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जब तक प्रेम तत्त्व रहेगा, तब तक भक्ति काव्य रहेगा प्रासंगिक – प्रो शर्मा ; विक्रम विश्वविद्यालय में हुई भक्तिकालीन काव्य : कबीर और सूर का परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी


 

विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला एवं गुरु नानक अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्त्वावधान में वाग्देवी भवन में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। यह संगोष्ठी भक्तिकालीन काव्य : कबीर और सूर का परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित थी। आयोजन की मुख्य अतिथि डॉ अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद की हिंदी विभाग की आचार्य डॉ भारती गोरे एवं जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के हिंदी विभाग के आचार्य डॉक्टर श्रवण कुमार मीणा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता  विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर प्रेमलता चुटैल, प्रोफेसर गीता नायक, डॉक्टर जगदीश चंद्र शर्मा, डॉक्टर प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने कबीर, सूर आदि भक्तिकालीन रचनाकारों की वाणी और चिंतन के विविध आयामों पर अपने विचार व्यक्त किए। 

मुख्य अतिथि डॉ अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद के हिंदी  विभाग की आचार्य डॉ भारती गोरे ने कहा कि समाज में व्याप्त विसंगतियों और उलझनों का समाधान भक्तिकालीन कवियों ने प्रस्तुत किया। उस दौर में सामान्य जनता परस्पर जुड़ने  के लिए तैयार नहीं थी, भक्तों ने सभी को जोड़ा। उन्होंने लोगों के मन में व्याप्त असमंजस को तोड़ा। भक्त कवि लोगों को भरमाने वाले तत्वों से मुक्त करते हैं। भक्तों ने आत्मा और परमात्मा के योग का मार्ग सुझाया। उस दौर में विश्वास का संकट था, भक्त कवि उससे मुक्त करते हैं। आज के दौर में भी उनकी  वाणी  विश्वास जगाती है। कबीर ने परम तत्व की प्राप्ति में बाधक तत्वों का निषेध किया, वहीं सूर ने जन सामान्य को जीवन जीने की कला सिखाई। जीवन में संतोष और धैर्य का मार्ग सूर की गोपियां सिखाती हैं।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भक्ति काल के कवि अंदर और बाहर की दुनिया को बदलने का मार्ग सुझाते हैं। शास्त्र और लोक के सही समझ भक्त कवियों को थी, इसीलिए वे दोनों के मध्य सामंजस्य कर सके। कबीर, सूर सहित सभी भक्त कवियों ने प्रेम तत्व पर बल दिया और उसी के माध्यम से लोक कल्याण का मार्ग सुझाया। जब तक प्रेम तत्त्व रहेगा, तब तक भक्तिकालीन काव्य प्रासंगिक बना रहेगा। कबीर उन मूल्यों की खोज करते हैं जिनसे अमानवीयता,  असमानता और विभेद को नष्ट किया जा सके। जीवन दृष्टि के विकास में किसी कवि या संत का क्या महत्त्व होता है, यह कबीर के नजदीक जाने से स्पष्ट होता है।



डॉ श्रवण कुमार मीणा, जोधपुर में पहले दिन ऑनलाइन व्याख्यान के माध्यम से शोध की प्रक्रिया और विभिन्न चरणों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वर्तमान में शोध के क्षेत्र में  नवीन आयाम उद्घाटित हो रहे हैं।

डॉ प्रेमलता चुटैल ने कहा कि सूर ने बालकृष्ण की लीलाओं के माध्यम से अनेक संदेश दिए हैं। उन्होंने ग्राम संस्कृति की महिमा को रेखांकित किया। परस्पर सद्भाव और सामंजस्य की प्रतिष्ठा सूर काव्य की प्रमुख विशेषता है। सूर काव्य से जीवन के अनेक आध्यात्मिक और सामाजिक अर्थ खुलते हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में कर्म के प्रति निष्ठा को मुखरित किया। कबीर ने स्वानुभूति पर बल दिया है। भारतीय दृष्टि अखंडता की बात करती है, सदियों पूर्व भक्त कवियों ने इस पर बल दिया।

प्रो गीता नायक ने कहा कि कबीर और सूर दोनों ध्रुव तारे की तरह अमर हैं। भक्ति ईश्वर के प्रति परम अनुरक्ति है। प्रेम समर्पण चाहता है, उससे आगे का चरण श्रद्धा है। सूर काव्य में विरह के मार्मिक प्रसंग मिलते हैं। सूरदास सहज प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। उन्होंने कल्पना की मनोरम उड़ानें भरी हैं।  

डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि कबीर ने विरोधों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की। उन्होंने आत्मवादी और अनात्मवादी परंपराओं का समन्वय किया। सिद्धों की सहज साधना, शैव तंत्र और ब्रह्म की औपनिषदिक दृष्टि का समावेश कबीर काव्य में मिलता है। उन्होंने विभिन्न प्रकार की साधना पद्धतियों के बीच भी समन्वय किया।


डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि भक्तिकाल ने जनमानस में अपनी अमिट छाप छोड़ी है भक्त कवियों ने आत्म चेतना को जगाने का कार्य किया वात्सल्य और वियोग शृंगार की दृष्टि से सूर का योगदान अविस्मरणीय है। कबीर ने समाज सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। उनके जैसे कवियों के कारण भक्ति काल को स्वर्ण युग की संज्ञा मिली है।

इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा एवं उपस्थित जनों ने मुख्य अतिथि भारती गोरे का सम्मान किया। संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में डॉ लक्ष्मीचंद मालवीय, डॉ श्वेता पंड्या, श्रीराम सौराष्ट्रीय, पंढरीनाथ देवले, आरती परमार, सुदामा सखवार, तारा वाणिया, अखिलेश परमार, प्रियंका नाग मोढ़, मणि मिमरोट, संतोष चौहान, कुलदीप जाट, बीरेंद्र यादव आदि सहित अनेक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

संचालन जयहिंद स्वतंत्र ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर प्रतिष्ठा शर्मा ने किया।

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