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राष्ट्रीय डाक सप्ताह का औपचारिक समापन

राष्ट्रीय डाक सप्ताह का औपचारिक समापन


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डाक विभाग ने बदलते समय के साथ अपने को परिवर्तित करते हुए अपनी प्रासंगिकता आज भी बनाए रखी है : श्री मोहन अग्रवाल, समाजसेवी


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1990 के दशक में संचार क्रांति के फलस्वरूप आये फैक्स, पेजर, ईमेल एवं मोबाइल फोन ने संचार माध्यम को गति अवश्य दी है परंतु पोस्ट ऑफिस ने अपने आप को बदलाव के अनुरूप ढालते हुए सामाजिक सरोकार की प्रासंगिकता बनाए रखी है : पोस्टमास्टर जनरल श्री बृजेश कुमार


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इंदौर, गुरुवार, 15 अक्टूबर, 2020 । राष्ट्रीय डाक सप्ताह का आज इंदौर जीपीओ में औपचारिक समापन हो गया । 9 अक्टूबर 2020 से शुरू हुए राष्ट्रीय डाक सप्ताह के दौरान पूरे इंदौर परिक्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए जिनमें विश्व डाक दिवस, बचत बैंक दिवस, डाक जीवन बीमा दिवस, व्यवसाय विकास दिवस और मेल्स दिवस प्रमुख हैं । 


भारतीय डाक विभाग के इंदौर जीपीओ में "राष्ट्रीय डाक सप्ताह" के अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवी श्री मोहनलाल अग्रवाल को शॉल ओढ़ाकर कर सम्मानित भी किया गया |


इस अवसर पर आयोजित एक समारोह में बोलते हुए इंदौर के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं लेखक श्री मोहन अग्रवाल ने कहा कि, डाक विभाग ने बदलते समय के साथ अपने को परिवर्तित करते हुए अपनी प्रासंगिकता आज भी बनाए रखी है । 19 वी सदी में जब टेलीग्राफ ईजाद हुआ था तब ऐसी धारणा बन रही थी कि डाकघर अब कुछ ही दिनों का मेहमान है । लोगों के जीवन के सभी पहलुओं से सरोकार रखने वाला, देशव्यापी पहुंच के चलते डाक विभाग आज भी एक सशक्त एवं सक्षम सेवा प्रदाता बनकर लोगों की पहली पसंद बना हुआ है । 


कार्यक्रम के अध्यक्ष पोस्टमास्टर जनरल श्री बृजेश कुमार ने संबोधित करते हुए कहा कि सन 1990 के दशक में संचार क्रांति के फलस्वरूप आये फैक्स, पेजर, ईमेल एवं मोबाइल फोन ने संचार माध्यम को गति अवश्य दी है परंतु पोस्ट ऑफिस ने अपने आप को बदलाव के अनुरूप ढालते हुए सामाजिक सरोकार की प्रासंगिकता बनाए रखी है । चाहे सीबीएस बैंकिंग हो या आधार हो या पासपोर्ट सेवा हो या फिर हाल ही में शुरू की गई नागरिक सुविधा केंद्र सेवा हो, डाक विभाग बखूबी अपनी सेवाएं प्रदान कर रहा है। 


यदि यह कहा जाय कि, आपदा को अवसर में बदलना डाक विभाग की विशेषता रही है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । कोविड-19 के दौरान जब पूरा देश लॉकडाउन के अंदर कराह रहा था उस वक्त में भारतीय डाक विभाग द्वारा अपनी सार्थकता एवं विश्वसनीयता साबित करते हुए लोगों के घरों तक जरूरी दवाएं एवं आवश्यक सामग्री पहुंचाने में अग्रणी भूमिका अदा की है । विभाग द्वारा कोविड-19 के दौरान 100 टन से अधिक दवाइयां जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाई है । इतना ही नहीं अस्पतालों एवं प्रयोगशालाओं में पीपीई किट व सैंपल आदि भी भेजे हैं । कोविड-19 के दौरान आम जनता को उनके घर पर ही पैसा भी पहुंचाया है । विभाग की इन सेवाओं को देखते हुए माननीय प्रधानमंत्रीजी ने डाक कर्मियों को कोरोना-योद्धा की संज्ञा दी है । डाक विभाग को कोरोनाकाल में राष्ट्रीय स्तर का बेस्ट लाजिस्टि‍क्सा सर्विस प्रोवाईडर अवार्ड भी प्रदान किया गया है । अभी तक भारतीय डाक विभाग आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम के जरिए 6000 करोड़ से अधिक का भुगतान लोगों के द्वार पर कर चुका है और विभाग की यह अनवरत यात्रा जारी है । 


