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अभिव्यक्ति - लघुकथा : बेरोजगारी का डर ✍️ नीरज त्यागी


          शर्मा जी ने लगभग अपनी 35 साल की नौकरी में अपने मालिकों की सारी बात सर झुका कर मानी।हमेशा वह जहाँ भी नौकरी करते थे।उन्हें अपनी नोकरी जाने का डर बना रहता था क्योंकि 12वीं कक्षा तक ही पढ़े लिखे होने के कारण उन्हें कभी भी अच्छी नौकरी नहीं मिली और वह हमेशा अपने मालिकों से बाते ही सुनते रहे।लेकिन अब 35 वर्षों के बाद उनका बेटा बड़ा हो गया था।


          उनका 25 वर्षीय बेटा राहुल एक साल से एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा था।अब उसकी सैलरी भी अच्छी खासी थी।लगभग एक माह पहले शर्मा जी ने उसका विवाह भी करवा दिया था।शर्मा जी भी काफी समय से नोकरी में सुनते सुनते थक चुके थे।अपनी पिछली नौकरी में वह पिछले 10 साल से थे। यहां पर उन्होंने सबसे ज्यादा बातें सुनीं थी।


           कई बार तो उनके दिल में आया कि वह मालिकों को मुंह पर ही सुना दे।लेकिन कभी कुछ भी ना कह पाए।आज कुछ परिस्थितियां ऐसी बनी कि मालिकों ने शर्मा जी को किसी बात पर फिर खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया। शर्मा जी के सब्र का घड़ा भर चुका था।उन्होंने अपने मालिकों से उल्टा सुना कर नौकरी को छोड़कर अपने घर वापस आ गए।


          घर पर आकर उन्होंने अपने बेटे से बोला।बेटा अब मैं थक गया हूं अब मुझसे जॉब नहीं होती लगभग एक माह बाद नई बहू और बेटे ने उन्हें छोड़कर वहां से जाने का फैसला किया।क्योंकि वह लोग चाहते थे कि अपना जीवन आजादी से जी सकें।


          राहुल ने अपने पिता से कहाँ कि पापा मैं खर्चे के लिए पैसे भेजता रहूंगा।लेकिन मुझे अब अपनी जॉब के लिए बेंगलुरु जाना होगा।पिता को भी कोई आपत्ति नहीं हुई।क्योंकि बेटे ने कहा था कि सब कुछ सेट होने के बाद वह पिता को भी अपने साथ ही बुला लेंगे।एक दो माह तक उनके पास कुछ खर्चा आता रहा।लेकिन उसके बाद वह आना बंद हो गया।


           बेटे ने फोन पर आखिर मना कर दिया।पापा मैं अपना ही खर्चा नहीं चला पाता तो आपको कहां से दूं। परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि शर्मा जी एक बार फिर से अपने पुराने वाले मालिको के पास ही नौकरी करनी पड़ी। उनका 35 साल पुराना डर बेरोजगार होने का,लगता है कभी खत्म ही नहीं होगा । 



नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001


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