Skip to main content

आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में स्त्रियों की भूमिका मजबूत हो – प्रो शर्मा ; दुरूह क्षेत्रों में अपार क्षमता दिखा रही हैं महिलाएं – प्रो पांडेय ; मातृशक्ति संचेतना महोत्सव में हुआ मातृशक्ति सम्मान समारोह और महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी

आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में स्त्रियों की भूमिका मजबूत हो  – प्रो शर्मा

दुरूह क्षेत्रों में अपार क्षमता दिखा रही हैं महिलाएं – प्रो पांडेय

मातृशक्ति संचेतना महोत्सव में हुआ मातृशक्ति सम्मान समारोह और महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी 



देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, उज्जैन द्वारा शिवाज् योग नेचुरोपैथी संस्थान, जयपुर के सहयोग से वर्धमान भवन, जयपुर में आयोजित दो दिवसीय मातृशक्ति संचेतना महोत्सव में  मातृशक्ति सम्मान समारोह एवं महिला सशक्तीकरण : नए परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें देश के दस से अधिक राज्यों के प्रतिभागियों ने भाग लिया। आयोजन के मुख्य अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के डीन प्रो नन्दकिशोर पांडेय थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता श्री मोहनलाल वर्मा, उदयपुर ने की। विशिष्ट अतिथि पूर्व विधायक डॉ अर्चना शर्मा, डॉ जयश्री शर्मा, डॉ रंजीता सिंह, देहरादून, डॉ रत्ना शर्मा, जयपुर, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ ममता झा, मुंबई, श्री अनिल लड्ढा, जयपुर, श्री पी सी गांधी, डॉ प्रभु चौधरी, उज्जैन एवं डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर थीं। संगोष्ठी सत्र में महिला सशक्तीकरण के विभिन्न पहलुओं पर विद्वानों ने विचार प्रस्तुत किए। 

महोत्सव के प्रमुख अतिथि प्रो नन्दकिशोर पांडेय ने कहा कि हाल के दो दशकों में समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी के अवसर बढ़े हैं। महिलाओं ने उन कार्यों में अपनी अपार दक्षता दिखाई है, जिन्हें पहले दुरूह माना जाता था। राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ स्त्री शिक्षा और सशक्तीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया गया था।

मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि नए दौर में महिलाएं सदियों से जारी परम्परागत जड़ता से मुक्ति की संभावनाओं को तलाश कर रही हैं। नारी सशक्तीकरण के लिए आवश्यक है कि स्त्री से जुड़े सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव हो। आर्थिक गतिविधियों और राजनीतिक क्षेत्र में स्त्रियों की भूमिका बढ़े, यह जरूरी है। महिला स्वास्थ्य के लिए विशेष प्रयासों की दरकार है। 

अध्यक्षीय भाषण में श्री मोहनलाल वर्मा, उदयपुर ने नारी सशक्तीकरण के लिए सभी स्तरों पर जारी प्रयासों  की चर्चा की। 

संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि नारी शक्ति के सम्मान और उनकी व्यापक हिस्सेदारी से भारत का भविष्य और बेहतर होगा। आयोजन के विशिष्ट अतिथियों ने भी विचार व्यक्त किए।

समारोह में समाज, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए पचास  से अधिक महिलाओं को मातृशक्ति सम्मान से अलंकृत किया गया, इनमें राजमाता जीजाबाई, पन्ना धाय, अहिल्याबाई होलकर, सावित्री बाई फुले एवं सुभद्राकुमारी चौहान पर नामित सात विशिष्ट सम्मान शामिल थे। सम्मानित स्त्रीरत्नों में  डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रेखा भालेराव, उज्जैन, डॉ चेतना उपाध्याय, अजमेर, डॉ रंजीता सिंह, देहरादून, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ अर्चना शर्मा, जयपुर, सुश्री रेणु शब्दमुखर, जयपुर, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई, हेमलता शर्मा, इंदौर (मालवा रत्न), डॉ दीपिका सुतोदिया, असम (श्रेष्ठ कवयित्री), श्रीमती पूर्वांशी जैन, जयपुर, श्रीमती खुशबू शर्मा, जयपुर, श्रीमती कृष्णा भोजावत, इंदौर, श्रीमती अपर्णा जोशी, इंदौर, डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला, नेहा नाहटा, दिल्ली, डॉ  निरुपमा चतुर्वेदी, जयपुर, पायल परदेशी, महू, श्रीमती अपर्णा तिवारी, इंदौर, डॉ ममता झा, मुंबई, श्रीमती तारावती सोनी, जयपुर, डॉ मनीषा सिंह, मुंबई, डॉ आर्यावर्ती सरोजा, लखनऊ, सुश्री प्रगति बैरागी, उज्जैन, मंजूबाला श्रीवास्तव, जोबट, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अकोले, श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, श्रीमती आस्था जैन, जयपुर, श्रीमती जिज्ञासा गोस्वामी, अलीगढ़, श्रीमती नेहा नाहटा, दिल्ली, श्रीमती संतरा बलाई, टोंक, श्रीमती श्रीमती जयश्री शर्मा, इंदौर, डॉ दीपा अग्रवाल, अजमेर, डॉ रत्ना शर्मा, श्रीमती पूनम शर्मा, श्रीमती रेनु शर्मा, श्रीमती विजयलक्ष्मी जोगी, जयपुर, श्रीमती सुनीता धनगर, डॉ अंजू सक्सेना, श्रीमती हिमाद्रि समर्थ, जयपुर, श्रीमती सयाली निवृत्ति भटकूले, पुणे आदि शामिल थीं। आयोजन में देश के विभिन्न भागों के संस्कृतिकर्मी, साहित्यकारों, शिक्षाविद एवं गणमान्यजन ने भाग लिया। 

कार्यक्रम में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा प्रकाशित परिचय पुस्तिका संपर्क का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।


स्वागत भाषण डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने दिया। अतिथियों का स्वागत डॉ प्रभु चौधरी, डॉ शिवा लोहारिया, श्री  अविनाश शर्मा, जयपुर आदि ने किया। कार्यक्रम के शुभारंभ में सरस्वती वंदना नेहा नाहटा, नई दिल्ली ने की। पायल परदेशी, महू ने कविता पाठ किया। स्वागत गीत कवि श्री सुंदर लाल जोशी सूरज नागदा ने प्रस्तुत किया। संस्था परिचय श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला ने दिया। आयोजन में सुश्री मनस्वी भोजावत एवं सुश्री मोक्षा लोहाड़िया ने नृत्य की प्रस्तुति की।

सत्रों का संचालन संस्था के राष्ट्रीय महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं राजस्थान प्रदेश महासचिव रेणु शब्दमुखर, जयपुर ने किया। आभार प्रदर्शन शिवाज् योग नेचुरोपैथी संस्थान की अध्यक्ष डॉ शिवा लोहारिया एवं सुश्री प्रगति बैरागी ने किया।


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...