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देश की प्रकृति और संस्कृति के साथ प्रेम राष्ट्र प्रेम का प्रतीक है – प्रो. शर्मा 

स्वाधीनता दिवस पर हुई अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 



उज्जैन। देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी - आजादी के अमर स्वर का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ रचनाकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ चेतना उपाध्याय, अजमेर, एवं श्री राव कुलदीप सिंह, भोपाल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ओस्लो नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने की।


 


वरिष्ठ लेखक और आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए समत्व भावना और ऐक्य बन्धन आवश्यक है। अपने देश की प्रकृति और संस्कृति के साथ प्रेम राष्ट्र प्रेम का प्रतीक है। स्वतंत्रता का महत्त्व राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर आजादी के साथ वैचारिक आजादी प्राप्त करने में है। हमें इतिहास और विरासत को लेकर गौरव का भाव होना चाहिए। 



ओस्लो, नॉर्वे के साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने अपना चर्चित देशभक्ति गीत सुनाया। गीत की पंक्तियाँ थीं, हमारे प्राण सा भारत, हमारा स्वर्ग सा भारत। वतन से दूर रहकर भी, हमारे ह्रदय में बसता, हमारी संस्कृति श्रद्धा, हमारा स्वर्ग सा भारत। प्रेम के धागे पिरोकर, जिसे जयमाल पहनाते, वही मेरा सुखद मंदिर, हमारे प्राण सा भारत।


 


श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि साहित्यकार का दायित्व जन जन में देश प्रेम का भाव भरना है। 


 


संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रारम्भ में कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत की। 


 


राकेश छोकर, नई दिल्ली ने फिर से राजतिलक कर दो रचना सुनाई। कविता की पंक्तियाँ थीं, अखंड भारत के वीर सपूतों, शौर्य गाथाओं के शिल्पकारों। अश्वमेध के बुंदेलों युद्धाभिषेक करो, तिरंगे को प्रणाम कर, मृत्युंजय आवेग का कर वरण, प्रतिकार की क्रोधाग्नि से, शत्रुओं के अत्याचार पर, अभिमन्यु सा वार कर, वज्रघाती पैगाम दो। राष्ट्र के हो अभिमान तुम, अर्जुन सरीखे रणबांकुरे, भीष्म प्रतिज्ञा लो, माँ के यशोगान को, प्राणों के।


 


डॉक्टर चेतना उपाध्याय ने अपनी रचना लो फिर आ गया पन्द्रह अगस्त से नई ऊर्जा का संचार किया। उनकी पंक्तियां थी, हर वर्ष आता है इस वर्ष भी आ गया पन्द्रह अगस्त। पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे। आज अपनी आदतों के गुलाम बने बैठे हैं, अपना तो अपना दूसरों का चैन हराम किए बैठे हैं।


 


अनुराधा अच्छावन ने मेरे अज़ीज मुल्क़ शीर्षक रचना पढ़ी। कविता की पंक्तियाँ थीं, अहले वतन तुमको शहीदों की शहादत याद रहे। ख़ून से सींचा हैं, उन्होंने इस मिट्टी को ये हकीकत याद रहें। अद्भुत पराक्रम... अदम्य साहस, बहता था रक्त बनकर। देशप्रेम जिनकी रगों में उन शूरवीरों का शौर्य याद रहें। हैं दिल -ए - तमन्ना मेरी बस यही कि झुकने न पाए तिरंगा कभी। अ! मेरे अज़ीज मुल्क़ तू सदा आबाद रहें।


 


रागिनी स्वर्णकार (शर्मा), इंदौर की रचना देश भक्ति का जज़्बा जगा गई। उनकी कविता की चंद पंक्तियाँ थीं, दिल मेरा, धड़कन मेरी,मेरी आन है। ये वतन तुझ पर जान मेरी कुर्बान है ...! कलम सदके में सदा ,झुकती रहे। शब्द -शब्द में तेरी, इबादत रहे। भाव मन के हों सदा शहादत भरे। अक्षर- अक्षर दिल में तेरा सम्मान है। वतन तुझ पर जान मेरी कुर्बान है...!


