Skip to main content

माननीय प्रधानमंत्री जी के जन्मदिवस पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा किए गए पौधरोपण, स्वास्थ्य परीक्षण और स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम

माननीय प्रधानमंत्री जी के जन्मदिवस पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा किए गए पौधरोपण, स्वास्थ्य परीक्षण और स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम



उज्जैन। 17 सितम्बर 2020 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के जन्मदिवस के अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय में माननीय कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय के माधव भवन में 24 एवं माइक्रोबायलॉजी अध्ययनशाला में 80 पौधे, इस प्रकार कुल 104 पौधों का रोपण किया गया। विश्वविद्यालय द्वारा इस अवसर पर स्वास्थ्य परीक्षण एवं स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।



पौधरोपण एवं स्वच्छता जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि मनुष्य का पर्यावरण से गहरा रिश्ता है। वर्तमान कोरोना संकट के पीछे पर्यावरण प्रदूषण एवं प्रकृति का विध्वंस जिम्मेदार है। इस दिशा में हमें व्यापक जागरूकता लानी होगी। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. डी. के. बग्गा, कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, रा.से.यो. समन्वयक डॉ. प्रशान्त पुराणिक, डी.एस.डब्ल्यू. डॉ. आर.के अहिरवार, उपकुलसचिव डॉ. मेघराज निनामा, रासेयो अधिकारी डॉ. प्रदीप लाखरे एवं डॉ. रमण सोलंकी सहित विश्वविद्यालय के कर्मचारीगण एवं छात्रगण ने पौधरोपण में भागीदारी की।



विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिये गये गांव चांदमुख में स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। स्वास्थ्य परीक्षण शिविर में 52 ग्रामीण उपस्थित हुए, जिनके स्वास्थ्य समस्याओं का निदान उपस्थित चिकित्सक डॉ पवन सिंह द्वारा किया गया। शिविर में परीक्षण करने आने वाले ग्रामीणों को इम्यूनिटी - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से संबंधित आयुर्वेदिक दवाइयां वितरित की र्गइं। इस अवसर पर चांदमुख में एडवांस महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक और कार्यक्रम अधिकारी डॉ सुनीता श्रीवास्तव ग्राम सरपंच सिद्धनाथ चौहान एवं आगंनवाडी की कायकर्ता उपस्थित रहीं। इस अवसर पर कार्यक्रम अधिकारी ने ग्राम में कुपोषित बच्चों की 6 है तथा उनका स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन सुधार पर है। ग्राम में टी.बी. से ग्रसित बच्चे नहीं हैं। बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी जानकारी आगंनवाड़ी कायकर्ता से प्राप्त की।



प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत जागरुकता कार्यक्रम ग्राम जवासिया एवं चिन्तामण मंदिर परिक्षेत्र में आयोजित किया गया, जिसमें मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं और परिक्षेत्र के व्यवसायियों को स्वच्छता संबंधी नुक्कड नाटक के माध्यम से जनजागरूकता सन्देश दिया गया। पर्यावरण प्रबंधन अध्ययनशाला एवं वनस्पतिशास्त्र अध्ययनशाला में शिक्षकों एवं कर्मचारियों द्वारा स्वच्छता अभियान के तहत परिसर में सफाई की गई।


 


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...