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हमने भाई माना परन्तु वो दुश्मनी निभा रहा है- श्री वाजपेयी

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब कवि सम्मेलन सम्पन्न



उज्जैन। आजादी के बाद भारत में पहली बार ऐसा समय आया है, जब पड़ोसी देश सीमा पर एक साथ गोलीबारी व दूसरी ओर कोरोना विकराल हो। ऐसे पड़ोसी देश का हमने भाई माना था परन्तु वह पक्की दुश्मनी निभा रहा है।
 ये उद्गार राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना इकाई म.प्र. द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेब कवि सम्मेलन (आनलाईन) में मुख्य अतिथि एवं संस्था के संरक्षक वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने अपने व्यक्त किए। आपनी कविता  के माध्यम से कहा कि - ‘हमने तुमको भाई माना पर तुमने पीठ में छुरा घोंपा, शत्रु को मित्र बनाया था और तुमने दिया धोखा। हम पंचशील अनुयायी है। तुम लाशों के व्यापारी हो हम समझ नहीं आए अब तक, तुमने क्यों रास्ता रोका।‘ 


समारोह की अध्यक्षता प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा कुलानुशासक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि साहित्यकार हर परिस्थिति में नई ऊर्जा का सन्देश देते हैं। चीन के कुटिल इरादे ध्वस्त करने का वक्त आ गया है। कोरोना महामारी ने यह दिखाया है कि निरंकुश चीन की दुनिया को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हिमालयी क्षेत्र में चीन के नापाक मंसूबों से निपटने के लिए भारत की वीर सेना एवं सरकार मजबूत है।



 कवि सम्मेलन का शुभारम्भ मधुर स्वर की प्रदेश महासचिव श्रीमती पायल परदेशी ने सरस्वती वंदना एवं पर्यावरण के संरक्षण के समर्पित रचना ‘करे एक दिन जतन फिर हो जाए मगन, निशदिन पर्यावरण पर काम होना चाहिए‘ से की।
 
कार्यक्रम में अतिथियों एवं कवियों को शाब्दिक स्वागत राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के अध्यक्ष डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि हमारी संस्था का मुख्य उद्देश्य राजभाषा, सम्पर्क भाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा के सर्वोच्च पद की प्रतिष्ठा दिलाना है। हम अपने दैनिक कार्यों में हिन्दी भाषा एवं नागरी लिपि का भी प्रयोग करेंगे। संचेतना नाम के अनुरूप सतत समारोह के माध्यम से सक्रिय बने रहे। 


कवयित्री एवं राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती अमृता अवस्थी ने काव्य रचना ‘गर भाषा मौन ना होती, जब दिन को दीन कहा जाये और सुख भी सूख-सूख जाये, जब दिल का चैन भी चेन होने लगे, तब भाषा चेन ही खोने लगे जब जहर को पीना पड़े, जहर तो बोलो भाषा कैसे सहे ये कहर, भाषा कैसे सहे ये कहर।‘ 



वरिष्ठ साहित्यकार शिक्षक संचेतना के परामर्शदाता श्री अनिल ओझा ने कविता में अद्भुत भाईचारा हो चाहे वो मंदिर मस्जिद हो चर्च या गुरूद्वारा लगा सभी के निर्माणो में वहीं ईंट पत्थर गारा करे इबादत पूजन अर्चन सबकी मंजिल एक है। सारे मार्ग वहीं पहुंचेंगे, लक्ष्य सभी के नेक है। राष्ट्रीय कार्यालय सचिव श्रीमती प्रभा बैरागी ने गीत ‘चलना सिखा दिया है, गलना सीखा दिया है, घनघोर आंधियों में चलना सीखा दिया है।‘ प्रदेशाध्यक्ष श्री दिनेश परमार ने मेरी मंजिल ना पुछे कि मेरी मंजिल कहां है, अभी तो सफर का इरादा किाय है। 


कवि सम्मेलन की संचालिका एवं राष्ट्रीय सचिव रागिनी स्वर्णकार शर्मा ने कवितामय संचालन में मुक्तक सुनाया ‘नेह की मधु रागिनी से यूं सजानी चाहिए। जिन्दगी इक है गजल सी गुनगुनानी चाहिए।


 अंत में आभार श्री दिनेश परमार प्रदेशाध्यक्ष ने माना।


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