राम कौन हैं ?
✍️ नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
ईश्वर ,मर्यादा पुरुषोत्तम,राघव , रघुनाथ, दशरथनंदन ,या और वे सब जिनके पर्याय के रूप में हम उन्हें पुकारते हैं,जानते हैं।लेकिन मुझे तो लगता है राम मेरे घर हैं।इसलिये कि घर मेरा आश्रय है,घर मेरी पहिचान है,घर मेरी सांसों को सहेजने वाली देह की देह है और घर से आप कितने भी बेगाने हो जाओ घर कभी बेगाना नहीं होता।
फिर अयोध्या तो राम का घर है।वह घर जो उनसे कभी बेगाना नहीं होता। नियति भले उन्हें बेगाना बनाती रही हो लेकिन अयोध्या राम के लिए कभी बेगानी नहीं होती।वे अंततः अपनी अयोध्या में लौट आते हैं।
राम की कथा युगो युगों से गाई जाती रही है, उसका गान कभी नहीं थमा ,उसके इतने आख्यान हुए जितने संसार में किसी कथा के, किसी व्यक्तित्व के नहीं हुए और इसका परिणाम यह हुआ कि राम ,अविराम हो गए। इस अविराम की कथा की पुनरावृत्ति का क्या अर्थ?क्या औचित्य? लेकिन राम को देखने की दृष्टि का औचित्य है। राम प्रतीक नहीं विश्वास व्यक्तित्व हैं,राम यात्री नहीं जीवन की यात्रा हैं और वे मर्यादा के मौन हैं।मर्यादा कभी स्वयं नहीं बोलती ,जग बोलता है।लक्ष्मण रेखा की मर्यादा भंग हुई तो जग बोला राम नहीं बोले।इसलिये राम मर्यादा के अलंकार हैं।मर्यादा उनसे शोभा पाती है।
राम जीवन्त हैं।जिन्होंने पाषाण को अपने पांव के स्पर्श से मानवी रूप में परिवर्तित कर दिया हो वे कैसे पत्थर के हो सकते हैं?इसलिये हमारी आस्था राम को सजीव स्वरूप में पूजती है। यही कारण है कि आज इस करोना काल में हर राम आराधक भले इस मन्दिर निर्माण का दैहिक रूप से साक्षी न बन पा रहा हो लेकिन आज हर उस भारतवासी का मन जो राम के समरसतापूर्ण लोक चरित्र की आराधना करता है वह मन सरयू का तट हो गया है और उसका मानस अयोध्या।
राम की इस कथा को वाल्मीकि ने सबसे पहिले शब्दों में गूंथा और फिर यह कथा महाभारत के द्रोण पर्व ,अग्नि,गरुड़ और हरिवंश पुराण से लेकर कालिदास के रघुवंश और भवभूति के उत्तररामचरित और दक्षिण के कंबन तक अनेक रूपों में गाई जाती रही फिर तुलसी तक आते आते रामकथा की सरिता,सागर में बदल गई।तुलसी ने राम की विरलता को अविरल कर दिया।
हम राम के इन विभिन्न रूपों से परिचित हैं लेकिन राम के उस स्वरूप से हम बहुत कम परिचित हैं जो शिल्प और चित्रों में है विशेष रूप से मध्यकाल के विभिन्न शैलियों में बनाए गए लघुचित्रों में।
जहां तक शिल्प का प्रश्न है टेराकोटा में पांचवीं सदी का शिल्प उत्तरप्रदेश के भीटागांव से मिला है जिसमें राम,लक्ष्मण तथा सीता बनवासी के रूप में हैं।नाचरखेड़ा,नाचना और देवगढ़ में मिले स्तम्भों में रामकथा उत्कीर्ण है। गया के छठी सदी के एक मन्दिर से लेकर दक्षिण के नागेश्वर,पट्टाद्कल,और हम्पी से एलोरा के कैलाशमन्दिर तक रामकथा उकेरी गई है।भारत के बाहर बाली के अंगकोरवाट के मन्दिरों के भव्य शिल्प इस महान गाथा के अदभुत रचाव की कहानी कहते हैं। हाथीदांत और अन्य विभिन्न माध्यमों में भी इस कथा को विस्तार से दृश्यमान किया गया।
