Skip to main content

वाणिज्य अध्ययनशाला में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर परिचर्चा आयोजित

उज्जैन : हम भारतीय चुनौतियों को अवसर में बदलने की ताकत रखते हैं विद्यार्थी की रूचि को पहचान कर  शिक्षक के मार्गदर्शक के रुप में अपनी भूमिका निभाए । यह विचार वाणिज्य अध्ययन शाला विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में भारतीय शिक्षण मंडल एवं वाणिज्य अध्ययन शाला के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एक परिचर्चा में भारतीय शिक्षण मंडल की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती अरुणा सारस्वत द्वारा कही गई।

परिचर्चा का विषय था राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 वाणिज्य विषय में चुनौती और अवसर ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रोफेसर डॉ अखिलेश पांडेय जी ने की। इस अवसर पर दीप प्रज्वलन करते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया और अध्यक्षता करते हुए माननीय कुलपति महोदय जी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, विद्यार्थी के व्यवहार में बदलाव लाए और उनको लाइफ लाँग लर्निंग सिखाएं । 

श्री राकेश ढांड ने अपने वक्तव्य में कहा मुझे यह कहते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है कि शिक्षा नीति 2020 गुरुकुल से प्रेरित है। 64 कलाओं में निपुण वाली शिक्षा पद्धति फिर से आ रही है। 

परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए - डी के सिंघल सर ने कहा - वाणिज्य विभाग अध्ययन शाला में लेज़र, बट्टा, टैक्सेशन आदि इस प्रकार से छोटे-छोटे कोर्सेस प्रारंभ किए जाएं,जिससे बच्चे हर फील्ड में जाकर कार्य कर सकें। कॉमर्स की भी लेबोरेट्री बने ।

इस अवसर पर विभागाध्यक्ष एस. के. मिश्रा जी द्वारा स्वागत भाषण व विषय प्रवर्तन किया गया। 

भारतीय शिक्षण मंडल का संगठन गीत और ध्येय वाक्य श्रीमती प्रभा बैरागी द्वारा किया गया, अतिथि परिचय डॉ नेहा माथुर व डॉ परिमिता सिंह ने दिया। 

इस अवसर पर डॉ अनुभा गुप्ता ,डॉ नागेश पाराशर, डॉ नैना दुबे, डॉ कायनात तवर, डॉ प्रेमलता चुटैल, डॉ गीता नायक,  डॉ संग्राम भूषण ,भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांतीय मंत्री डॉ मनु गोराह, वाणिज्य विभाग के विद्यार्थी आदि उपस्थित थे। आभार डॉ आशीष मेहता ने माना व संचालन डॉक्टर रुचिका खंडेलवाल ने किया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...