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देश दुनिया की भाषाओं को परस्पर जोड़ने के लिए देवनागरी लिपि समर्थ है – प्रो शर्मा ; देवनागरी लिपि : वैशिष्ट्य और संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न




देश दुनिया की भाषाओं को परस्पर जोड़ने के लिए देवनागरी लिपि समर्थ है – प्रो शर्मा 

देवनागरी लिपि : वैशिष्ट्य और संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न   

 भाषा एवं लिपि के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ शहाबुद्दीन शेख का सारस्वत सम्मान हुआ

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा देवनागरी लिपि : वैशिष्ट्य  और संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के अनेक विद्वान वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया।  कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी में  भाषा एवं लिपि के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए वरिष्ठ  शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे का सारस्वत सम्मान किया गया। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर शंभू पवार, झुंझुनू, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने की।

वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, पत्रकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि वर्तमान दौर में देवनागरी से जुड़े आत्म गौरव के भाव को जगाने की आवश्यकता है। देवनागरी के प्रयोग को राष्ट्रप्रेम का माध्यम बनाने के लिए सभी लोग प्रयत्नशील हों। उन्होंने अपनी एक कविता भी सुनाई।


लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि देश दुनिया की समस्त भाषाओं के मध्य गहरी एकता विद्यमान है। इस एकता को और अधिक मजबूती देने के लिए देवनागरी लिपि महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। देश दुनिया की भाषाओं को लिपिबद्ध करने और उन्हें परस्पर जोड़ने के लिए देवनागरी लिपि सर्वाधिक समर्थ है। लिपिविहीन लोक और जनजातीय भाषाओं को जीवंत रखने के लिए देवनागरी लिपि का सशक्त आधार मिले, यह आवश्यक है। जिस तरह सात रंगों के समूहन से विराट सूर्य आकार लेता है, ठीक यही स्थिति भारत की विभिन्न भाषाओं की है। भाषाओं और बोलियों के मध्य सेतु बनाने का कार्य सदियों से देवनागरी लिपि करती आ रही है। सन अट्ठारह सौ बयासी  में गठित भारत के प्रथम शिक्षा आयोग ने अनेक विरोधों के बावजूद देश की जनजातीय बोलियों के लिप्यंकन के लिए देवनागरी लिपि को महत्व दिया था। नई शिक्षा नीति में  मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा पर बल दिया गया है। विभिन्न मातृभाषाओं को देवनागरी लिपि का आधार मिलना चाहिए, राष्ट्रीय भावात्मक एकता को बल मिलेगा। कुछ लोक भाषाओं में इस प्रकार की ध्वनियाँ मिलती हैं, जिनके लिए देवनागरी में उपयुक्त लिपि चिह्न नहीं हैं। इसके लिए देवनागरी के ही लिपि चिह्नों में संकेतक चिह्नों का प्रयोग कर उन विशिष्ट ध्वनियों को व्यक्त किया जा सकता है।


प्राचार्य शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख ने कहा कि यदि भाषा शरीर है तो लिपि उस भाषा की आत्मा होती है| देवनागरी लिपि  एक समन्वित लिपि है| भारतीय संविधान के अष्टम अनुसूची में निर्दिष्ट 22 भाषाओं में से संस्कृत, हिंदी, मराठी, कोंकणी, मैथिली, संथाली, बोडो, डोगरी, सिंधी, नेपाली आदि 10 भाषाओं की लिपि देवनागरी का प्रयोग किया जाता है। आचार्य विनोबा भावे जी दस- बारह भाषाओं के ज्ञाता थे। उनका कहना था कि देवनागरी लिपि के माध्यम से किसी भी भाषा को आसानी से आत्मसात किया जा सकता है। वैश्विक लिपि के संदर्भ में देवनागरी एक आदर्श, कलात्मक, अक्षरात्मक तथा बौद्धिक लिपि हैं, जो समस्त गुणों से संपन्न है। केवल भारत की ही नहीं, अपितु विश्व की किसी भी भाषा को देवनागरी लिपि के माध्यम से सहजता से लिखा जा सकता है।


अध्यक्षीय वक्ता के रूप में आदरणीय ब्रजकिशोर शर्मा जी ने डॉ शहाबुद्दीन शेख को बधाई देते हुए कहा  कि उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है| आपने कहा कि वे एक अच्छे इंसान तो है ही, पर शिक्षा के माध्यम से आपने राष्ट्र की अप्रतिम सेवा की है। श्री शर्मा ने कहा कि देवनागरी लिपि निरंतर विकासशील रही है सारी लिपियों के मध्य देवनागरी में अनेक विशेषताएं हैं।


कार्यक्रम में डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख के जन्म दिवस पर उपस्थित जनों ने उन्हें बधाई दी। अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉक्टर शंभू पंवार, झुंझुनू, श्री राकेश छोकर,  नई दिल्ली, डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, शिवा लोहारिया, जयपुर, श्री हरेराम वाजपेयी, डॉ सुषमा कोंडे आदि ने डॉ शेख के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला।


अतिथि परिचय एवं संस्था परिचय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया। उन्होंने कहा कि देवनागरी लिपि विश्व लिपि है। इसके प्रचार के लिए निरंतर प्रयास करना होगा।


राष्ट्रीय सचिव गरिमा गर्ग, पंचकूला ने भाषा की महिमा पर कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं, लाइन, बिंदी, मात्राएँ इस भाषा की जान हैं, इन आभूषण से होता भारत का शृंगार है। हिंदी है हमारी भाषा हिंदी हमारी जान है, सभी वेदों का इस भाषा में हुआ बखान है। 


संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना साहित्यकार डॉ प्रवीण बाला, पटियाला ने की। स्वागत गीत साहित्यकार डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद एवं बधाई गीत डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण डॉ डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने दिया। कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ आशीष नायक, रायपुर ने प्रस्तुत की।  


अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में  संस्था की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ लता जोशी, मुंबई, श्री गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, डी पी शर्मा, डॉ संगीता पाल, कच्छ, डॉ सुषमा कोंडे, डॉ ममता झा, मुम्बई, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, श्री पंढरीनाथ शेल्के, श्री मुदस्सिर सैयद, ललिता घोड़के, डॉ मनीषा सिंह, मुंबई, प्रगति बैरागी, मथेसूल जयश्री अर्जुन, जागृति पटेल, मस्तान शाह, प्रवीण बाला, पटियाला, वंदना तिवारी, डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर, डॉ अशोक गायकवाड, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, श्री अफजल शेख, श्री दत्तात्रेय टिलेकर, डॉ शोभा राणे, डॉ श्वेता पंड्या, डॉ पोपटराव आवटे, डॉ रीता माहेश्वरी, घनश्याम राठौर, नजमा शेख, जिया खान, असीम आरा शेख, डॉ अनुराधा अच्छवान, डॉक्टर मुक्ता यादव, जागृति पाटील, वंदना तिवारी, अलीम शेख आदि सहित अनेक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ रोहिणी डाबरे एवं डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ लता जोशी, मुंबई ने किया।

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