इस कार्यक्रम में सहायक निदेशक श्री ओ पी चौहान, प्रवर अधीक्षक डाकघर श्री एम के श्रीवास, अधीक्षक इंदोर मौफसिल श्री प्रवीण बहुलकर, अधीक्षक रेल डाक सेवा श्री अनूप सचान, इंदौर जीपीओ के सीनियर पोस्टमास्टर श्री राजेश कुमावत के साथ-साथ अनेक डाक कर्मचारी और आमजन उपस्थित थे।


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भारतीय डाक विभाग - 


कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी । 


सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहॉं हमारा ।।



तकनीकी और डिजीटल संप्रेषण के बदले हुए इस युग में एक व्यक्ति. ऐसा भी है जो आज भी संचार के सबसे प्राचीनतम माध्यम पोस्टकार्ड का उपयोग कर अपने संदेशों का संप्रेषण करता है, ये है इंदौर निवासी श्री मोहन अग्रवाल। 


प्रसिद्ध समाजसेवी श्री मोहन अग्रवाल का डाक विभाग से बरसों का नाता आज एक समारोह के रूप में सामने आया । सरलता और सादगी के प्रतीक 1957 में इंदौर में जन्मे श्री अग्रवाल वाणिज्य में स्नातक है एवं अध्ययन में बहुत रुचि रखते हैं । पुस्तकों समाचार पत्रों आदि से अच्छी बातें पढ़ते समय ही लेखक के नाम सहित डायरी में दर्ज कर लेते हैं । इलाहाबाद में आनंद भवन में इंदिरा जी के नाम, नेहरूजी के पत्र देखने से श्री अग्रवाल को पत्र लिखने की प्रेरणा मिली और उन्होंने पोस्टकार्ड को इसका माध्यम चुना । 


पोस्टकार्ड पर लिख-लिखकर प्रतिदिन जो अनमोल वचन, सुवाक्यस, जीवन दर्शन को प्रभावित कर लेने वाले सकारात्मक विचार अपनी पुत्रवधू के पिता को लिखे हैं उनमें से कुछ का संकलन ‘मन के मोती’ नामक पुस्तक के रूप में 4 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित भी हो चुका हैं । 


दरअसल पोस्टकार्ड लिखने की श्री अग्रवाल की शुरुआत भी बड़ी रोचक है । वे बताते हैं कि जब उनकी सगाई हुई तो अपनी मंगेतर को उन्होंने पहला पोस्टकार्ड 1978 में लिखा था और 1985 में जब उनके परिवार में पुत्रवधू आई तब पहल करते हुए उसके गुणों को प्रदर्शित करनेवाले सुविचारों को प्रतिदिन पोस्टकार्ड पर लिखकर अपने समधी को भेजना शुरू किया । चाहे जो भी परिस्थिति रही हो, समय की कमी रही हो या प्रवास रहा हो, श्री अग्रवाल प्रतिदिन अनवरत 6 साल तक ऐसे पोस्टकार्ड लिखते रहे । 


पोस्टकार्ड संदेश-प्रसार का सबसे सस्ता साधन है जो सबके लिए सुलभ है और सर्वत्र उपलब्ध है । इसीलिये श्री अग्रवाल का सबसे अधिक भरोसा भी पोस्टकार्ड एवं डाकघर पर ही है । श्री अग्रवाल बताते हैं कि, कितने ही साधन अभी तक आए कितनी भी तकनीक आई, कोई भी साधन कोई भी तकनीक, पोस्टकार्ड एवं डाक विभाग के महत्व को न कम कर सकी है और न ही कम कर सकेगी । उनकी दृष्टि में डाकघर का भविष्य बहुत उज्ज्वल है । 