 


डॉ प्रियंका सोनी प्रीत ने अपनी रचना में भारत माँ की बेटियों के सामर्थ्य को अभिव्यक्ति दी, मैं बेटों से नहीं कमतर मैं भारत मां की बेटी हूं, करूँ संहार दुश्मन का मैं भारत मां की बेटी हूं। मेरा ईमान, मेरा धर्म दुनिया क्या खरीदेगी, मैं धन को मार दूं ठोकर भारत मां की बेटी हूं। मैं सरहद पर भी लड़ सकती हूं अपने देश की खातिर, नहीं डर मुझ में है कोई मैं भारत मां की बेटी हूं। समुंदर की तहों को भी खंगाल आऊंगी पल भर में, निकालूंगी नए गोहर मैं भारत मां की बेटी हूं। कभी यह प्रीत घबराती नहीं दुश्मन की ताकत से, दिखाएं लाख वो खंजर मैं भारत मां की बेटी हूं।


 


प्रियंका द्विवेदी, प्रयागराज की काव्य पंक्तियां थीं, प्राणों से प्‍यारा लगे, भारत देश महान। चलो बनाएं विश्‍व में, सुन्दर ‍हिन्दुस्तान। सभी जन गीता पढ़ें, पढ़ें सभी कुरान। भेदभाव सब दूर हों, मेरा यह अरमान।


 


डॉ. शैल चन्द्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़ ने अपनी कविता के माध्यम से शहीदों की पूजा का आह्वान किया। उनकी पंक्तियां थीं, न अल्लाह न ईसा न कोई भगवान। शहीदों की करूँगी पूजा, जो हैं महान। पढूंगी बाइबिल न गीता न कुरान। गाऊँगी मैं बस वीरों का यशोगान। जो शहीद हैं मातृभूमि पर, उनसे देश है उजियारा। लहराता रहे तिरंगा स्वतंत्रता का प्यारा।


 


उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा, प्रयागराज ने अपनी कविता के माध्यम से नया उत्साह जगाया, उनकी पंक्तियां थीं, केसरिया है जोश जवां का, धानी रंग किसान का, गंगा-जमुना-सरस्वती और, राम और घनश्याम का। लहर- लहर लहराए तिरंगा, सकल विश्व में मान, हमारा प्यारा हिन्दुस्तान - हमारा भारत देश महान। 


 


सुवर्णा जाधव, मुंबई ने भारत मेरा महान शीर्षक कविता सुनाई। कविता की पंक्तियां थीं, स्वाती और निधि ने देशप्रेम की मशाल जलाई है, समस्त नारी जाति के लिए अलग मिसाल बनाई है और नवचेतना जगाई है। भारत मेरा महान, हीरे और सोने की खान।


 


 डॉ. प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब देश की प्रगति का आह्वान किया। उनकी कविता की पंक्तियां थीं, देश के लिए वीर जो शहीद हो गए यहां, सर हमारे झुकते हैं नमन करें हम सदा। स्वतंत्रता मिली है उन्हीं के प्रयासों से, दीप हम जलाएंगे खुशी है आंखों में। प्रार्थना यही है देश मेरा फले और फूले, फले और फूले आगे बढ़ता चले, फले और फूले आगे बढ़ता चले।


डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद की कविता की पंक्तियाँ थीं, अखंड भारत के आगे, देशी विदेशी नतमस्तक हो जाएं। असली स्वतंत्रता तब होगी।                               



कार्यक्रम में संगीता पाल, कच्छ, गुजरात, डॉ रेनु सिरोया, उदयपुर, दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, असम, लता जोशी, मुंबई, श्री शम्भू पँवार, झुंझुनूं, रश्मि चौबे, गाजियाबाद, तृप्ति शर्मा, बेंगलुरु, डॉ मनीषा शर्मा, अमरकंटक, रचना पांडे, रायपुर आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।


 


संचालन कवयित्री रागिनी शर्मा ने किया। आभार डॉ अमृता अवस्थी, इंदौर ने माना।


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