लेकिन यहां चर्चा उन लघुचित्रों की है जो मध्यकाल में पूरे भारत की चित्रशैलियों में बनाए गए।सबसे पहिले अकबर ने रामायण का अनुवाद अब्दुल कादर बदायूनी से करवाया तथा इसे सचित्र बनवाया इसमें 136 चित्र थे तथा यह सन् 1588 में पूर्ण हुई।एक और सचित्र रामायण अब्दुल रहीम खानखाना ने सन्1598-1599 में बनवाई।ये दोनों क्रमश:जयपुर पोथीखाने और फ्रीर गैलरी वाशिंगटन में हैं।मेवाड़ में राजा जगतसिंह के समय साहिबदीन नामक एक कुशल चितेरे ने रामायण के अनेक काण्ड सचित्र रूप से सन् 1649 से 1653 के बीच तैय्यार किये।मनोहर नामक चितेरे ने बालकाण्ड के चित्र बनाए।ये अंकन ब्रिटिश संग्रहालय लंदन तथा छत्रपति वास्तु संग्रहालय मुंबई(पूर्व का प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय)में संरक्षित हैं तथा ख्यात कला इतिहासकार जे पी लॉस्टी ने इन पर विस्तृत शोध की है।
रामायण के चित्रों पर एतिहासिक कार्य फ्रान्स के राष्ट्रीय संग्रहालय म्यूजी गियूमे की प्रमुख डॉक्टर अमीना ताहा हुसैन ओकाडा ने किया है।उन्होंने निरन्तर 10 वर्षों तक पूरे विश्व में घूमकर सभी प्रमुख संग्रहालयों और व्यक्तिगत संग्रहों से रामायण के 10 हज़ार चित्रों में से 660 चित्रों को चुनकर 5 खण्डों में उन्हें फ़्रैंच में प्रकाशित किया है।
मुगल शैली के बाद के काल में राजस्थान और हिमाचल प्रदेश तथा मालवा और बुन्देलखण्ड सहित पूरे भारत के विभिन्न अंचलों में रामकथा के प्रसंगों के शानदार रूपायन हुए। कांगड़ा,गुलेर,बाहु और बसोहली सहित पहाड़ की विभिन्न शैलियों में और जयपुर,कोटा,बूंदी तथा मेवाड़ सहित राजिस्थान कीअनेक रियासतों और ठिकाणॉं में रामकथा चित्रित की गई।पहाड़ की शांग्री रामायण के भावप्रवण अंकन जो विश्व मे विभिन्न संग्रहालयों में संरक्षित हैं हमारी विशिष्ट धरोहर हैं।
इस चित्रांकन की कथा के लिये बहुत विस्तार चाहिये।यह तो केवल छोटी सी झांकी है।
यहां इन्हीं विभिन्न शैलियों में रचे गए रामजन्म,अयोध्या से वन की ओर प्रस्थान ,वनगमन, सुग्रीव से भेंट, युद्ध और अयोध्या लौटने से लेकर उनके हाथी पर सवार होकर गमन करने व मनभावन रामदरबार के लघुचित्रों की झांकी प्रस्तुत है।
जिन महान चितेरों ने राम को रचा उनकी आस्था और उनका विश्वास भी तुलसी की तरह अगाध और अटूट था।वे भी तुलसी की तरह चातक थे जो निरन्तर अपने मन की आंखों से अपने राम को निहारकर उन्हें और उनकी कथा को रचा करते थे। तुलसी ने अपना यह भाव इन महान कलाकारों के लिये भी इन अमर शब्दों में बांध दिया है,
एक भरोसा एक बल एक आस बिस्वास
स्वाती जल रघुबीरजू चातक तुलसीदास
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