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लोकोपकार मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य होना चाहिए – प्रो शर्मा, राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ हमारे समय, साहित्य और संस्कृति के सरोकारों पर मंथन

लोकोपकार मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य होना चाहिए – प्रो शर्मा  


राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ हमारे समय, साहित्य और संस्कृति के सरोकारों पर मंथन



देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा नवरात्रि पर्व के समापन अवसर पर राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी हमारा समय, साहित्य और संस्कृति के सरोकार पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शिक्षाविद श्री बृजकिशोर शर्मा उज्जैन थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे श्री राव कुलदीप सिंह, भोपाल, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की।



कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने समकालीन दौर में पर्यावरणीय सरोकारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पर्यावरण केवल प्रकृति का ही नहीं होता, वह मानव के मनोविज्ञान और विचार जगत से भी जुड़ा हुआ है। बाह्य पर्यावरण के साथ हमें मानवीय पर्यावरण में परिष्कार के लिए प्रयास करना होंगे। इस दिशा में शिक्षा, साहित्य और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।



लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि परस्पर सद्भाव और लोकोपकार मनुष्य जीवन के चरम लक्ष्य होने चाहिए। सुदूर अतीत से लेकर गोस्वामी तुलसीदास की कविता के केंद्र में इसी को महत्त्व मिला है। तुलसी ने श्रीराम के उदात्त चरित्रांकन के माध्यम से युगों - युगों के लिए शाश्वत सन्देश दिए हैं। आज भी असंख्य लोग श्रीराम द्वारा रोपित मूल्यों को अपने जीवन में चरितार्थ करने के लिए तत्पर रहते हैं। तुलसी का काव्य सदियों से पीड़ित और निराश लोगों के जीवन में आशा का संचार करता आ रहा है। दुनिया में अनन्त ज्ञान का भंडार है और समय सीमित है। ऐसे में मनुष्य को हंस की तरह सार को ग्रहण करने का विवेक जाग्रत रखना होगा।



विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि वर्तमान दौर में समाज के निर्माण में संस्कृति, शिक्षा और साहित्य की भूमिका पर व्यापक विचार की आवश्यकता है।



राव कुलदीप सिंह, भोपाल ने अध्यक्षीय उद्बोधन में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षकों की भूमिका पर प्रकाश डाला।



आयोजन में राष्ट्रीय पदाधिकारी श्रीमती लता जोशी, मुंबई में देवनागरी लिपि की महत्ता पर प्रकाश डाला। श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर में प्राणायाम के विभिन्न प्रकारों और महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ मनीषा सिंह, मुंबई ने सामाजिक संदर्भ में कबीर की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।



पंजाब इकाई की महासचिव डॉ प्रवीण बाला, पटियाला ने योग के विभिन्न अंगों और महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में क्रांतिकारियों के योगदान पर विचार व्यक्त किए।



राष्ट्रीय सचिव डॉ ममता झा, मुंबई ने विश्व में हिंदी की स्थिति और संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदी व्यापार, व्यवसाय, पर्यटन और मनोरंजन के माध्यम से निरंतर आगे बढ़ रही है।



आयोजन की संकल्पना एवं स्वागत भाषण संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी की ने दिया।



राष्ट्रीय मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने संस्था के उद्देश्य और गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला।



राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर, डॉ रश्मि चौबे, आगरा एवं डॉ आशीष नायक, रायपुर ने भी विचार व्यक्त किए। आयोजन में डॉक्टर मनीषा शर्मा, शैलेश कुमार, रुपिंदर शर्मा, डॉ ममता झा, मुंबई, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ श्वेता पंड्या आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।



प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। संस्था का परिचय एवं स्वागत भाषण डॉ जीडी अग्रवाल, इंदौर ने प्रस्तुत किया।



राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का संचालन संस्था सचिव डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के राष्ट्रीय सचिव डॉ आशीष नायक रायपुर ने किया।


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