Skip to main content

आजादी के अमृत महोत्सव पर अमर बलिदानियों के योगदान को लेकर जनजागरण जरूरी ; स्वतंत्रता आंदोलन और दांडी मार्च का योगदान पर परिसंवाद एवं निबंध स्पर्धा आयोजित

आजादी के अमृत महोत्सव पर अमर बलिदानियों के योगदान को लेकर जनजागरण जरूरी  

स्वतंत्रता आंदोलन और दांडी मार्च का योगदान पर परिसंवाद एवं निबंध स्पर्धा आयोजित 

उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर स्वतंत्रता आंदोलन और दांडी मार्च का योगदान विषय पर केंद्रित परिसंवाद और निबंध स्पर्धा का आयोजन किया गया। आयोजन के प्रमुख अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडे थे। विशिष्ट अतिथि प्रभारी कुलसचिव डॉ डी के बग्गा और कला संकायाध्यक्ष प्रोफ़ेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। 

इस अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडे ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव पर हमें अपने देश की आजादी के लिए समर्पित योद्धाओं के  स्मरण के साथ उनके योगदान से जुड़े महत्वपूर्ण पक्षों को लेकर जन चेतना जाग्रत करना है। अपने अमर सेनानियों को लेकर हमें  अभिमान का भाव होना चाहिए। मालवा क्षेत्र के अनेक लोगों ने देश की मुक्ति के लिए अपनी शहादत दी है। आज युवा पीढ़ी को स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों से जोड़ने की आवश्यकता है।

प्रभारी कुलसचिव डॉ डी के बग्गा ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक ज्ञात - अज्ञात लोगों ने योगदान दिया। दांडी मार्च ने भारत की स्वतंत्रता के लिए व्यापक प्रेरणा का संचार किया था। 


विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 18 वीं सदी के पूर्व से आरंभ हो गया था, जो 1857 में और अधिक ऊर्जा पाकर आगे बढ़ा। पिछली दो शताब्दियों में सोंधवाड़ और मालवा क्षेत्र के अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। युवा पीढ़ी आजादी के संघर्ष से जुड़े जननायकों और आंदोलनों से सम्बद्ध स्थलों से प्रेरणा ग्रहण करे। बख्तावरसिंह, अमर जी, अभय जी जैसे महान बलिदानियों के स्मरण के साथ उनके योगदान के दस्तावेजीकरण की आवश्यकता है। 


इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय परिक्षेत्र के विभिन्न महाविद्यालयों के 20 विद्यार्थियों ने दांडी मार्च का आजादी में योगदान विषय पर केंद्रित विश्वविद्यालय स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में भाग लिया। इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान रूपल दवे, श्री साईं इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रतलाम ने प्राप्त किया। द्वितीय शासकीय कन्या महाविद्यालय, रतलाम की छात्रा कविता रूपसिंह रहीं। तृतीय स्थान शासकीय महाविद्यालय, कायथा की छात्रा राधा पंवार ने प्राप्त किया। विजेता प्रतिभागी आगामी चरण में भोपाल में आयोजित राज्यस्तरीय निबंध स्पर्धा में भाग लेंगे।


आयोजन में प्राध्यापक डॉ मृदुल शुक्ला, डॉ निवेदिता वर्मा, डॉ मुकेश शाह, डॉ हेमंत लोदवाल सहित विभिन्न महाविद्यालयों के दल प्रबंधक एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।


कार्यक्रम का संचालन डॉ मुकेश शाह ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ हेमंत लोदवाल ने किया ।


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...