इंदौर में अपनी मिठाई की दुकान पर बैठकर उनको पोस्टकार्ड लिखते देखकर वहां आने वाले बच्चे पूछते हैं कि क्या पोस्टकार्ड अभी भी चल रहे हैं तो आप बताते हैं कि बेटा इनके कारण हम चल रहे हैं । वे नारायण कोठी इंदौर स्थित पत्र पेटी में अपने पोस्टकार्ड पोस्ट करते हैं, कई बार ऐसा हुआ कि पोस्टकार्ड पर पते लिखना रह गए और पत्र पेटी में पोस्ट कर दिए । आश्चर्य तब हुआ जब पोस्टमेन स्वयं उन पोस्टकार्ड पर पते लिखवाने के लिए उनके पास आया, डाकविभाग के उस पोस्टमेन को वे आज भी याद करते हैं ।  


 सर्वाधिक पोस्टकार्ड उन्होने अपनी बेटी और बेटे के ससुराल वालों को लिखे हैं । समाज में बेटे के ससुराल वालों को सामान्यतया ताने ही मिलते हैं, परन्तु आपने परंपरा से हटकर प्रतिदिन एक पोस्टकार्ड अपनी पुत्रवधू के पिताजी को लिखना प्रारंभ किया जिसमें पुत्रवधू के गुण दर्शानेवाले सुवाक्य होते थे । 


श्री अग्रवाल ने अपनी बेटी की शादी के बाद उसे भी प्रतिदिन अनमोल वचन, सुवाक्यं एवं सुविचार वाले पोस्टकार्ड लिखना प्रारंभ किया, जिससे एक तरफ जहां संबंधों में प्रगाढ़ता आई वहीं परिवार में अच्छे विचारों का संचरण व संवर्धन भी हुआ । अभी तक अपनी बेटी को 6 हजार से अधिक पोस्टकार्ड लिख चुके श्री अग्रवाल का यह कार्य आज पर्यन्त अनवरत जारी है । अभी तक वे 20 हजार से अधिक पोस्टकार्ड लिख चुके हैं । अनेक लोगों ने विशेषकर विद्यार्थियों ने इस विधा को अपनाया है । उन्हे बहुत संतोष होता है जब पोस्टकार्ड मिलने पर लोग फोन करके प्रसन्नतापूर्वक धन्यवाद सूचित करते हैं । पोस्टकार्ड के जरिये भेजे गये संदेशों में जीवन दर्शन झलकता है एवं स्वामी विवेकानंद को वे अपना आदर्श मानते हैं । 


कोविड 19 के लॉकडाउन के दौरान दिन-रात जनता की सेवा में लगे हुए नाम-अनाम डॉक्टर, नर्सों और मेडिकल स्टॉफ को श्री अग्रवाल ने पोस्टकार्ड लिखे हैं । हर त्यौहार पर आप बड़ी संख्या में पोस्टकार्ड लिखते हैं । लॉकडाउन में अभिनव प्रयोग करते हुए उन्होने समाचार पत्रों में छपे प्रत्येक शोक संदेश वाले अपरिचित दुखी परिवारों को पोस्टकार्ड से शोक संवेदनाएं प्रेषित करना प्रारंभ की है । विरले होते हैं ऐसे लोग जो वसुधैव कुटुंबकम की भावना के अनुसार सबको अपना परिवार समझते हैं । 


अपनी पुत्रवधू की प्रशंसा में उन्होने 6 साल तक लगातार पोस्ट कार्ड लिखे हैं । आज भी वे नियमित रूप से बेटे के ससुराल में समधीजी की प्रशंसा में और बेटी के ससुराल में अनमोल वचन के पोस्टकार्ड लिख रहे हैं । उनके खजाने में तीन से चार हजार कोरे पोस्टकार्ड हर समय उपलब्ध रहते हैं । डाक विभाग श्री अग्रवाल जैसे महत्वपूर्ण कद्रदान को पाकर गर्व महसूस करता है । डाक विभाग पर सचमुच ये पंक्तियां चरितार्थ होती है कि -


 कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी ।


 सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहॉं हमारा ।।


 


✍ राधेश्याम चौऋषिया


सम्पादक : बेख़बरों की खबर


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