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भक्ति काल : कृष्ण काव्य के विविध आयाम पर केंद्रित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रूसी - भारतीय मैत्री संघ (दिशा), मास्को, रूस एवं बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना, बिहार द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा के व्याख्यान की छबियाँ और सार : 


भारतीय इतिहास का मध्ययुग भक्ति आन्दोलन के देशव्यापी प्रसार की दृष्टि से विशिष्ट महत्त्व रखता है। वैदिककाल से लेकर मध्यकाल के पूर्व तक आते-आते पुरुषार्थ चतुष्टय-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के रूप में भारतीय मूल्य-चिंतन परम्परा का सम्यक् विकास हो चुका था, किंतु मध्य युग में भक्ति की परम पुरुषार्थ के रूप में अवतारणा क्रांतिकारी सिद्ध हुई। मोक्ष नहीं, प्रेम परम पुरुषार्थ है- प्रेमापुमर्थो महान् के उद्घोष ने लोक जीवन को गहरे प्रभावित किया। यहाँ आकर भक्त की महिमा बढ़ने लगी और शुष्क ज्ञान की जगह भक्ति ने ले ली। 



भक्ति की विविध धाराओं के बीच वैष्णव भक्ति अपने मूल स्वरूप में शास्त्रीय कम, लोकोन्मुखी अधिक है। हिन्दी एवं अन्य भाषाई प्रदेशों में लोकगीतों के जरिये इसका आगमन वल्लभाचार्य आदि आचार्यों के बहुत पहले हो चुका था। चैतन्य महाप्रभु, वल्लभाचार्य आदि ने इसे शास्त्रसम्मत रूप अवश्य दिया, किंतु अधिकांश कृष्णभक्त कवि पहले की कृष्णपरक लोक गीत परम्परा से सम्बन्ध बनाते हुए उन्हीं गीतों को अधिक परिष्कार देने में सक्रिय थे। शास्त्र का सहारा पाकर भक्ति आन्दोलन देश के कोने-कोने तक अवश्य पहुँचा, किन्तु उसके लिए जमीन पहले से तैयार थी। 


 - प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा



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