भारतवर्ष को राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक सूत्र में बांधा सम्राट विक्रमादित्य ने ; विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ सम्राट विक्रमादित्य : पुरातत्त्व, इतिहास और साहित्य के संदर्भ में पर राष्ट्रीय परिसंवाद
भारतवर्ष को राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक सूत्र में बांधा सम्राट विक्रमादित्य ने
विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ सम्राट विक्रमादित्य : पुरातत्त्व, इतिहास और साहित्य के संदर्भ में पर राष्ट्रीय परिसंवाद
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं गांधी अध्ययन केंद्र द्वारा सम्राट विक्रमादित्य : पुरातत्त्व, इतिहास और साहित्य के संदर्भ में पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन हुआ। आयोजन के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ विद्वान एवं सम्राट विक्रमादित्य शोध पीठ, उज्जैन के पूर्व निदेशक डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। परिसंवाद में प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक एवं डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने विचार व्यक्त किए।
प्रमुख वक्ता डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सम्राट विक्रमादित्य ने अपने विद्याप्रेम, शौर्य और पराक्रम के माध्यम से अविस्मरणीय योगदान दिया। उन्होंने अपने व्यापक प्रयासों से संपूर्ण भारतवर्ष को राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक सूत्र में बांध दिया था। कलियुग में भी कृतयुग या सतयुग लाने का महान कार्य उन्होंने किया। वे विद्वानों और साहित्यकारों के आश्रयदाता थे। विक्रमादित्य से जुड़े अनेक पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। उन्होंने 57 ईसा पूर्व में विक्रम या कृत संवत का प्रवर्तन किया था। इसका उल्लेख अंवलेश्वर से प्राप्त शिलालेख पर मिलता है। विभिन्न स्थानों से प्राप्त मुद्राओं, सीलों, प्रतिमाओं और शिलालेखों पर विक्रमादित्य संबंधी महत्त्वपूर्ण संदर्भ मिलते हैं। विक्रमादित्य पर केंद्रित अनेक रचनाएं संस्कृत, हिंदी, मराठी, गुजराती सहित अधिकांश भारतीय भाषाओं में रची गईं। विक्रमादित्य के युग के कवि और कलाकार माधवानल की चर्चा मिलती है। उन पर केंद्रित लगभग एक दर्जन काव्य और नाटक उपलब्ध हैं। रीतिकालीन कवि आलम ने अकबर को विक्रमादित्य के सदृश वर्णित किया है।
परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि विक्रमादित्य की कीर्ति देश की सीमाओं से परे अरब से लेकर दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों तक फैली हुई है। मंगोली भाषा में उपलब्ध पुरातन ग्रन्थ आरजी बुरजि में विक्रमादित्य की महिमा का सार्थक अंकन हुआ है। मंगोलिया से यह ग्रंथ अनूदित होकर रूस और जर्मनी भी पहुँचा। कथासरित्सागर, बेताल पच्चीसी, सिंहासन बत्तीसी सहित अनेक साहित्यिक कृतियों, पुराण और लोकाख्यानों में विक्रमादित्य के अनुपम व्यक्तित्व और कार्यों का वर्णन हुआ है। वे शैवोपासक और दिग्विजयी शासक थे। उन्होंने कई मत – पंथों और वैज्ञानिकों एवं कवियों को आश्रय दिया। आदि विक्रमादित्य से संबंधित पर्याप्त पुरातात्विक, ऐतिहासिक, साहित्यिक और लोक सांस्कृतिक साक्ष्य उपलब्ध हैं।
कार्यक्रम में पुरातत्त्व, इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान के लिए विद्वान डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित का सारस्वत सम्मान प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक एवं डॉ जगदीश चंद्र शर्मा द्वारा अंग वस्त्र एवं श्रीफल अर्पित कर किया गया।
परिसंवाद में डॉ रचना जैन, संदीप पांडेय, लखनऊ, सुमेधा दुबे, झालावाड़, सपना अरोरा, रिंकी मुवानिया, रतलाम, बीरेंद्र यादव आदि अनेक प्रतिभागी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन श्रीमती हीना तिवारी ने किया।
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