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आध्यात्मिक राष्ट्रवाद के समर्थक थे महामना मालवीय जी – प्रो शर्मा ; महामना मालवीय जी और भारतरत्न अटल जी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न

 आध्यात्मिक राष्ट्रवाद के  समर्थक थे महामना मालवीय जी  – प्रो शर्मा
 
महामना मालवीय जी और भारतरत्न अटल जी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न   



महामना मालवीय जी : राष्ट्रीय आंदोलन, शिक्षा और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य एवं भारतरत्न  अटलबिहारी वाजपेयी के वैचारिक और साहित्यिक योगदान पर हुआ मंथन


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा महामना मदनमोहन मालवीय और श्री अटलबिहारी वाजपेयी के विविधायामी योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के अनेक विद्वान वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया।  यह संगोष्ठी महामना मदनमोहन मालवीय : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, शिक्षा और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य और भारतरत्न श्री अटलबिहारी वाजपेयी : वैचारिक और साहित्यिक योगदान पर केंद्रित थी।


कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे।  संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर, प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन, वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, वरिष्ठ पत्रकार डॉ शंभू पवार, झुंझुनू, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की।

वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, पत्रकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि श्री अटलबिहारी वाजपेयी सरलता और सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उनके काव्यात्मक भाषणों का गहरा असर होता था। अटल जी ने भारतीय राजनीति को  परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शुक्ल जी ने मालवीय जी और अटल जी पर केंद्रित स्वरचित गीत की पंक्तियां सुनाई, अटल के संकल्पों को, मालवीय के सपनों को, फिर मैं दोहराऊँगा। कोहराम मचाऊँगा, गीत नया गाऊंगा।

प्रमुख वक्ता लेखक और आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महामना मदनमोहन मालवीय की जीवन दृष्टि के दो मूल आधार थे, ईश्वर भक्ति और देशभक्ति। इन दोनों का जैविक संश्लेषण और ईश्वरभक्ति का देशभक्ति में अवतरण उन्हें अद्वितीय बनाता है। आजाद भारत में अटल जी ने महामना की राष्ट्रीय भावना को आगे बढ़ाया। महामना मालवीय जी का विश्वास था कि मनुष्य के पशुत्व को ईश्वरत्व में परिणत करना ही धर्म है और निष्काम भाव से प्राणी मात्र की सेवा ही ईश्वर की वास्तविक आराधना है। महामना इस अर्थ में भारतीय आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। पश्चिम का राष्ट्रवाद जहां दार्शनिक धरातल पर भौतिकवाद पर टिका हुआ है, वहीं भारतीय राष्ट्रवाद एक मानसिक और आध्यात्मिक प्रत्यय है। इसीलिए पश्चिमी राष्ट्रवाद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का समर्थक हो जाता है, वहीं भारतीय राष्ट्रवाद मानव मात्र की समानता और बुद्धि एवं भावना के समन्वय पर बल देता है। वह वसुधैव कुटुंबकम् के प्रादर्श को सदैव अपनी दृष्टिपथ में रखता है। महामना ने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को भी गति दी। उन्होंने धार्मिक वैमनस्य का विरोध किया। वे सभी धर्मों के रीति-रिवाजों में ऐसा सुधार चाहते थे, जिससे किसी के धार्मिक विचारों को ठेस ना पहुंचे। अटल जी की दृष्टि में भारत महज जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। इस दृष्टि से महामना और अटल जी के चिंतन में निरंतरता दिखाई देती है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महामना मदनमोहन मालवीय और अटलबिहारी वाजपेयी जी ने राष्ट्र को सर्वोपरि माना था। मालवीय जी के पूर्वजों का मालवा क्षेत्र से गहरा संबंध था। अटल जी ने बहुत बड़े जन समुदाय को प्रेरणा दी है। श्री वाजपेयी ने अपनी कविता की पंक्तियां सुनाई, तुम अटल रहे, तुम अटल रहोगे, दुनिया के दिल में सदा रहोगे।


विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि महामना मदनमोहन मालवीय भारतीय संस्कृति के साक्षात प्रतिरूप थे। उनके जैसे व्यक्तित्व कभी कभार ही होते हैं। महात्मा गांधी उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे। उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया।  हिंदी भाषा और साहित्य के विविध पहलुओं पर उन्होंने पर्याप्त लेखन किया। महान पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है।


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर जी डी अग्रवाल इंदौर ने कहा कि अटल जी ने अपनी रचनाधर्मिता को राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद बरकरार रखा। श्री अग्रवाल ने अटल जी की चर्चित कविताएँ सुनाईं। इनमें मुख्य थीं, हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा और पेड़ के ऊपर खड़ा आदमी ऊंचा दिखाई देता है।

प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि मालवीय जी महामना थे तो अटल जी उदारमना। दोनों ने समाज सेवा और राजनीति के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। पत्रकारिता को उन्होंने समाज जागरण का माध्यम बनाया था। मालवीय जी बहुत बड़े समाज सुधारक थे। उन्होंने सत्यमेव जयते के सूत्र को लोकप्रिय बनाया। अटल जी जनता की आशाओं और आकांक्षाओं को पूर्ण करने में आजीवन तत्पर रहे। देश और समाज के लिए कुछ करने की अभिलाषा से वे राजनीति में आए थे। उनकी कविताएं युवा पीढ़ी को प्रेरणा देती हैं। वे सही अर्थों में अजातशत्रु थे। 


विशिष्ट अतिथि संस्था की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने अटल जी के साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि अटल जी प्रखर कवि और पत्रकार थे। वे साहित्य और राजनीति दोनों को जीवन का अंग मानते थे। उनके भाषण वैचारिकता से संपन्न होते थे। उसमें उनका लेखक और राजनीतिक व्यक्तित्व उतरता था। श्रीमती जाधव ने अटल जी की कविता मौत से मेरी ठन गई सुनाई।

कार्यक्रम में इस वर्ष के अटलश्री सम्मान से अलंकृत किए जाने वाले साहित्यकारों की घोषणा की गई। इनमें श्रीमती आर्यमा सान्याल, इंदौर, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, श्री अनिल ओझा, इंदौर, श्री कमलेश दवे सहज, नागदा एवं डॉ आशीष नायक रायपुर सम्मिलित हैं। अटलश्री सम्मान से अलंकृत होने वाले साहित्यकार श्री अनिल ओझा इंदौर में आभार व्यक्त किया। 


डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने अटल जी पर केंद्रित अपना गीत सुनाया।

कार्यक्रम की प्रस्तावना संस्था के  महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि भारत के नवनिर्माण में महामना मालवीय जी और अटल जी का योगदान अविस्मरणीय है।  


संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना साहित्यकार डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला ने की। स्वागत भाषण डॉ डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने दिया। संस्था का परिचय और अतिथि स्वागत वरिष्ठ पत्रकार डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू ने किया।  


अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में  संस्था की साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, श्री अनिल ओझा, डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, डी पी शर्मा, डॉ संगीता पाल, कच्छ, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ प्रियंका द्विवेदी, प्रयागराज, श्रीमती हेमलता साहू, डॉ श्वेता पंड्या, डॉ संगीता हड़के, डॉक्टर दिव्या पांडे, इलाहाबाद, मनोज कुमार, रजिया शहनाज, डॉ अलका चौहान आदि सहित अनेक प्रतिभागियों ने भाग लिया।


अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ दिव्या पांडेय, प्रयागराज ने किया।

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