विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म की संवाहिका है हिंदी
हिंदी विश्व : भारतीय संस्कृति और परंपरा के सरोकार पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा हिंदी विश्व : भारतीय संस्कृति और परंपरा के सरोकार पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कौशल किशोर पांडे, इंदौर, डॉक्टर अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलाधिपति डॉ प्रकाश बरतुनिया, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने की। यह संगोष्ठी हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत आयोजित की गई।
कार्यक्रम में अतिथियों ने वरिष्ठ पत्रकार श्री ओमप्रकाश प्रजापति, गाजियाबाद, डॉ लता जोशी, मुम्बई, डॉ दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, डॉ रेनू सिरोया, उदयपुर, डॉ जय भारती चंद्राकर, रायपुर, श्रीमती अनुराधा अच्छावन, दिल्ली, श्री रामेश्वर शर्मा, मनावर, धार को उनके योगदान के लिए हिंदी सेवी सम्मान से अलंकृत किया।
प्रमुख अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारतीय संस्कृति और हिंदी ने भारतवंशियों को सामर्थ्य दिया है। हिंदी और भारतीय संस्कृति के संवर्धन के लिए समन्वय और एकता के मार्ग को अपनाना होगा। वर्तमान में हिंदी के साथ भारतीय भाषाओं के एकीकरण और समन्वय के लिए प्रयास किए जाएं। नॉर्वे में हिंदी, तमिल, पंजाबी और उर्दू को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। नॉर्वे में हिन्दी अन्य भाषाओं के समन्वय के साथ आगे बढ़ रही है। नार्वे से प्रकाशित पत्रिकाओं में देवनागरी अंकों का प्रयोग किया जाता है।
विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत ने कहा कि मॉरीशस में हिंदी, भारतीय संस्कृति और परंपराओं को साथ लेकर चलने की कोशिशें जारी हैं। संस्कृति के साथ भाषा और लिपि का गहरा संबंध होता है। मॉरीशस में प्राथमिक शिक्षा में हिंदी पढ़ाई जाती है। वहां प्राथमिक विद्यालय की किताबों के माध्यम से दो हजार से अधिक हिंदी शब्द विद्यार्थियों तक सहज ही पहुंच जाते हैं। विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम को बनाते समय संस्कृति के साथ स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों का समावेश किया जाता है। बाद की कक्षाओं में संप्रेषण कौशल पर भी बल दिया जाता है, जिससे विद्यार्थीगण हिंदी एवं अन्य भाषाओं के माध्यम से अभिव्यक्ति करने में सक्षम होते हैं।
लेखक एवं आलोचक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय चिंतन में संस्कृति को पूर्णता का पर्याय माना गया है। हिंदी विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति, दर्शन, परंपरा और अध्यात्म की संवाहिका के रूप में प्रभावी भूमिका का निर्वाह कर रही है। हिंदी विश्व की निर्मिति में दुनिया के कोने - कोने में बसे भारतीय समुदाय, संस्थाओं और व्यक्तियों की अविस्मरणीय भूमिका रही है। मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना जैसे अनेक देशों में हिंदी महज एक भाषा नहीं, भारतीय संस्कृति की पर्याय है। नए दौर में हिंदी विश्व और भारतीय संस्कृति के आपसी रिश्तों को पहचानने और भावी संभावनाओं को तलाशने की जरूरत है। दुनिया के लगभग सौ देशों में बसे साढ़े तीन करोड़ से अधिक भारतवंशी हिंदी को परस्पर संपर्क, सूचना, संस्कृति, शिक्षा, मनोरंजन, व्यापार – व्यवसाय, राजकाज आदि का माध्यम बनाए हुए हैं। हिंदी के साथ भारतीय भाषाओं की एकता और परस्पर संवाद से विश्व में जारी महज कुछ भाषाओं के साम्राज्यवाद से मुक्ति की राह खुल रही है। अलग-अलग प्रयोजनों से दुनिया के अनेक देशों में पहुंचे लोग अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा को सुरक्षित रखते हुए भारतीय बने हुए हैं।
श्री कौशल किशोर पांडे, इंदौर ने कहा कि हिंदी की वर्णमाला का संबंध विशिष्ट उच्चारण स्थानों से है। वर्तमान में देवनागरी लिपि और वर्ण उच्चारण के महत्त्व को व्यापक रूप से प्रचारित करने की आवश्यकता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि देश की आजादी के आंदोलन में हिंदी भाषा को एक महत्वपूर्ण औजार के रूप में सम्मिलित किया गया था। बालकृष्ण शर्मा नवीन, सोहनलाल द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी सहित अनेक कवियों ने भारत माता और हिंदी की महिमा को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने हिंदी एवं देवनागरी पर केंद्रित अपनी कविता सुनाई।
संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण श्री जी डी अग्रवाल ने दिया।
संगोष्ठी में मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ भरत शेणकर, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, श्री अनिल ओझा, इंदौर, प्रभा बैरागी, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, शम्भू पंवार, झुंझुनूं, रागिनी शर्मा, इंदौर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, विनोद विश्वकर्मा, अरुणा शुक्ला, ज्योति सिंह, आलोक कुमार सिंह, संदीप कुमार, मनीषा सिंह, मीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।
प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉक्टर संगीता पाल, कच्छ ने की।
कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार प्रदर्शन श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने किया।
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