगन  तैल हो सकता हैं ।इस  एक प्रक्रिया मात्र से संक्रमण का खतरा  नगण्य  हो जाता है। 

अंजन-  आँखो  में  गाय के घी  को काजल की  तरह लगाना, या  घर  पर  बने  काजल  का  प्रयोग करना।

गंडूष-  मुह में  1चमच कोई  तैल  भर कर 5,7 मिनिट  रखना। 

अभ्यंग - नहाने के  15,20 मिनिट  पहले  पुरे  शरीर  पर  तैल  लगाना।

उक्त  प्रक्रियाओं से  संक्रमण का खतरा  शून्य  हो  जाता है  साथ ही  मानसिक तनाव  कम होता है,  नींद  अच्छी आती है,सेनेटाजर आदि  का दुष्प्रभाव  भी  कम हो जाता है।

एवं  एक अदृश्य  सुरक्षा  कवच तैयार हो जाता है। 

धूपन-गाय का घी, गुग्गुल ,वचा, नीम के  पत्ते, हरीतकी,नागर मोथा  का  धूपन  करें। धूपन से वातावरण  की  शुद्धि  ,सकारात्मक ऊर्जा का संचार, कपड़े आदि  का  विसंक्रमण  होता है। 

साथ  ही कुछ  औषधि  जैसे  सशमनी वटी  2,2 सुबह शाम ,महा सुदर्शन  घन वटी 2,2 सुबह शाम सप्ताह में  तीन दिन  ले। जिससे यदि  व्याधि से संक्रमित भी हो  चुके हैं  तो  भी रोग की अभिव्यक्ति  नही  होगी।साथ ही  दुसरे लोगो में संक्रमण नही  फैला  पाएंगे ।

2-दुसरा बिंदु  संदिग्ध  व्यक्तियों को  दिनचर्या का पालन  तो कराना है साथ  ही जिनमें  रोग के लक्षण नहीं हैं  को  महासुदर्शन  चूर्ण  2,5ग्राम  सामान्य जल से  सुबह शाम  तीन दिन तक  देना है  साथ  ही  गिलोय,वासा (अडूषा ), कालमेघ  या  चिरायता   काढ़ा  या आरोग्यम क्वाथ  का  प्रयोग कर सकते हैं।उक्त  औषधियो के  प्रयोग  से  संक्रमित  असंक्रमित हो   जाएंगे।गिलोय, वासा, चिरयता का काढा  ज्वर, सर्दी, खांसी, श्वास की समस्या  में  अत्यंत  प्रभावी है। बी पी,शुगर, हृदय  लिवर  के रोगियों व गर्भिणी  ,बच्चो के लिए सुरक्षित है, बच्चो को  शहद मिलाकर  देना चाहिए। 

3-तीसरा   बिंदु   संक्रमित  रोगी  जिनमे  रोग के  लक्षण दिखाई दे रहे हैं  को बुखार के  लिये महा सुदर्शन  चूर्ण , गिलोय घन  वटी, संजीवनी वटी   तथा  सर्दी  खासी  के लिए  त्रिकटु  चूर्ण + सितोपलादी  चूर्ण का प्रयोग   साथ ही गिलोय ,वासा,चिरायता  के  काढ़े  का प्रयोग करा सकते हैं।3 दिन  में  रोग के लक्षण  समाप्त हो  जायेगा ,7दिन में  रोगी पूरी तरह से स्वस्थ हो जायेगा।

श्वास की परेशानी होने पर  पीठ पर तैल + सेंधा नमक  मिलाकर  गुनगुना करके  मालिश  व सिकाई  करने से तुरंत आराम मिलता है, इसको  श्वास के  लक्षण वाले  रोगियों में  नियमित कर सकते हैं।


दुसरे संक्रमित क्षेत्रों से आने वाले व्यक्तियों पर बिंदु क्रमांक दूसरा अपनाना चाहिए।

व्यापक स्तर पर यह करने पर हम  रोग पर तो शीघ्र ही  विजय प्राप्त कर लेंगें  साथ ही रोग के उपद्रवों से  भी  बचे   रहेंगे।    

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