Skip to main content

भारतीय भक्ति आंदोलन : दक्षिण और उत्तर भारत की संत परंपरा - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा


आळ्वार सन्तों की भक्ति समूची विश्व मानवता के लिए है
– प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma


भारतीय भक्ति आंदोलन : दक्षिण और उत्तर भारत की संत परम्परा :


चेन्नई के श्री शंकरलाल सुंदरबाई शासुन जैन महिला महाविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेव संगोष्ठी देश – देशांतर तक प्रसारित भक्ति धारा के बहुविध अवदान पर पुनर्विचार का अवसर दे गई। इस अवसर की छबियाँ और व्याख्यान सार प्रस्तुत है।



प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के व्याख्यान के अंश :
देशव्यापी भक्ति आंदोलन और भक्ति – दर्शन को दक्षिण भारत के आळ्वार सन्तों का अविस्मरणीय योगदान है। उन्होंने सुदूर अतीत से चली आ रही भक्ति की भावधारा को लोकजनीन बनाया। उन्होंने ‘सर्वे प्रपत्ति अधिकारिणः’ के सूत्र को मैदानी तौर पर साकार किया, जिसके प्रभावस्वरूप परवर्ती वैष्णव मत के आचार्यों और मनीषियों ने इसे शास्त्र का ढाँचा दिया। आळ्वारों के आंदोलन ने सदियों से चली आ रही सामाजिक जकड़न, असमानता, भावविहीन कर्मकांड और पुरोहितवाद से मुक्ति की राह खोली। आळ्वार भक्तगण विविध वर्ग, पृष्ठभूमियों, समुदाय और जातियों से आए थे, किन्तु वे सभी एक सूत्र में बंधे थे और समूचे समाज को इसी का सन्देश देते रहे। उन्होंने विष्णु के वैदिक, औपनिषदिक, पांचरात्र संहिताओं और भागवत महापुराण द्वारा प्रतिपादित रूप की सरस अभिव्यक्ति अपने काव्य में की है।



विष्णु या नारायण की उपासना में लीन प्रमुख आळ्वारों का नाम निर्देश पराशर भट्ट कुछ इस तरह करते हैं :


भूतं सरश्च महदाह्वयभट्टनाथ श्रीभक्तिसार कुलशेखर योगिवाहान्।
भक्तांघ्रिरेणु परकाल यतीन्द्रमिश्रान् श्रीमत्परांकुशमुनिं प्रणतोsस्मि नित्यम्।।


वैष्णव परंपरा इन बारह आळ्वारों को महिमान्वित करती है : पोय्गै आळ्वार (सरोयोगिन्), भूतत्तु आळ्वार (भूतयोगिन्), पेयाळवार (महायोगिन्), तिरुमळिशै आळ्वार (भक्तिसार), नम्माळवार (शठकोप, परांकुश, मारन), मधुर कवि आळ्वार, कुलशेखर आळ्वार, पेरियाळवार (विष्णु चित्त), आंडाल (गोदा), तोण्डरअडिपोडि आळवार (भक्तांघ्रिरेणु), तिरुप्पाणालळवार (योगिवाह) और तिरुमंगैयाळवार (परकाल)।


भक्ति के संप्रसार और नवाविष्कार में आळ्वार सन्तों का अविस्मरणीय योगदान है। आळ्वार का अर्थ है, भगवत्भक्ति रस में लीन व्यक्ति या जिसने अध्यात्मज्ञान रूपी समुद्र में गहरा गोता लगाया हो। आळ्वार संत भारतीय भक्ति आन्दोलन के पुरोधा हैं। वे गीता और उपनिषदों के जीवन्त रूप थे। तमिल आळ्वार कवि एवं सन्तों का समय छठी से नवीं शताब्दी के बीच रहा। इन बारह आळ्वार के कार्य और संकलन (4000 छंद ईश्वरत्व) के रूप में नालायिर दिव्य प्रबन्धम् कहलाये। तमिल वेद के रूप में प्रतिष्ठित दिव्य प्रबन्ध भक्ति और ज्ञान का विलक्षण भण्डार है। इसका संकलन वैष्णव आचार्य नाथमुनि ने किया, जिनका समय 9 वीं – 10 वीं शताब्दी है। इनकी महिमा वैदिक वाङ्गमय के समान है।



आळ्वार सन्तों की भक्ति समूची विश्व मानवता के लिए है। वह सबको परस्पर प्रेम और सद्भाव के सूत्रों में बांधती है। तमिलनाडु के आलवार संतों ने जिस भक्ति आंदोलन का प्रवर्तन किया था, उसके स्वर से स्वर मिलते हुए भक्तों और संतों ने उत्तर, पूर्व और पश्चिमी भारत के सुदूर अंचलों तक भक्ति तत्त्व को विस्तार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। दक्षिण से उत्तर भारत की ओर प्रवाहित भक्ति आंदोलन ने शेष भारत के विविध अंचलों की संस्कृति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। यह प्रभाव भक्ति की लोक-व्याप्ति, सहज जीवन-दर्शन, शाश्वत मूल्य बोध, सामाजिक समरसता के प्रसार, जनभाषाओं के विस्तार जैसे कई स्तरों पर दिखाई देता है। देश के विभिन्न अंचलों में जन्मे भक्तों की महिमा की अनुगूँज उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक सुनाई देती है। यहाँ तक कि उनके अनेक समकालीन और परवर्ती भक्तों ने ऐसे भक्तों को भक्ति के प्रादर्श के रूप में महिमान्वित किया।



देश के विभिन्न राज्यों के प्राध्यापकों, अध्येताओं और संस्कृतिप्रेमियों से आळ्वार सन्तों के प्रभाव और उत्तर भारत की संत परम्परा के साथ उनके सम्बन्धों पर संवाद का यह स्मरणीय अवसर चेन्नई के श्री शंकरलाल सुंदरबाई शासुन जैन महिला महाविद्यालय के ट्रस्टियों, सुधी विभागाध्यक्ष डॉ सरोज सिंह एवं प्राध्यापकों ने जुटाया था। उन्हें साधुवाद और स्वस्तिकामनाएँ।




  • प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा


Bkk News


Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर


Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets - http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...