कबीर की जरूरत पर प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा का ऑनलाइन व्याख्यान हुआ
उज्जैन। आज जब चारों तरफ समाज को खानों - खाँचों में बांटने के लिए समाज विरोधी ताकतें लामबंद हैं, ऐसे समय में कबीर को याद करना हमारे लिए आवश्यक हो जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन विभेद और विलगाव को समाप्त करने के लिए लगा दिया।
ये विचार प्रो.शैलेन्द्रकुमार शर्मा कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कबीर जन विकास समूह द्वारा आयोजित कबीर गायन से सामाजिक बदलाव कार्यक्रम में ऑनलाइन व्याख्यान में व्यक्त किए। उन्होंने भारत के इतिहास और परंपरा से संदर्भ लेते हुए अनेक उद्धरणों से बताया कि भक्ति कालीन परंपरा भारत की उत्कृष्ट परम्पराओं में से एक है। आळ्वार, सूफी, नाथ, वैष्णव परम्परा के संतों ने सामाजिक जड़ता को तोड़ने का प्रयत्न किया है। प्रेम की सहज साधना को जानना कबीर को जानना है। कबीर के इस दोहे में भक्ति का मर्म समाया हुआ है, कामी क्रोधी लालची,इनसे भक्ति न होई। भक्ति करे कोई सूरमा ,जात वरण कुल खोई। अपने विस्तृत व्याख्यान में उन्होंने कबीर की चहुं ओर व्यापकता एवं जरूरत बताई।
इसी शृंखला में हिंदी परिवार के श्री हरेराम बाजपेयी ने कहा कि कबीर की परंपरा कर्म की परंपरा है। वे मतभेद दूर करना चाहते थे। पर आज कुछ लोग कबीर का संदर्भ लेकर मतभेद करना चाहते है । महज कबीर के दोहे सुनाकर उनका अर्थ बताते हैं। कबीर को जीवन में उतारना आवश्यक है।
कार्यक्रम का प्रारंभ गीता पराग, टोंकखुर्द, देवास के कबीर गायन से हुआ। पिछले दशक में लोक परंपरा में कबीर गायन नगण्य था, परंतु कबीर चेतना के चलते अनेक महिलाएँ एवं युवक - युवतियां विविध तेवर के साथ कबीर गा रही हैं।
कार्यक्रम का संयोजन डॉ सुरेश पटेल, छोटेलाल भारती, प्रीति सिंगार, चारुशीला मौर्य, लाखन मंडलोई ने और तकनीकी संयोजन विनोद जाटव ने किया।
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