हिंदी और भारतीय नागरिकों का योगदान अविस्मरणीय है विश्व फलक पर - प्रोफेसर शर्मा ; विश्व में हिंदी का प्रभाव और भारतीय नागरिक पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
हिंदी और भारतीय नागरिकों का योगदान अविस्मरणीय है विश्व फलक पर - प्रोफेसर शर्मा
विश्व में हिंदी का प्रभाव और भारतीय नागरिक पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा विश्व में हिंदी का प्रभाव और भारतीय नागरिक पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे को उनके जन्म दिवस पर सारस्वत सम्मान किया गया। प्रमुख अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ शिवा लोहारिया, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ शम्भू पंवार, झुंझुनूं थे। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। मुख्य वक्ता संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी थे। आयोजन में देश के विभिन्न भागों के संस्कृतिकर्मी एवं साहित्यकारों ने भाग लिया।
सारस्वत अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि हमें भारत और हिंदी को लेकर बृहद् परिवार की अवधारणा से जुड़ना होगा। दुनिया में पारस्परिक समझ को बढ़ाने का कार्य भारतीय संस्कृति सदियों से कर रही है। वर्तमान दौर में आतंक और अहिंसा के विरुद्ध भारत महत्वपूर्ण संदेश दे रहा है।
प्रमुख अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि नए विश्व की रचना में भारतीय नागरिकों और विश्व भाषा के रूप में विस्तार पा रही हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका है। हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा के साथ विभिन्न संस्कृतियों के मध्य सेतु बनाने का कार्य वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक अनेक दशकों से कर रहे हैं। वे वैश्वीकरण के दौर में सार्थक रच रहे हैं। उनकी कविताओं में संपूर्ण वैश्विक पर्यावरण और समुदायों की चिंता दिखाई देती है। वे अपने घर - गांव और अपनी संस्कृति से अपनत्व का भाव कविता के माध्यम से प्रस्तुत करते आ रहे हैं। साथ ही स्केंडनेवियन देशों की संस्कृति, जीवन शैली और प्रकृति को कविता के माध्यम से प्रकट करते रहे हैं। उनकी कविताएं गहरी संवेदना के साथ समय और समाज के अनदेखे - अनछुए पहलुओं को उजागर करती हैं।
विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि श्री सुरेश चंद्र शुक्ल ने किसान, महिला, दलित आदि सभी का चित्रण गहरी संवेदना के साथ किया है। वे देश - विदेश में हो रही तमाम तरह की घटनाओं को सूक्ष्मता से देखते - दिखाते हैं।
श्रीमती लता जोशी, मुम्बई ने कहा कि हिंदी के विश्वव्यापी प्रसार में सिनेमा, गीत - संगीत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, चीन जैसे देशों में हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई है।
विशिष्ट वक्ता शिक्षाविद डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि हिंदी को विश्व मंच पर प्रतिष्ठित करने में श्री सुरेश चंद्र शुक्ल जैसे प्रवासी भारतीय साहित्यकारों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। श्री शुक्ल का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे निरंतर अभिव्यक्ति के लिए सक्रिय रहते हैं।
अध्यक्षीय भाषण में संस्था के अध्यक्ष शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि साहित्यकार श्री शुक्ल ने हिंदी के गौरव को भारत की सीमाओं से परे दूर तक बढ़ाया है।
संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि संपूर्ण विश्व में हिंदी सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। दुनिया के भाषाई आंकड़े बताते हैं कि हिंदी प्रथम स्थान पर प्रतिष्ठित है।
डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर में कहा कि हिंदी के प्रति अपनत्व का भाव प्रत्येक भारतवासी के मन में होना चाहिए। अपनी भावना और विचारों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम मातृभाषा हो सकती है। उन्होंने श्री शुक्ल के स्वस्थ और आनंदमय जीवन की मंगलकामनाएं अर्पित कीं।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर और डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे के योगदान पर केंद्रित स्लाइड प्रस्तुति डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की।
कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से श्रीमती ज्योति तिवारी ने किया। स्वागत भाषण डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने दिया।
आयोजन में श्री वासुदेव भरत, शिमला और हेमानंद रतूड़ी, टिहरी गढ़वाल विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम में श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ आशीष नायक, रायपुर, मंजूबाला श्रीवास्तव डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अकोले, डॉ जितेंद्र पांडेय, डॉ अरुणा शुक्ला, डॉ लता जोशी, मुम्बई, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर सहित अनेक शिक्षाविद एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
संगोष्ठी का सफल संचालन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने किया।
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