भारतीय भक्ति आंदोलन और गुरु जंभेश्वर जी
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma
गुरु जंभेश्वर जी |
हम स्वर्ग और अपना नरक खुद बनाते हैं। कोई अलौकिक तत्व नहीं है जो इसका निर्धारक हो। अँधेरे और राक्षसी वृत्ति के साथ चलना सरल है, उनसे टकराना जटिल है। दूसरी ओर प्रकाश और अच्छाई के साथ चलना कठिन है, लेकिन वास्तविक आनन्द प्रकाश और देवत्व में ही है। जंभेश्वर जी की वाणी इसी बात को व्यापक परिप्रेक्ष्य में जीवंत करती है। वे सही अर्थों में महान युगदृष्टा थे। उन्होंने अपने समय में निर्भीकतापूर्वक समाज-सुधार का जो प्रयास किया, वह अद्वितीय है। वर्तमान युग के तथाकथित समाज सुधारक भी ऐसा साहस नहीं दिखा सकते जो जम्भेश्वर जी ने धार्मिक उन्माद से ग्रस्त तत्कालीन युग में दिखाया था। एक सच्चे युग-पुरुष की भांति उन्होंने तमाम प्रकार के परस्पर विद्वेष, अंध मान्यताओं, रूढ़ियों, अनीति-अनाचारों एवं दोषों पर प्रबल प्रहार करते हुए समाज को सही दिशा-निर्देश किया।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा |
यह एक स्थापित तथ्य है कि गुरु जम्भेश्वर जी द्वारा प्रस्तुत वाणी और कार्य अभिनव होने के साथ ही जन मंगल का विधान करने वाले सिद्ध हुए हैं। वे मनुष्य मात्र की मुक्ति की राह दिखाते हुए कहते हैं कि ‘हिन्दू होय कै हरि क्यों न जंप्यो, कांय दहदिश दिल पसरायो’, तब उनके समक्ष जगत का वास्तविक रूप है, जिसे जाने बिना लोग इन्द्रिय सुख में डूबे रहते हैं। इसी तरह जब वे कहते हैं कि ‘सोम अमावस आदितवारी, कांय काटी बन रायो’ तब उनके सामने वनस्पतियों के संरक्षण – संवर्द्धन का प्रादर्श बना हुआ है, जिसे जाने – समझे बगैर पर्यावरणीय संकटों से जूझ रही दुनिया का उद्धार सम्भव नहीं है।
आचार्य एवं अध्यक्ष
हिंदी विभाग
कुलानुशासक
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन मध्य प्रदेश
(मुंबई विश्वविद्यालय, मुम्बई और जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर द्वारा आयोजित मध्यकालीन काव्य का पुनर्पाठ और जांभाणी साहित्य पर एकाग्र दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में व्याख्यान की छबियाँ और व्याख्यान सार दिया गया है। आयोजकों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं)
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